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सागवाड़ा सीट पर BJP-कांग्रेस के सामने कड़ी चुनौती, जानें यहां का जातीय समीकरण

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डूंगरपुर जिले की सागवाड़ा और गलियाकोट पंचायत समिति सागवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में आती है. यह क्षेत्र बांसवाड़ा जिले की सीमा से लगता हुआ है. सागवाड़ा क्षेत्र के लोग मुंबई और महाराष्ट्र के साथ विदेशों में बड़े व्यापार करते हैं, जिसके चलते यह क्षेत्र आर्थिक रूप से मजबूत है. सागवाड़ा विधानसभा सीट पर दशकों तक कांग्रेस के दिवंगत नेता भीखाभाई और उनके परिवार के लोगों का कब्ज़ा रहा है. वहीं इस बार सागवाड़ा से बीजेपी ने शंकर डेचा को प्रत्याशी बनाया है. सागवाड़ा क्षेत्र में बेशकीमती क्वार्ट्ज पत्थर बहुतायत में पाया जाता है. क्वार्ट्ज पत्थर खनन के कारण भी यह क्षेत्र आर्थिक रूप से मजबूत होता जा रहा है. इसके अलावा विधानसभा क्षेत्र से माही नदी गुजरती है, जिससे यहां के किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिल जाता है.

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यहां का जातिगत समीकरण

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सागवाड़ा विधानसभा में आदिवासी और पाटीदार यानी ओबीसी वर्ग के मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. सागवाड़ा विधानसभा में 60 प्रतिशत एसटी वोटर्स है, जबकि 20 प्रतिशत ओबीसी वोटर्स है. बाकी 20 प्रतिशत में एससी, सामान्य और अल्पसंख्यक मतदाता हैं.

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सीट के प्रमुख मुद्दे

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  • भीखा भाई माही नहर के पानी से क्षेत्र पूरी तरह लाभान्वित नहीं हो पाया.
  • झील ग्रुप के अलावा क्षेत्र में कोई बड़ी इंडस्ट्री नही, रोज़गार के लिये हो रहे पलायन को रोकने के लिये कोई पहल नहीं की जा रही है.
  • कॉलेज और स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पद बेहतर शिक्षा में परेशानी का कारण बने हुए हैं.

यहां का राजनीतिक इतिहास

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  • 1951 – भोगीलाल पंड्या – कांग्रेस
  • 1957 – भीखा भाई – कांग्रेस
  • 1962 – भीखा भाई – कांग्रेस
  • 1967 – भीखा भाई – कांग्रेस
  • 1972 – भीखा भाई – कांग्रेस
  • 1977 लालशंकर – JNP
  • 1980 – कमला देवी भील – कांग्रेस
  • 1985 – कमला देवी भील – कांग्रेस
  • 1990 – कमला देवी भील – कांग्रेस
  • 1993 – भीखा भाई – कांग्रेस
  • 1998 – भीखा भाई – कांग्रेस
  • 2002 – कनकमल कटारा – बीजेपी
  • 2003 – कनकमल कटारा – बीजेपी
  • 2008 – सुरेन्द्र बामनिया – कांग्रेस
  • 2013 – अनीता कटारा – बीजेपी
  • 2018 – रामप्रसाद डिन्डोर भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP)

मौजूदा विधायक की उपलब्धियां (इस कार्यकाल में)

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  • सागवाड़ा विधानसभा के विधायक रामप्रसाद अपने कार्यकाल में करोड़ों के विकास कार्य करवाने का दावा करते हैं. इनके कार्यकाल में खास तौर पर ये काम हुए हैं.
  • वांदरवेड, गलियाकोट, टामटिया और बाबा की बार में पुल निर्माण होने से आवागमन में राहत.
  • स्कूलों को क्रमोन्नत करवाया, हर पंचायत स्तर पर कम से कम एक सीनियर सेकेंडरी स्कूल, कुछ पंचायत में दो-दो सीनियर स्कूल हैं.
  • दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 5 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुलवाए, जिससे स्वास्थ्य सेवाएं सुदृढ़ हुई.
  • लोडेश्वर बांध, बाबा की बार बांध और गड़ा झुमझी बांध की नहरों का सुदृढ़ीकरण करवाया, जिससे सुदूर क्षेत्रों तक सिंचाई के लिए पानी पहुंचने की राह आसान हुई.

