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सचिन की लड़ाई पड़ेगी भारी, क्या पायलट की उड़ान लगा देगी कांग्रेस पर ब्रेक?

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जयपुर: राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट अपने कार्यकर्ताओं के साथ मंगलवार को अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठ रहे हैं जहां रविवार को उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीएम अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे की साठगांठ के आरोप लगाए थे. पायलट ने कहा था कि सीएम रहते हुए गहलोत ने राजे सरकार के घोटालों पर कोई भी कार्रवाई नहीं की. इधर राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने देर रात पायलट के अनशन को पार्टी विरोधी गतिविधि करार दिया है. हालांकि पायलट के अनशन में जुटने के लिए प्रदेशभर से उनके समर्थक जयपुर पहुंच चुके हैं. इधर पायलट के अनशन पर बैठना इसलिए भी चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि राजस्थान विधानसभा चुनावों के मुहाने पर खड़ा है जहां साल के आखिरी में चुनावी रण है ऐसे में कांग्रेस जहां एक तरफ गहलोत सरकार की योजनाओं पर फोकस कर सरकार रिपीट करने का दावा कर रही है. वहीं दूसरी ओर दो दिग्गजों की आपसी कलह लगातार आलाकमान के सामने सिरदर्द बनी हुई है. पिछले 3 सालों में लगातार इस खींचतान में उतार-चढ़ाव देखे गए लेकिन आलाकमान इस लड़ाई को सुलझाने में पूरी तरह से नाकाम दिखाई दिया. माना जा रहा है कि पायलट के एक बार फिर मोर्चा खोलने के बाद अब यह मामला फिर दिल्ली दरबार पहुंच चुका है जहां कांग्रेस ने गहलोत सरकार के कामों पर चुनाव लड़ने का दो टूक जवाब दिया है तो क्या माना जाए कि पायलट से अब आलाकमान का साथ भी छूट चुका है या इन दोनों की यह लड़ाई कांग्रेस को आगामी विधानसभा चुनाव में हार की कगार पर धकेल रही है?

बीजेपी को मिलेगा चुनावों में लाभ!

दरअसल पायलट और गहलोत की लड़ाई कोई ताजा मामला नहीं है 2018 के चुनावों के बाद से जब उन्हें सीएम नहीं बनाया गया था तब से इसकी शुरूआत हो चुकी थी. वहीं 2020 केड बाद सितंबर 2022 में इस खींचतान के दो चरम पड़ाव देखे गए. वहीं अब पायलट ने आखिरी हथियार के तौर पर गहलोत और राजे की मिलीभगत को चुना जिसे जानकार पायलट की अपना राजनीतिक वजूद बचाए रखने की एक कोशिश मानते हैं. जानकारों का कहना है कि पायलट की इस मोर्चाबंदी से बीजेपी को चुनावों के नजदीक कुछ हद तक मनोवैज्ञानिक लाभ मिल सकता है क्योंकि पायलट के बयानों से सरकार के खिलाफ उस तरह से सत्ता विरोधी लहर नहीं बन पा रही है. वहीं पायलट भी आलाकमान के सामने बने रहे और दबाव बनाए रखने की स्थिति पैदा करना चाहते हैं लेकिन गहलोत खेमा इसको ऐसे भुना रहा है कि जैसे सरकार के कामों में कोई बाधा पैदा कर रहा हो.

बयानों से कार्यकर्ता से लेकर वोटर्स भी कन्फ्यूज

पायलट ने पहली बार अपनी सरकार को आड़े हाथों नहीं लिया है, पिछले 4 साल में लगातार वह कई मौकों पर सरकार को घेरते रहे हैं. 2018 में जब राज्य में कांग्रेस की सरकार आई तब से लगातार उन्होंने सरकार को आड़े हाथों लिया. साल 2019 में कोटा के सरकारी जेके लोन अस्पताल में बच्चों की मौत मामले में पायलट ने सरकार को घेरा.वहीं बीते साल जालौर में एक दलित बच्चे की मौत मामले में भी उन्होंने जालौर पहुंचकर सरकार को चेतावनी दी. इसके बाद बीते दिनों किसान सम्मेलन के दौरान पायलट ने अपनी ही सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए सीधा सीएम अशोक गहलोत पर निशाना साधा. हालांकि पायलट के इन बयानों से उनके समर्थकों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में एक अजीब सी संशय की स्थिति बनी हुई है जहां सरकार रिपीट करने के लिए चार्ज होने के मौके पर कार्यकर्ता पाला चुनने में व्यस्त है.

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