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उपराष्ट्रपति की एंट्री से राजस्थान चुनाव में हलचल, धनखड़ के दौरों से क्यों परेशान हो गए गहलोत?

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राजस्थान विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मियों के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निशाने पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ हैं. बुधवार को धनखड़ राजस्थान के दौरे पर थे. उन्होंने अलग-अलग जिलों में पांच कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और मंदिर में पूजा-अर्चना की. वहीं, सीएम गहलोत ने उपराष्ट्रपति एक के बाद एक राजस्थान के हो रहे दौरे पर सवाल कर दिए हैं. गहलोत ने कहा कि राजस्थान में चुनाव है और सुबह-शाम एक दिन में चार-पांच दौरे का क्या मतलब है? ऐसे में सवाल उठते हैं कि आखिर सीएम गहलोत क्यों उपराष्ट्रपति धनखड़ के राजस्थान दौरे पर सवाल खड़े कर रहे हैं? सीएम गहलोत ने बुधवार को बिड़ला ऑडिटोरियम में मिशन-2030 के तहत जनसंवाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि आप उपराष्ट्रपति है. अगर आप राष्ट्रपति भी बन जाएंगे तो भी हम आपका स्वागत करेंगे, लेकिन बार-बार सुबह शाम राजस्थान में दौरे करने का क्या मतलब है? कुछ दिनों में चुनाव होने हैं. ऐसे में आपके बार-बार राज्य के दौरे को लेकर लोग तो समझेंगे ही कि आप आखिर चाहते क्या हैं, यह संवैधानिक संस्थाएं हैं. उनका मान-सम्मान तो करना चाहिए.

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अशोक गहलोत ने कहा कि शेखावत साहब भी देश के उपराष्ट्रपति बने थे, लेकिन उन्होंने कहा था कि राजस्थान मेरा घर है और यहां कोई प्रोटोकॉल नहीं होगा जबकि उपराष्ट्रपति धनखड़ पूरे प्रोटोकॉल के तहत राजस्थान के दौरे पर आ रहे हैं. इस तरीके से बार-बार राजस्थान का दौरा करने का क्या तुक है? जनता समझती है. राजस्थान में चुनाव है, इसलिए उपराष्ट्रपति भी सक्रिय हैं. इस तरह से गहलोत ने उपराष्ट्रपति धनखड़ के राजस्थान दौरे पर सवाल ही नहीं खड़े किए बल्कि विधानसभा चुनाव से उसे जोड़ दिया है.

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राजस्थान के झूंझुनूं से हैं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

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बता दें कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ राजस्थान के छोटे से जिले झुंझुनू के कैथाना गांव के रहने वाले हैं. उपराष्ट्रपति बनने के बाद से ही धनखड़ अपने गृह क्षेत्र और राज्य का दौरा कर रहे हैं. पिछले एक साल में उपराष्ट्रपति धनखड़ तीन बार झुंझुनू गए हैं तो करीब डेढ़ दर्जन बार राजस्थान का दौरा किया है. इस दौरान उन्होंने करीब 35 से 36 कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए 13 जिलों का दौरा कर चुके हैं. बुधवार को उन्होंने एक बार फिर से अपने गृहक्षेत्र झुंझुनू पहुंचे और साथ ही उन्होंने बाड़मेर, बीकानेर और जोधपुर जिले के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. इससे पहले धनखड़ ने जयपुर, झुंझुनू, भरतपुर, चित्तौड़गढ़, कोटा, उदयपुर, नागौर, टोंक, सिरोही और बीकानेर का दौरा किया था और कार्यक्रमों में शिरकत किए थे. जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति और राज्यपाल पद पर रहने से पहले राजस्थान की सियासत में जाट समुदाय के बड़े चेहरा माने जाते थे. उन्होंने जनता दल के साथ अपनी राजनीतिक पारी का आगाज किया. झुंझुनू से जीतकर लोकसभा सांसद चुने गए थे और चंद्रशेखर सरकार में मंत्री रहे. 1993 से लेकर 1998 तक वह विधायक भी रहे. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. अजमेर से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गए. उसके बाद वर्ष 2003 में वे बीजेपी में शामिल हो गए.

