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परिसीमन के बाद किशनगढ़ बास सीट पर 2008 में कराए गए पहले चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार रहमत सिंह को जीत मिली. जबकि 2013 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर भागीरथ चौधरी यहां से विधायक बने. हालांकि 2018 के चुनाव में बीजेपी यहां पर चुनावी जीत की हैट्रिक नहीं लगा सकी. इस चुनाव में बसपा के दीपचंद को जीत मिली. लेकिन बाद में दीपचंद कांग्रेस के साथ जुड़ गए.

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राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी अभियान अब जोर पकड़ चुका है. यहां पर 25 नवंबर को वोटिंग कराई जानी है. सियासी तौर पर बेहद अहम माने जाने वाले अलवर जिले के तहत 11 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें मुंडावर सीट पर भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली थी. अलवर की 11 सीटों में से 7 पर कांग्रेस को जीत मिली तो 2-2 सीट निर्दलीय उम्मीदवारों और बीजेपी के पक्ष में गई थी. मुंडावर सीट पर कांग्रेस ने ललित यादव को तो बीजेपी ने मंजीत धर्मपाल चौधरी को उतारा है. हालांकि कांग्रेस में ललित को उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर विरोध-प्रदर्शन किए जा रहे हैं. दूसरी ओर, आजाद समाज पार्टी ने मुंडावर से अपना प्रत्याशी बदलते हुए अनिल बाल्मीकि की जगह अंजली यादव को मैदान में उतारा है.

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कितने वोटर, कितनी आबादी

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2018 के चुनाव में मुंडावर सीट के चुनावी परिणाम को देखें तो यहां पर 22 उम्मीदवारों ने अपनी दावेदारी पेश की थी. जिसमें बीजेपी के मंजीत धर्मपाल चौधरी को 73,191 वोट मिले तो बहुजन समाज पार्टी के ललित यादव को 55,589 वोट मिले थे. लोकतांत्रिक जनता दल के भरत यादव के खाते में 21,852 वोट आए. मंजीत धर्मपाल चौधरी ने 17,602 मतों के अंतर से जीत हासिल की. तब के चुनाव में मुंडावर विधानसभा सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 2,13,193 थी जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 1,11,745 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 1,01,439 थी. इसमें से कुल 1,60,518 (75.5%) वोटर्स ने वोट डाले. NOTA को पक्ष में 400 वोट ही पड़े थे.

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कैसा रहा राजनीतिक इतिहास

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मुंडावर विधानसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां पर बीजेपी का अभी दबदबा है. बीजेपी लगातार 2 बार से चुनाव जीत रही है. 1990 के चुनाव से लेकर अब तक के चुनाव परिणाम को देखें तो यहां पर 5 बार बीजेपी को जीत मिली. इसमें 2000 में हुआ उपचुनाव भी शामिल है. 1990 में कांग्रेस के टिकट पर घासी राम यादव विधायक चुने गए. वह 1993 में फिर से विजयी हुए. 1998 में बीजेपी ने यहां से खाता खोला.साल 2000 में यहां पर हुए उपचुनाव में भी यह सीट बीजेपी के पास ही रही. 2003 के चुनाव में बीजेपी के धर्म पाल चौधरी ने लगातार दूसरी बार चुनाव में जीत हासिल की. वह 2008 के चुनाव में हैट्रिक लगाने से चूक गए और कांग्रेस के मेजर ओपी यादव विधायक चुने गए. 2013 में बीजेपी के धर्म पाल चौधरी ने फिर से वापसी की और जीत हासिल की. 2018 में भी यह सीट बीजेपी के पास ही रही.

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