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ज्ञानवापी पर बयान देकर योगी ने सेट कर दिया 2024 का एजेंडा! हिंदुत्व की पिच को दी धार

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लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राजनीतिक तपिश बढ़ती जा रही है. अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का काम तेजी से चल रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शिरकत करने का न्योता भेजा जा चुका है. बीजेपी राम मंदिर को अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर रही है. अयोध्या के बाद मथुरा और काशी को लेकर भी सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. बीजेपी ने अब ज्ञानवापी के मुद्दे को ढके-छुपे शब्दों में नहीं बल्कि खुलकर उठाना शुरू कर दिया है, जबकि मामला अदालत में है और पुरातत्व विभाग से सर्वे कराने को लेकर सुनवाई चल रही है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ज्ञानवापी मामले पर बड़ा बयान दिया है. समाचार एजेंसी ANI के साथ बातचीत करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अगर हम ज्ञानवापी को मस्जिद कहेंगे तो फिर विवाद होगा. मुझे लगता है कि भगवान ने जिसको दृष्टि दी है, वो देखे कि त्रिशूल मस्जिद में क्या कर रहा है. हमने तो नहीं रखे हैं. ज्योतिर्लिंग है, देव-प्रतिमाएं हैं, पूरी दीवारें चिल्ला-चिल्लाकर क्या कह रही हैं, ये प्रस्ताव मुस्लिम समाज से आना चाहिए कि ऐतिहासिक गलती हुई है, इसका समाधान होना चाहिए.

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ज्ञानवापी का स्वरूप मंदिर की तरह- भूपेंद्र चौधरी

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बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने भी सीएम योगी के ज्ञानवापी पर दिए गए बयान का सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो कहा है वो ऐतिहासिक साक्ष्य है, जिससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते हैं. लाखों-करोड़ों हिंदुओं के आस्था से जुड़ा हुआ मामला है, ज्ञानवापी को मस्जिद कैसे कहा जा सकता है. मामला कोर्ट में है, लेकिन ज्ञानवापी का स्वरूप मंदिर की तरह है, उससे हमारी अस्था जुड़ी हुई है. ऐसे में हम कैसे इनकार कर सकते हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बात से हम पूरी तरह सहमत हैं.

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संसद पर त्रिशूल बना दूं क्या उसे मंदिर कहेंगे?- एसटी हसन

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सीएम योगी के बयान को समाजवादी पार्टी ने 2024 के चुनाव से जोड़ा. सपा सांसद एसटी हसन ने कहा कि ये 2024 के चुनाव की तैयारी है. वहां पर साढ़े 300 साल से नमाज हो रही है तो मस्जिद नहीं तो क्या कहेंगे. सीएम योगी आदित्यनाथ को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए,वो किसी एक धर्म के नहीं सबके सीएम है. जांच से साफ होगा कि वो क्या है, लेकिन अगर संसद पर त्रिशूल बना दूं क्या उसे मंदिर कहेंगे? मुस्लिम समुदाय ने हमेशा बड़ा दिल दिखाया है और बाबरी के समय भी दिखाया था.

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वहीं, AIMIM के प्रवक्ता वारिस पठान ने कहा कि सीएम योगी आदित्यनाथ संविधान की शपथ लेकर मुख्यमंत्री बने. संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए, क्योंकि देश संविधान से चलता अस्था से नहीं. सीएम योगी आस्था की बात कर रहे हैं तो हमारी भी आस्था है. कोर्ट ने भी नमाज पर कोई रोक नहीं लगाई है. सर्वे का मामला कोर्ट में है. ऐसे में सीएम का बयान आना सही नहीं है. वर्शिप एक्ट में धार्मिक स्थलों के स्वरूप को बनाए रखने की बात कही गई है, उसके बाद भी इस तरह के मामले उठाए जा रहे हैं. इस तरह ज्ञानवापी मुद्दे पर सियासत तेज हो गई है और योगी बयान को राजनीतिक नजरिए से भी देखा जा रहा है.

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साकार हो रहा है बीजेपी का संकल्प

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बता दें कि बीजेपी का ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे…’ संकल्प अब साकार हो रहा है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण अगले साल पूरा हो जाएगा. 2024 में रामलला का दर्शन शुरू हो जाएगा. ऐसे में अब फिर बीजेपी नए सियासी मार्ग पर कदम बढ़ाती दिख रही है. ऐसे में काशी और मथुरा का मामला भी अदालत तक पहुंच चुका है. एक समय अयोध्या, काशी और मथुरा बीजेपी के एजेंडा का हिस्सा हुआ करते थे. बीजेपी अपने घोषणा पत्र में भी इनका जिक्र किया करती थी. अयोध्या का मामला कोर्ट के जरिए हल हो चुका है और भव्य मंदिर बन रहा है. ऐसे में अब काशी और मथुरा के मुद्दे उठाए जाने लगे हैं.

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बीजेपी के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा है काशी

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काशी के ज्ञानवापी मामले में सर्वे का आदेश निचली अदालत ने दिया, जिस पर रोक लगवाने के लिए मुस्लिम पक्ष हाईकोर्ट में दस्तक दी है. हाईकोर्ट ने तीन अगस्त तक सर्वे पर रोक लगा रखी है, लेकिन 2024 की चुनावी तपिश के साथ भी राजनीति तेज हो गई है. ऐसे में सीएम योगी के बयान को सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि काशी का मामला हो या फिर मथुरा का मुद्दा. बीजेपी के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा रहे हैं. अयोध्या के मुद्दे से बीजेपी का सियासी संजीवनी मिली है और अब राम मंदिर निर्माण के साथ सिद्धि की ओर है तो पार्टी के सामने हिंदुत्व को धार देने के लिए नए मुद्दे चाहिए.

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ओबीसी जातियों को बिना अधूरा BJP का हिंदुत्व!

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वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेंद्र शर्मा कहते हैं कि ज्ञानवापी पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान पूरी तरह से सोची-समझी रणनीति और राजनीतिक मकसद के तहत दिया गया है. ज्ञानवापी का मामला डेढ़ साल से उठाया जा रहा है, लेकिन सीएम योगी को अभी बयान देने की जरूरत क्यों पड़ी. विपक्षी एक साथ आ रहा है और ओबीसी की कई जातियां बीजेपी से दूर खड़ी हैं. बीजेपी जानती है कि अगर सूबे की सभी 80 सीटें जीतनी हैं तो ओबीसी जातियों को बिना हिंदुत्व के साथ लाए नहीं जीता सकता है. इसीलिए राम मंदिर का उद्घाटन चुनाव से ठीक पहले कराया जा रहा है और ज्ञानवापी के मामले को भी मुद्दा बनाया जा रहा है.

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पुष्पेंद्र शर्मा कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के चेहरा माने जाते हैं और पहनावा भी उसी तरह का पहनते हैं. बीजेपी भी उन्हें हिंदुत्व के रूप में ही इस्तेमाल करती है. ऐसे में ज्ञानवापी मामले पर योगी के बयान को हिंदुत्व की सियासत से जोड़कर देखा जाना चाहिए. बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव को हिंदुत्व के पिच पर लड़ना चाहती है और सीएम योगी के 80 बनाम 20 की सियासत रही है, उसी को खड़े करने की रणनीति है.

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हिंदुत्व के एजेंडा से विपक्षी नैरेटिव को काउंटर करेगी BJP

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2024 के लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम वक्त बाकी है. बीजेपी को घेरने के लिए विपक्षी दलों ने मिलकर गठबंधन बनाया है और उसे I.N.D.I.A नाम दिया है. ऐसे में विपक्षी नैरेटिव को काउंटर करने के लिए बीजेपी हिंदुत्व का एजेंडा सेट कर रही है ताकि विपक्षी दलों को अपने पिच पाकर लाकर लड़ा जाए. इसीलिए ज्ञानवापी का मुद्दा उठाया गया है ताकि उसे चर्चा में बनाकर रखा जाए?

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