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राजभवन को बीजेपी के कार्यालय में बदलने के लगे आरोप

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मोदी सरकार ने 2019 में जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया. गवर्नर पद पर रहते हुए जगदीप धनखड़ की बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के साथ छत्तीस के आंकड़े रहे. धनखड़ ने पहले दिन से ही जिस तरह ममता सरकार और टीएमसी के खिलाफ आक्रामक तेवर अपनाया, उसके चलते अक्सर उन पर बीजेपी नेता के तौर पर काम करने और राजभवन को बीजेपी के कार्यालय में बदलने के आरोप भी लगते रहे. जगदीप धनखड़ राज्यपाल रहते हुए शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरा, जब उन्होंने ट्वीट के ज़रिए सरकार, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को कठघरे में खड़ा न किया हो. चाहे कोरोना का मुद्दा हो, राशन वितरण का, चुनाव के दौरान या चुनाव के बाद होने वाली हिंसा का या फिर अंफान तूफान के बाद राहत और बचाव कार्यों हों. धनखड़ लगातार ममता सरकार पर हमले करते रहे. यह नौबत यहां तक पहुंच गई कि ममता ने एक बार धनखड़ को ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया था. धनखड़ ने राज्यपाल पद पर रहते हुए, जितनी सुर्खियां बटोरीं उतनी तो शायद उन्होंने अपने पूरे सियासी करियर में नहीं बटोरी. उपराष्ट्रपति बनने के बाद से राजस्थान का दौरा कर रहे हैं और राजनीतिक बयान भी देते रहे हैं. हालांकि, बीजेपी ने उन्हें उपराष्ट्रपति का उम्मीदावर बनाया तभी से उसके सियासी मायने निकाले जाने लगे थे. राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा था कि धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाकर जाट समुदाय के वोटों को साधने की बीजेपी ने कवायद की है.

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राजस्थान की राजनीति में जाट समुदाय की भूमिका

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राजस्थान की सियासत में जाट वोटर निर्णायक भूमिका में है. प्रदेश में करीब 12 फीसदी जाट समुदाय है, जिसका असर करीब 50 विधानसभा सीटों पर होता है तो 20 सीटों पर किसी दूसरे समाज के नेता को जीतने-हराने में अहम रोल अदा करते हैं. राजस्थान में हर चुनाव में कम से कम 10 से 15 फीसदी विधायक जाट समाज के ही होते हैं. राजस्थान में जाट समुदाय के 34 विधायक 2018 में जीतकर आए थे, जिनमें कांग्रेस से 18 विधायक जीते जबकि बीजेपी के 10 जाट विधायक चुने गए थे, जिसमें वसुंधरा राजे भी शामिल हैं. लेफ्ट पार्टी से दो जाट विधायक चुने गए थे और दो जाट समुदाय के नेता निर्दलीय जीते थे. इसके अलावा एक बसपा और एक आरपीआई से जीतने में सफल रहे थे. राजस्थान का शेखावटी इलाका जाट बहुल माना जाता है, जहां पर जाट समुदाय के वोट 25 से 35 फीसदी तक है. हनुमानगढ़, गंगानगर, धौलपुर बीकानेर, चुरू, झुंझुनू, नागौर, जयपुर, चित्तोड़गढ़, अजमेर, बाड़मेर, टोंक, सीकर, जोधपुर, भरतपुर में जाट समुदाय बड़ी संख्या में है. धौलपुर जाटों के सबसे बड़े गढ़ में से एक है और राज्य में सात जिलों की करीब 50 से 60 सीटों पर खासा प्रभाव होने के बावजूद जाट समाज को उतना महत्व नहीं मिला, जितने की इन्हें उम्मीद थी. यही वजह है कि धनखड़ के राजस्थान दौरे पर गहलोत ने सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि बीजेपी उन्हें सक्रिय करते जाटों को साधने की कोशिश में है?

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