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वो 5 फैक्टर जिनसे वसुंधरा से लेकर बालकनाथ तक पर भारी पड़ गए भजन लाल शर्मा

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राजस्थान विधानसभा चुनाव नतीजे आने के नौ दिन बाद बीजेपी के सरकार गठन की तस्वीर साफ हो गई है. मंगलवार को विधायक दल की बैठक में पहली बार विधानसभा का चुनाव जीतकर आए भजन लाल शर्मा को सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री के लिए चुन लिया गया है. बीजेपी ने दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को डिप्टी सीएम की कुर्सी सौंप कर सूबे में सियासी बैलेंस बनाने की कवायद की है. बीजेपी ने इस बार पीएम नरेंद्र मोदी के चहरे पर चुनाव लड़ा गया था. ऐसे में जीत के साथ ही सीएम की रेस में कई दिग्गज नेताओं के नामों की चर्चा चल रही थी, लेकिन बाजी भजन लाल शर्मा के हाथ लगती है. दो दशक से भी ज्यादा वक्त से राजस्थान में बीजेपी की सियासत की धुरी बनी वसुंधरा राजे से लेकर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अश्विनी वैष्णव, सांसद से विधायक बने बाबा बालकनाथ, दीया कुमारी, किरोड़ी लाल मीणा के नाम के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन बीजेपी विधायक दल की बैठक में जब पर्ची खुलती हैं तो उसमें मोदी मैजिक निकलता है. 56 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा विधायक दल की बैठक में आखिरी पंक्ति में बैठे नजर आते हैं, लेकिन पर्ची खुलते ही राजस्थान के तमाम दिग्गज नेताओं को पीछे छोड़ते हुए सीएम की रेस में सबसे आगे खड़े नजर आते हैं. ऐसे में ये सवाल उठता है कि कौन से वो फैक्टर रहे हैं, जिसके चलते वसुंधरा से लेकर बालकनाथ को साइड लाइन करके भजन लाल शर्मा को सत्ता की कमान सौंपी गई है.

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किसी गुट के न होने का मिला फायदा

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राजस्थान में बीजेपी कई गुटों में बटी हुई है और पार्टी में एकजुटता पर लंबे समय से सवाल उठते आ रहे थे. इसके चलते पार्टी को सियासी नुकसान हो रहा था. वसुंधरा राजे और पार्टी आलाकमान के बीच मनमुटाव की खबरें आए दिन सामने आती रहती हैं. लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी सभी गुटबाजी को खत्म करना चाहती है. इस गुटबाजी को खत्म करने के लिए भी ये बदलाव किया गया है, क्योंकि भजन लाल शर्मा किसी गुट का हिस्सा नहीं रहे हैं. उन्हें न तो वसुंधरा राजे के विरोधी गुट का माना जाता है और न ही करीबी हैं. इसी का लाभ भजन लाल शर्मा को मिला है. भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाने की पठकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी, जिसके चलते ही उन्हें बीजेपी की सेफ सीट से चुनाव लड़ाया गया है. बीजेपी ने भजनलाल शर्मा को इस बार जयपुर की सांगानेर सीट से निवर्तमान विधायक का टिकट काटकर चुनावी दंगल में उतारा गया था.

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ब्राह्मण चेहरे का मिला शर्मा को लाभ

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भजन लाल शर्मा ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. राजस्थान में 33 साल के बाद ब्राह्मण समुदाय से कोई मुख्यमंत्री बना है. बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में आदिवासी और मध्य प्रदेश में ओबीसी समुदाय से सीएम बनाने का फैसला कर लिया था, जिसके चलते ही राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी किसी सवर्ण समुदाय को मिलनी तय थी. राजस्थान में लंबे समय से ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठ रही थी और चुनाव से पहले पंचायत हुई थी. बीजेपी ने भजन लाल शर्मा को सत्ता की कमान सौंपकर ब्राह्मण समुदाय को सीधे संदेश दिया है. राजस्थान में करीब 7 फीसदी आबादी स्वर्ण समाज की है. ऐसे में इस समुदाय से राज्य का सीएम बनाकर बीजेपी इस समाज के वोट बैंक को साधने की पुरजोर कोशिस की है.इसके साथ ही बीजेपी ने राजपूत समाज से आने वाली दीया कुमारी और दलित समुदाय के नेता प्रेमचंद बैरवा को डिप्टीसीएम की कुर्सी सौंपी है. इस तरह से बीजेपी ने 2024 के चुनाव के लिहाज से मजबूत समीकरण बनाने का दांव चला है. सीएम की रेस में जिन नेताओं के नाम थे, उनमें भजन लाल शर्मा का नाम सरप्राइज था.

