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बंगाल पंचायत चुनाव में दिन भर गिनते रहे लाश, जानें हिंसा की खूनी कहानी

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कोलकाता. पश्चिम बंगाल में चुनाव और हिंसा एक-दूसरे का पर्यायवाची हो गया है. चुनाव के शंखनाद के साथ ही राज्य में हिंसा का तांडव शुरू हो जाता है और साल 2023 का पंचायत चुनाव भी इससे अपवाद नहीं रहा. पांच जून को पंचायत चुनाव के नामांकन की घोषणा के साथ ही राज्य में खूनी खेल शुरू हो गया था. चुनाव प्रचार से लेकर मतदान के दिन तक हिंसा, बमबारी और खूनी खेल जारी रहा और चुनाव के बाद भी हिंसा का तांडव चल ही रहा है. पिछले 30 दिनों में चुनावी हिंसा में 40 लोगों की मौत हो चुकी है.शनिवार की सुबह पंचायत चुनाव के लिए मतदान शुरू हुआ था. मतदान की रात से ही हिंसा का तांडव शुरू हो गया था और सुबह सात बजे से मतदान शुरू हुआ था और साथ में हिंसा भी.और जैसे-जैसे दिन चढ़ने लगा. हिंसा बढ़ने लगी और एक के बाद एक मौत की सूचना आती रही और आलम यह था कि चाहे आम आदमी हो या फिर पत्रकार, उसका सारा दिन लाश गिनने में ही बीत गया. हर फोन के साथ एक मौत की खबर आ रही थी. केवल मतदान के दिन ही 20 लोगों की मौत हुई है. 10 घंटे के मतदान के दौरान 20 लोगों की मौत और पूरे चुनाव प्रचार के दौरान यदि मृत्यु का आंकड़ा देखा जाए, तो यह 40 के आसापस पहुंच गया है. यानी 30 दिनों में कुल 40 की मौत हुई है. अभी भी राज्य में हिंसा जारी है. सोमवार को राज्य के 697 बूथों पर चुनावी हिंसा के कारण फिर से मतदान हो रहा है. इस दिन भी हिंसा की घटनाएं अछूती नहीं रही. दिनहाटा में बमबाजी की घटनाएं हो रही हैं. मतदान के दौरान हिंसा में जो घायल हो गये थे. उनमें से अब कुछ की मौत की सूचनाएं आ रही हैं.

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बंगाल में चुनावी हिंसा बन गई है परंपरा

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ऐसा नहीं है कि यह पहला अवसर है, जब बंगाल में चुनावी में हिंसा हुई है. ममता बनर्जी के शासन के पहले राज्य में वामपंथी पार्टियों का शासन था. ज्योति बसु और बुद्धदेव भट्टाचार्य मुख्यमंत्री थे. लेफ्ट शासन में भी हिंसा का तांडव चलता था. लेफ्ट शासन में 2003 में हिंसा के दौरान 70 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. 2008 में चुनावी हिंसा में 36 लोगों की मौत हुई थी. ममता बनर्जी ने साल 2011 में सत्ता संभाली. साल 2013 में पहली बार पंचायत चुनाव हुआ था. उस चुनाव में 39 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. दो साल पहले राज्य में विधानसभा चुनाव हुए. चुनावी हिंसा में 10 लोग की हत्या हुई थी. भाजपा का आरोप है कि चुनाव के बाद उनके 40 कार्यकर्ताओं को मार डाला गया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अभी भी विधानसभा चुनाव की हिंसा की जांच सीबीआई कर रही है.

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पंचायत चुनाव के ऐलान से ही शुरू हो गई हिंसा

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साल 2023 के पंचायत चुनाव में हिंसा का सिलसिला जारी रहा. पंचायत चुनाव में सबसे पहली हिंसा 9 जून को हुई. मुर्शिदाबाद के खारग्राम कांग्रेस कार्यकर्ता फूलचंद शेख की हत्या कर दी गयी. 9 जून से शुरू हुई. चुनाव प्रचार के दौरान 18 लोगों की मौत हुई. हिंसा 8 जुलाई को पंचायत चुनाव के मतदान के दौरान अपने चरम पर रहा. इस दिन ही केवल चुनावी हिंसा में 20 लोगों की हत्या कर दी गई ती और अब चुनाव के बाद भी हिंसा जारी है. चुनावी हिंसा में मुर्शिदाबाद और नदिया में दो की और मौत हो गयी. ऐसे में मंगलवार को मतगणना है. राज्य में मतगणना के दिन भी हिंसा की घटनाएं पहले हुई हैं. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर चौधरी ने राज्य चुनाव आयोग को पत्र लिखा है और हिंसा की आशंका जताते हुए पर्याप्त सुरक्षा की मांग की है.

