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2020 के जख्म को हरा कर रहे गहलोत, पायलट भी चल रहे दांव, राजस्थान में लिस्ट पर कहां फंसा पेंच?

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राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने 41 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है और अब हर किसी को कांग्रेस की सूची का इंतजार है. कांग्रेस की लिस्ट अशोक गहलोत और सचिन पायलट के फेर में फंसी हुई है, दोनों ही नेता अपने-अपने करीबी नेताओं को टिकट दिलाने की पैरवी में लगे हैं. गहलोत ने 2020 में हुए सियासी बगावत के जख्मों को फिर से कुरेदकर हरा कर दिया है और कहा कि जिन लोगों ने सत्ता बचाने के लिए सहयोग किया है, उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. अशोक गहलोत ने मंगलवार को जयपुर से दिल्ली रवाना होते हुए मीडिया से बात करते 2022 की घटनाक्रम को याद दिलाते हुए कहा कि हमने बहुत मामूली अंतर से सरकार को गिरने से बचाने में सफल रहा था. उस समय ‘टच एंड गो’ का मामला था. पांच साल तक मैनें सरकार कैसे चलाई है, यह सब जानते हैं. विधायकों ने अगर उस समय साथ नहीं दिया होता तो सरकार गिर गई होती. वो (बीजेपी) सरकार को गिरा रहे थे और हम बचा रहे थे. विधायकों ने पूरा साथ दिया है और उनका साथ अब हमें देना चाहिए.

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सीएम गहलोत चल रहे सियासी दांव

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सीएम गहलोत 2020 का घटनाक्रम याद दिलाकर ऐसा सियासी दांव चल रहे हैं, जिसके जरिए वो अपने तमाम करीबी नेताओं और विधायक को टिकट भी दिलाने की है. इसके जरिए सचिन पायलट के करीबी नेताओं को टिकट से महरूम करने की है. पत्रकारों ने गहलोत से सवाल पूछा कि आप उन 102 विधायक के लिए टिकट मांग रहे हैं, जिन्होंने सियासी संकट के दौरान साथ दिया. इस पर उन्होंने ने कहा कि कुछ लोगों को विधायकों से शिकायत हो सकती है, लेकिन सभी विधायक भ्रष्ट नहीं है. आज हमारी सरकार की तारीफ हो रही है, यह सब विधायकों के माध्यम से हुए कार्यों के आधार पर ही हो रही है.

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विधायकों को दी जा रही करोड़ों की लालच

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मुख्यमंत्री ने कहा कि विधायकों को 10-10 करोड़ रुपये की लालच दी जा रही थी. राज्यपाल ने विधानसभा सत्र बुलाने की तारीख तय की तो विधायकों के रेट 10 से बढ़ाकर 40 करोड़ कर दी गई, लेकन वो नहीं झुके और सरकार को बचाने के लिए छह महीने तक होटल में रुकने के लिए तैयार हो गए थे. इस तरह उनके मन में लालच होता तो घर बैठे कौन पैसा छोड़ता है. इस तरह से गहलोत ने अपना आखिरी दांव चल दिया है ताकि अपने करीबी नेताओं को दोबारा से विधानसभा चुनाव में उतार सकें. दरअसल, साल 2020 में सचिन पायलट और उनके समर्थक 18 कांग्रेसी विधायकों ने जयपुर से आकर गुरुग्राम में एक महीने तक डेरा डाले रखा था, जिसके चलते गहलोत सरकार पर संकट गहरा गया था. अशोक गहलोत ने भी अपने विधायकों को बचाए रखने के लिए होटल में ठहरा रखा था ताकि बागवत न करे सकें. ऐसे में निर्दलीय विधायकों ने गहलोत का पूरा साथ दिया. राज्यपाल कलराज मिश्रा ने विधानसभा का सत्र बुलाया लिया तब कांग्रेस हाईकमान के हस्ताक्षेप के बाद पायलट और गहलोत के बीच सुलह-समझौता हुआ. गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में ध्वनि मत से विश्वास मत जीत लिया तब सरकार बची थी.

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पायलट के बागी के बाद ऐसे बची थी सरकार

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गहलोत सरकार को बचाने में निर्दलीय विधायकों की बहुत अहम भूमिका रही थी. निर्दलीय और कांग्रेस विधायकों के सहयोग से गहलोत अपनी सत्ता बचाने में सफल रहे थे. ऐसे में अब गहलोत उन सभी के टिकट के लिए पैरवी कर रहे रहे हैं, जिन विधायकों ने संकट के समय उनका साथ दिया. सूत्रों की माने तो कांग्रेस के सर्वे में मौजूदा विधायकों की बड़ी संख्या में टिकट काटे जाने की पैरवी की गई है, जिसके चलते ही गहलोत इमोशनल दांव खेल रहे हैं ताकि अपने करीबी नेताओं को टिकट दिलाने में सफल रहे.

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अपने करीबियों को टिकट दिलाने में गहलोत

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दिलचस्प बात यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय विधायक बनने वाले नेताओं में ज्यादातर वो नेता थे, जो सीएम गहलोत के करीबी रहे हैं और पार्टी ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया था. ऐसे में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़कर विधायक बने और कांग्रेस बहुमत से एक सीट कम थी तो गहलोत ने उन सभी का समर्थन अपने साथ जुटाकर सरकार बनाई थी. निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा, महादेव सिंह खंडेला, रामकेश मीणा, बाबूलाल नागर जैसे विधायकों ने गहलोत का साथ दिया था और अब गहलोत उनके लिए टिकट की पैरवी कर रही हैं.

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ये है गहलोत की मंशा

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गहलोत की मंशा बसपा से कांग्रेस में आए हुए नेताओं के लिए गहलोत टिकट दिलाने की है. इस तरह उनकी इच्छा है कि जिन विधायकों ने संकट के समय उनका साथ दिया है, उन्हें चुनाव लड़ाया जाना चाहिए और अगर टिकट काटने हैं, उनके काटे जाए, जिन्होंने बगावत की थी. इस तरह गहलोत अपने दांव से सचिन पायलट को चुनाव से पहले बैकफुट पर ढाकलने की है ताकि चुनाव के बाद ज्यादातर जीतकर आने वाले विधायक उनके खेमे के हों और सरकार बनाने के दौरान उनके पक्ष में खड़े नजर आएं. वहीं, सचिन पायलट भी बहुत ही सावधानी से चल रहे हैं और किसी तरह की बयानबाजी से बच रहे हैं. इस तरह से गहलोत और पायलट के बीच शह-मात का खेल चल रहा है.

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