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संघ के करीबी होने का लाभ

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भजन लाल शर्मा को संघ के पृष्ठभूमि होने का सियासी फायदा मिला है. भजनलाल शर्मा के बीजेपी नेताओं के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी करीब हैं. उनके पार्टी और संघ दोनों में अच्छे संबंध होने का बड़ा फायदा मिला. बीजेपी के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे हैं.वे संघ के साथ लंबे समय तक काम किया है. मध्य प्रदेश में मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय भी संघ के करीबी रहे हैं. ऐसे में राजस्थान में भी वहीं ट्रेंड दिखा. सीएम चेहरा चुनने में संघ का भी फैक्टर प्रभावी दिखा.

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संगठन में काम करने का इनाम

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भजनलाल शर्मा को राजस्थान बीजेपी संगठन में सबसे लंबे समय से अपनी सेवा दे रहे हैं. एबीवीपी से अपना सियासी सफर शुरू करने वाले भजन लाल शर्मा राजस्थान प्रदेश संगठन में तीन बार से महामंत्री के रूप में काम कर रहे हैं. इस तरह से उनका अपना सियासी कद है. राजस्थान में बीजेपी जब भी बड़ा नेता आता था तो कार्यक्रम संचालन का जिम्मा शर्मा की संभालते थे, जिसके चलते पार्टी के दिग्गज नेताओं की नजर थे. वे पैराशूट से कूदकर बीजेपी में आने वाले नेता नहीं. इस तरह से संगठन से जुड़े होने का इनाम भजन लाल शर्मा को मिला है.

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नई पीढ़ी को सियासी संदेश

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बीजेपी आलाकमान 2024 के आम चुनावों से पहले राज्यों में अपने ऐसे सिपाहियों को बैठती दिख रही है, जो उनका खास हो. भजनलाल शर्मा इस प्रोफाइल में फिट बैठते हैं. बीजेपी ने संगठन में जमीन से जुड़े नेता को सीएम बनाकर पार्टी के दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं को सियासी संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी के लिए काम करने का इनाम मिलता है. बीजेपी ने यही काम मध्य प्रदेश में मोहन यादव और छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय को सीएम बनाकर दिया है. इस तरह से तीनों ही नेता संगठन और संघ से जुड़े रहे हैं.

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कैसे पिछड़े वसुंधरा-बालकनाथ

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बीजेपी ने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पुराने छत्रप की जगह नए चेहरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया है. छत्तीसगढ़ में 3 बार के सीएम रहे रमन सिंह की जगह विष्णदेव साय को सीएम चुना तो मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की जगह मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया. इससे यह तय हो गया था कि राजस्थान में वसुंधरा राजे को इस बार कमान नहीं मिलेगी. इस तरह वसुंधरा राजे सीएम की रेस में पीछे छूट गई, क्योंकि उन्हें सीएम बनाया जाता तो फिर दूसरा गुट विरोध में उतर जाता. इसके अलावा शीर्ष नेतृत्व के साथ भी उनके रिश्ते बहुत बेहतर नहीं रहे हैं. विधानसभा चुनाव नतीजे से साथ ही महंत बालकनाथ को सीएम का दावेदार माना जा रहा था, लेकिन मध्य प्रदेश में मोहन यादव को नाम की घोषणा होते ही वो रेस से बाहर गए. बालकनाथ और मोहन यादव एक ही जाति यादव समुदाय से आते हैं. ऐसे में मोहन यादव के साथ बालकनाथ को भी सीएम बनाया जाता तो सियासी संदेश सही नहीं जाता. मध्य प्रदेश में बीजेपी ने ओबीसी और छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीएम बनाए जाने के बाद तय था कि राजस्थान में किसी सवर्ण जाति के हाथों में सत्ता की कमान सौंपी जाएगी. ऐसे में भजन लाल शर्मा के हाथ सत्ता की बाजी लगी.

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