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मुर्शिदाबाद में हुई है सबसे ज्यादा हत्याएं

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पश्चिम बंगाल के जिस जिले में सबसे ज्यादा मौत हुई है. वह मुर्शिदाबाद है. हिंसा की शुरुआत इसी जिले से हुई थी. मुर्शिदाबाद में 10 लोगों की मौत हुई है. मुर्शिदाबाद जिले मुस्लिम बहुल माना जाता है और यहां कांग्रेस के नेता अधीर चौधरी का प्रभाव हैं. इस जिले में ज्यादातर संघर्ष की घटना कांग्रेस और टीएमसी समर्थकों के बीच हुई है. लेकिन ऐसा नहीं है कि खूनी झड़प केवल कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच हुई है. झड़पें तृणमूल कांग्रेस के अपने पार्टी समर्थकों के बीच हुई है. भाजपा, माकपा और आईएसएफ के कार्यकर्ताओं की भी हिंसा में मौत हुई है. तृणमूल कांग्रेस का दावा है कि चुनावी हिंसा में मारे गये लोगों में 60 फीसदी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं. ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि ममता बनर्जी अपने कार्यकर्ताओं को ही सुरक्षा देने में असफल रही हैं. टीएमसी के नेता कुणाल घोष कहते हैं कि सबसे ज्यादा टीएमसी कार्यकर्ताओं की मौत हुई है. इसके बावजदू टीएमसी पर हिंसा के आरोप लगाये जा रहे हैं. राज्य के 74 हजार सीटों के लिए मतदान हुए हैं और यह हिंसा केवल कुछ मतदान केंद्रों पर ही हुई है.

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चुनावी हिंसा पर मचा है सियासी घमासान

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वहीं, बीजेपी इसे ममता बनर्जी सरकार और राज्य चुनाव आयोग की असफलता करार दे रही है. शुभेंदु अधिकारी ने राज्य में धारा 356 लगाने की मांग कर दी है. अब बीजेपी ने पंचायत चुनाव में हिंसा को मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है और लोकसभा चुनाव में यह एक अहम मुद्दा बनाने की तैयारी कर रहा है. राज्यपाल सीवी आनंद बोस भी राज्य में हिंसा को लेकर निराशा जता चुके हैं. मतदान के दिन राज्यपाल पूरे दिन हिंसा प्रभावित इलाकों में घूमते रहे और अब चुनाव के बाद वह दिल्ली गये हैं और केंद्रीय गृह मंत्री को चुनावी हिंसा पर रिपोर्ट देंगे. इसके साथ ही यह मामला फिर से कलकत्ता हाईकोर्ट में भी जाएगा, क्योंकि राज्य चुनाव आयोग पर आरोप लगा है कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद केंद्रीय बलों की इस्तेमाल सही ढंग से नहीं किया गया है. यानी इसकी कानूनी लड़ाई भी अब शुरू होगी.

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पंचायत चुनाव के 30 दिनों के 40 लोगों गंवाई जान

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मुर्शिदाबाद में 11 हत्याएं, दक्षिण 24 परगना में 6, कूचबिहार में 5, उत्तर दिनाजपुर में 5, मालदह में 4, उत्तर 24 परगना में 3, पूर्वी बर्दवान में 2, नदिया में 2, बीरभूम-और पुरुलिया में 1 लोगों की मौत हुई है. मुर्शिदाबाद में सर्वाधिक 11 हत्याएं हुई हैं. उसके बाद दक्षिण 24 परगना में छह मौते हुई हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार मृतकों में 60 फीसदी टीएमसी के कार्यकर्ता हैं.

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