REPORT TIMES : भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बलिदान दिवस पर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि यह हमारे देश के इतिहास में एक महान दिन है. आज इस धरती के सबसे बेहतरीन सपूतों में से एक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का ‘बलिदान दिवस’ है. यह नाम अपने आप में पवित्र है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए धनखड़ ने कहा कि उन्होंने शानदार नारा दिया था, ‘एक विधान, एक निशान, और एक प्रधान ही होगा – देश में दो नहीं होंगे.’ उन्होंने यह 1952 में जम्मू-कश्मीर के आंदोलन में कहा था.
जम्मू-कश्मीर के एकीकरण में मुखर्जी के योगदान को याद करते हुए धनखड़ ने 1952 में अभियान के दौरान उठाए गए शक्तिशाली नारे पर प्रकाश डाला: ‘एक विधान, एक निशान और एक प्रधान होगा देश में, दो नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि लंबे समय तक हमने अनुच्छेद 370 की वजह से कष्ट झेले, जिससे हमें और जम्मू-कश्मीर राज्य को कई तरह से नुकसान हुआ.
अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर को लहूलुहान किया- धनखड़
उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर में भारतीय विश्वविद्यालय संघ (AIU) द्वारा आयोजित कुलपतियों के 99वें वार्षिक सम्मेलन और राष्ट्रीय सम्मेलन (2024-2025) के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि हम लंबे समय तक अनुच्छेद 370 से परेशान रहे. अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर को लहूलुहान किया. 35ए के सख्त कानून ने लोगों को बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा. उन्होंने कहा कि हमारे पास एक दूरदर्शी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह हैं. अनुच्छेद 370 अब हमारे संविधान में मौजूद नहीं है.
इसे 5 अगस्त 2019 को निरस्त कर दिया गया और 11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट में कानूनी चुनौती विफल हो गई. अपने देश के सबसे बेहतरीन सपूतों में से एक को श्रद्धांजलि देने के लिए इससे अधिक उपयुक्त स्थान मेरे पास और कोई नहीं हो सकता. उन्हें मेरी श्रद्धांजलि.
‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने शिक्षा के परिदृश्य को बदल दिया’
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर धनखड़ ने कहा कि मुझे आपके साथ कुछ ऐसा साझा करना है, जो 3 दशकों से अधिक समय के बाद हुआ है, जिसने वास्तव में हमारी शिक्षा के परिदृश्य को बदल दिया है. उन्होंने कहा कि हमारे विश्वविद्यालय केवल डिग्री बांटने के लिए नहीं हैं. वहां नवाचार के कठिन परीक्षा और विचारों के स्थान होने चाहिए. उपराष्ट्रपति ने कहा कि शिक्षा समानता लाती है. शिक्षा असमानताओं को कम करती है. शिक्षा लोकतंत्र को जीवन देती है. विश्वविद्यालयों को असहमति, वाद-विवाद, संवाद और चर्चा के लिए जगह देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति, वाद-विवाद, आदि हमारे लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं.