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ब्रांड और गारंटी का अब दूसरा नाम मोदी… INDIA गठबंधन के पास क्या है काउंटर प्लान?

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पिछले 4 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर लक्षद्वीप में बिताये पलों की तस्वीरों और वीडियो को शेयर किया था. प्रधानमंत्री मोदी ने इन तस्वीरों को शेयर करते हुए लिखा- द्वीपों की अनोखी सुंदरता. इसी के साथ उन्होंने भारतीय पर्यटकों को यहां आने की भी अपील की. यह लोकल इकोनोमी को बढ़ावा देने के संबंध में उनके हालिया प्रयासों का हिस्सा था. प्रधानमंत्री की इस सोशल मीडिया पोस्ट के बाद भारतीय पर्यटकों ने गूगल में सर्च की झड़ी लगा दी. वहीं मालदीव के मंत्रियों की ओर से कटाक्ष और कूटनीतिपूर्ण बयान भी सामने आये जाहिर है इससे उनके टूरिज्म की इकोनोमी पर बुरा असर पड़ सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 से बीजेपी के नंबर वन ब्रांड रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और लेखक शंकर अय्यर ने उस साल लिखा था- मोदी इज़ बोथ द मीडियम एंड दी मैसेज यानी मोदी ही माध्यम हैं और मोदी ही संदेश हैं. 2023 में पीएम मोदी ने उस चरण को पार कर लिया है, जिसे शोधकर्ता कलीम खान और तपिश पनवार भी मानते हैं.

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नतीजे के बाद आया गारंटी वाला नारा

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‘मोदी की गारंटी’ नारा पिछले नवंबर में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के दौरान पहली बार सामने आया. बीजेपी किसी भी राज्य में बिना सीएम चेहरे के चुनाव में उतरी. उन्होंने पीएम मोदी के डिलीवरी के ट्रैक रिकॉर्ड को सामने रखा जिसके बाद हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में बीजेपी का परचम लहराया. अब बीजेपी दो महीने में होने वाले 2024 के आम चुनाव को जीतने के लिए तैयार है. पं. जवाहरलाल नेहरू के बाद पीएम मोदी लगातार तीन कार्यकाल जीतने वाले पहले पीएम बन सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो मई 2029 तक तीन कार्यकाल पूरा करने वाले पीएम मोदी पहले प्रधानमंत्री बन सकते हैं. (पूर्व पीएम नेहरू का उनके तीसरे कार्यकाल के पूरा होने से दो साल पहले निधन हो गया था).

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हिंदुत्व और जन कल्याण के वादे

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ब्रांड मोदी की पहली गारंटी भ्रष्टाचार मुक्त शासन है. बीजेपी ने सन् 1990 में राम मंदिर आंदोलन को हिंदुओं को एकजुट करने और मंडल आयोग आंदोलन से उपजे जातीय ध्रुवों का मुकाबला करने के लिए आगे बढ़ाया. लेकिन मोदी को लगा कि इसकी भी अपनी सीमाएं हैं. मोदी की जीवनी लिखने वाले एंडी मैरिनो ने 2014 में लिखा था- हिंदुत्व से शुरुआती तौर पर वोट पाया जा सकता था लेकिन यह विकास का नारा ही था जिससे बीजेपी को लगातार चुनावी शक्ति मिली. इसके बाद बीजेपी सरकार ने कल्याणकारी इकोनोमी मॉडल तैयार किया. लोगों की जेब में पैसे डालने के लिए JAM का नारा दिया. यानी जन धन, आधार और मोबाइल. इसके माध्यम से भाजपा ने एक नया मतदाता वर्ग बनाया, जिसका नाम दिया गया- लाभार्थी. इन लाभार्थियों में वे भी शामिल हैं जिसे पीएम मोदी ने हाल ही में ‘चार नई जातियां’ कहा है, मसलन गरीब, युवा, किसान और महिलाएं. दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के तौर पर देश की अर्थव्यवस्था महामारी की आर्थिक मंदी में संभल गई. इसकी खास वजह थी सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे पर खर्च में वृद्धि. आंकड़ा कहता है- पिछले 7 साल के दौरान 67 लाख करोड़ रुपये के खर्च को 2030 तक 143 लाख करोड़ रुपये करने का लक्ष्य रखा गया है. हालांकि दो दशक पहले भी भाजपा इसी तरह तैयार दिखी थी. अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी थी. पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार और इंडिया शाइनिंग के नारे के साथ चुनाव में गई लेकिन 2004 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस से हार गई.

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कांग्रेस को 2004 की जीत की उम्मीद!

