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RSS प्रमुख मोहन भागवत ने मुस्लिम धर्मगुरुओं से की मुलाकात, सांप्रदायिक नफरत मिटाने की कोशिश

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कस्तूरबा गांधी मार्ग वाली मस्जिद पहुंचकर डा इमाम उमेर अहमद इलियासी (चीफ़ इमाम) सहित कई मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों से मुलाकात की। मोहन भागवत के साथ संघ प्रचारक इंद्रेश कुमार भी हैं।

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मुस्लिम और ईसाइयों से संवाद बढ़ाने की कोशिश

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों से मुलाकातें और संवाद अनायास नहीं हैं। यह संघ की उस अहम रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह मुस्लिम और ईसाइयों से संवाद बढ़ाने पर जोर दे रहा है, ताकि धर्म आधारित गलतफमियों, दूरियों और संवादहीनता को दूर कर राष्ट्र निर्माण में उनकी व्यापक सहभागिता सुनिश्चित की जा सके। साथ ही संगठन की पहचान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत किया जा सके। संघ का यह प्रयास खुद के उस सोच के दायरे में है, जिसमें वह हिंदुस्तान में रहने वाले सभी लोगों को ‘हिंदू’ मानता है।

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मुस्लिम धर्मगुरुओं से मिले संघ प्रमुख

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इस नीति को मूर्त रूप देने के लिए संगठन के भीतर चार सदस्यीय समिति बनाई गई है और इसका दायित्व सह सरकार्यवाह डा कृष्ण गोपाल व डा मनमोहन वैद्य के साथ ही अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाल व वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार को दिया गया है। संघ की ओर से यह कोशिश ऐसे वक्त में हो रही है, जब विपक्षी दलों के राष्ट्रीय नेता उसपर सर्वाधिक आक्रामक हैं और आरोप लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। इससे बेफ्रिक वह अपने प्रयासों में जुटा हुआ है। हाल के दिनों में इस तरह की बैठकें और मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों की संघ प्रमुख से मुलाकातें बढ़ी हैं।

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विशेष बात यह है कि संघ का यह अभिनव प्रयास उसके शताब्दी वर्ष 2024 तक संघ कार्य को देश के एक लाख स्थानों तक पहुंचाने के लक्ष्य के बीच भी है। ज्ञात हो कि संघ कार्य अभी देश के 60 हजार के करीब स्थानों पर ही है। ऐसे में संघ का जोर पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों और कश्मीर जैसे राज्य पर भी है, जहां ईसाई व मुस्लिम समुदाय बहुसंख्य हैं।

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देशहित में सभी समुदायों को साथ लाने की पहल

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संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी व मामले के जानकार ने कहा कि संगठन का काम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, वैसे ही दूसरे संप्रदाय से भी लोग आ रहे हैं और संघ को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करने के लिए उसे करीब से जानने की कोशिश कर रहे हैं। इन संप्रदायों में भी ऐसे राष्ट्रीय सोच के लोग हैं, जो अपनी पूजा पद्धति और आस्था पर रहते हुए देशहित में साथ आकर काम करना चाहते हैं, इसलिए इस तरह की व्यवस्था की जरूरत महसूस हुई। उन्होंने कहा कि अभी तक इसके अच्छे अनुभव सामने आ रहे हैं, हालांकि परिणाम निकलने में कुछ वक्त लगेगा। इसके साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि यह मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) से अलग व्यवस्था है, क्योंकि वह मुस्लिमों के द्वारा मुस्लिम समुदाय के लिए संगठन है।

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