विधायक निधि का खर्च

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31 मार्च 2023 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष तक 4 साल के कार्यकाल में विधायक रामप्रसाद डिन्डोर को विधायक फंड के रूप में 12 करोड़ रुपये मिले. इसमें विभिन्न विकास कार्यों पर करीब 8 करोड़ रुपये खर्च किये गए, जबकि लम्बे समय से अधूरे पड़े कार्यों के चलते 4 करोड़ रुपये अभी तक खर्च नहीं हो पाए है.

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विधायक रामप्रसाद डिन्डोर ने 4 सालों में विधायक मद से पंचायतीराज विभाग के लिए 6 करोड़ और शिक्षा विभाग के लिए करीब 2 करोड़ रुपये के विकास कार्यों की अनुशंसा की है, जबकि चिकित्सा विभाग, सार्वजनिक निर्माण विभाग, जल संसाधन विभाग, खेल विभाग, पुलिस विभाग तथा जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में विकास कार्यों के लिए रामप्रसाद डिन्डोर ने जीरो बजट दिया है.

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अधूरे वादे

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  • माही केनाल का काम बजट के अभाव में लेट शुरू हुआ और बहुत धीमी गति से चल रहा है.
  • पहाड़ों पर सौर ऊर्जा के माध्यम से पानी पहुंचाने की योजना पर कुछ नहीं हो पाया.
  • गलियाकोट, सरोदा और ओबरी में सरकारी कॉलेज नहीं खुल पाए.

सीट के बारे में रोचक तथ्य

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सागवाड़ा विधानसभा सीट परंपरागत रूप से कांग्रेस की सीट रही है. सागवाड़ा में ज्यादातर समय एक ही परिवार का कब्ज़ा रहा. कांग्रेस के भीखा भाई भील यहां से 6 बार विधायक रहे तो वहीं भीखा भाई की बहन कमला देवी तीन बार और भीखा भाई के बेटे सुरेन्द्र बामनिया एक बार सागवाड़ा से विधायक रहे.

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सीट के बड़े तथ्य

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  • कांग्रेस के कद्दावर नेता भीखा भाई के जीते जी सागवाड़ा विधानसभा पर भाजपा कभी नहीं जीत पाई. 1951 से लेकर 2002 के बीच तक 50 साल सागवाड़ा पर भीखा भाई और उनकी बहन कमला देवी ने राज किया.
  • 2002 में भीखा भाई की मौत के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने पहली बार सागवाड़ा में अपना खाता खोला. उपचुनाव में भाजपा के कनकमल कटारा ने जीत दर्ज की.
  • कनकमल कटारा 2003 में आम चुनाव भी जीते और भाजपा सरकार में मंत्री भी बने.
  • 2013 में भाजपा से कनकमल कटारा की पुत्रवधू अनीता कटारा सागवाड़ा विधानसभा से विधायक बनी और बाद में टिकिट नहीं मिलने के कारण अनीता ने बागी प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और हार गई.

वर्तमान विधायक का राजनीतिक सफर

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विधायक रामप्रसाद डिंडोर के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1993 में सागवाड़ा विधानसभा सीट से इंडियन पीपुल्स पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ने के साथ की. दूसरा चुनाव भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी की टिकट से लड़ा. इसमें रामप्रसाद डिण्डोर चौथे नम्बर पर रहे. दो बार लगातार चुनाव हारने के बाद डिण्डोर ने राजनीति से कुछ समय के लिए दूरी बना ली और फिर वर्ष 2018 में बीटीपी की टिकट से फिर चुनाव लड़ा और कांग्रेस और भाजपा के साथ निर्दलीय प्रत्याशी को पटकनी देते हुए चुनाव में विजयी हुए.

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