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वह जीत अब भी कांग्रेस के लिए एक उम्मीद की तरह है. 3 दिसंबर के नतीजों के एक दिन बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि 2003 में उनकी पार्टी सभी राज्यों में चुनाव हार गई, लेकिन 2004 में वापस आ गई. उन्होंने कहा कि आशा, विश्वास, धैर्य और दृढ़-संकल्प के साथ कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी करेगी और इंडिया गठबंधन जीतेगा. 2004 की हार के बारे में आरएसएस नेता शेषाद्रि चारी ने एक बार मुझे बताया था- पूरी पार्टी सरकार में शामिल थी, वस्तुतः चुनाव लड़ने वाला कोई नहीं था. मोदी-शाह की जोड़ी अब उस हार के प्रति सचेत है. 2014 के बाद से उन्होंने पार्टी को नतीजे देने वाले संगठन के रूप में बदल दिया है. आडवाणी-वाजपेयी के सालों की टेस्ट क्रिकेट वाली स्पीड को टी20 वाली स्पीड में बदल दिया गया है. पार्टी लगातार चुनावी मोड में है. पार्टी ने निर्वाचन क्षेत्रों में एक साथ कई स्तर पर रणनीति बनाई. मसलन- बूथ स्तर पर संयोजन, मतदाता सूची पर काम, मतदाताओं को बाहर लाना और पार्टी कार्यकर्ताओं को तैनात किया जाना वगैरह. प्रसिद्ध गुजराती व्यवसाय कौशल का उपयोग राजनीति में भी किया गया. मुंबई के रहने वाले मेरे एक कॉलेज-साथी हैं जोकि एक धनी पालनपुरी जैन हीरा परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने व्यवसाय और राजनीति के नंबर दोनों के बारे में समझाया कि मोदी-शाह की जोड़ी इस साल 400 से अधिक लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है. ‘अब की बार 400 पार’ का नारा 1984 में राजीव गांधी के 414 सीटों के रिकॉर्ड को पार करने के लिए दिया गया है. 1984 में भाजपा ने अपनी चुनावी शुरुआत की थी तब पार्टी को 2 लोकसभा सीटें मिली थी.

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बीजेपी को मिलेगी 400 से ज्यादा सीट?

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2024 में पार्टी मशीनरी को पहले से ज्यादा मजबूत किया गया है. आरएसएस कैडर को सक्रिय किया गया है. कैबिनेट मंत्रियों को तमिलनाडु और केरल जैसे सुदूर दक्षिणी राज्यों से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया है, जहां पार्टी का कोई वजूद नहीं है. हालांकि महाराष्ट्र को लेकर बीजेपी चिंतित है. यही वजह है कि पूरे राज्य को चार लोकसभा सीट समूहों में बांटा गया है. सभी समूह की देख-रेख एक पूर्व पार्टी अध्यक्ष द्वारा की जा रही है. प्रधानमंत्री ने दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे और 21 किलोमीटर लंबे मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक से लेकर कोरिडोर तक के बुनियादी ढांचे का उद्घाटन करना शुरू कर दिया है. 22 जनवरी को पीएम मोदी अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेंगे. इसे राष्ट्रीय आंदोलन में बदला जायेगा.

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किस हाल में है कांग्रेस पार्टी?

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कांग्रेस अभी भी एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है जो बीजेपी से लड़ सकती है. पार्टी दिसंबर में करारी हार के बाद से असमंजस में है. सीट बंटवारे पर इंडिया गठबंधन में सहयोगी दल अलग-अलग रुख अपना रहे हैं. राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा, कांग्रेस के 2019 के न्यूनतम मूल आय का वादा और 2023 की मेहनत अपेक्षित परिणाम नहीं दे सके. पिछले साल राहुल को बढ़ावा तो मिला लेकिन वह वोटों में तब्दील नहीं हुआ. यदि दूसरा प्रयास विफल हो जाता है तो कांग्रेस 2024 में तीन अंकों तक पहुंचने के लिए संघर्ष करेगी. जैसा कि एक पूर्व केंद्रीय मंत्री और राहुल गांधी के सहयोगी ने हाल ही में मुझसे कहा- हमारे लिए तीन अंकों तक पहुंचने की तुलना में भाजपा के लिए 200 सीटें हासिल करना आसान है. 2017 में यूपी चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद निराश नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर पोस्ट किया- इस नतीजे पर हमें 2019 को भी भूलना होगा और 2024 के लिए योजना बनानी होगी. जैसे कि अब 2024 में हालात हैं, विपक्ष को 2029 के लिए तैयारी करने की आवश्यकता हो सकती है- जब मोदी अपना तीसरा कार्यकाल पूरा करेंगे और संभवतः अपनी रिटारमेंट की घोषणा करेंगे.

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क्या हो सकता है 2029 के बाद?

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अगर मई 2029 की बात करें तो पीएम मोदी तब अपने 79वें जन्मदिन से महज चार महीने पीछे होंगे वहीं गुजरात के रहने वाले और 1977 में भारत के सबसे बुजुर्ग पूर्व प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई से एक साल छोटे होंगे. प्रधानमंत्री मोदी अनुमान लगाने वाले लोगों को पसंद करते हैं. जैसा कि उन्होंने हाल ही में इंडिया टुडे पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में कहा- जब मैं कुछ शुरू करता हूं, तो मुझे समापन बिंदु का पता होता है. लेकिन मैं शुरुआत में कभी भी अंतिम गंतव्य की घोषणा नहीं करता.

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