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दिल्ली: 11 जून 2023…राजस्थान की सियासत में इस तारीख को सबकी नजरें एक ही शख्स पर टिकी थीं. वह थे सचिन पायलट. ऐसा इसलिए, क्योंकि ऐसी चर्चा थी कि कांग्रेस का यह दिग्गज नेता अपनी नई पार्टी का ऐलान कर सकता है. कांग्रेस को हमेशा के लिए गुड बाय कह सकता है. राजनीति की गलियारों में अफवाहें तो ये भी उड़ीं की दो नई पार्टियां रजिस्टर हुईं हैं, ‘प्रगतिशील कांग्रेस’ और जनसंघर्ष पार्टी. हालांकि, ऐसा कुछ नहीं हुआ. तब जाकर कांग्रेस आलाकमान के नेताओं ने राहत की सांस ली. दरअसल, 11 जून को सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि भी थी. पिता की पुण्यतिथि पर सचिन ने राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ अपनी खुलकर नाराजगी जाहिर की. हालांकि, उन्होंने गहलोत का नाम तो नहीं लिया, पर इशारों ही इशारों में ये कह दिया कि हर गलती की सजा जरूर मिलती है. साथ ही यह भी दोहराया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी जंग जारी रखेंगे. राज्य की जनता को एक दिन न्याय जरूर मिलेगा.
प्रदेश में तीसरा मोर्चा कभी कारगर नहीं रहा
सचिन पायलट क्या अपनी नई पार्टी बनाएंगे, इसको लेकर 11 जून को वह कुछ नहीं बोले. शायद इसलिए भी क्योंकि सचिन पायलट राजस्थान की राजनीति के पुराने इतिहास को बखूबी जानते होंगे. प्रदेश में तीसरा मोर्चा कभी कारगर नहीं रहा, ये बात पायलट को अच्छी तरह से पता होगा. हालांकि, थोड़ा-बहुत बहुजन समाज पार्टी का प्रदेश की कुछ सीटों पर प्रभाव रहा है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने छह सीटें जीती थीं. इस चुनाव में इस पार्टी को महज चार प्रतिशत वोटों की ही प्राप्ति हुई थी.
हनुमान बेनीवाल की पार्टी महज तीन सीटें जीत पाई थी
इसी चुनाव में हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी पहली बार चुनावी अखाड़े में अपना किस्मत आजमाने उतरी थी. तब चुनावी रैलियों में बेनीवाल ने बड़े-बड़े दावे किए थे. एक दावा यह भी था कि उनकी पार्टी के नेता बीजेपी और कांग्रेस दोनों को कई सीटों पर हरा रहे हैं. पर जब चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो बेनीवाल की पार्टी महज तीन सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई.
किरोड़ीलाल मीणा की एनपीपी भी कुछ खास नहीं कर पाई
इससे पहले साल 2013 के विधानसभा चुनाव में जब किरोड़ीलाल मीणा ने बीजेपी से बगावत कर एनपीपी बनाई थी. एनपीपी चुनाव में महज चार सीटें ही जीत पाई. साल 1993 से राजस्थान की राजनीति में सरकार बदलने की परंपरा आ रही है. कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस, इन्हीं दोनों पार्टियों की सरकारें बनती हैं. अभी तक तो कभी कोई तीसरा दल इस मिथक को तोड़ नहीं पाया है. सचिन पायलट का राजस्थान कांग्रेस के अंदर काफी दबदबा है. साल 2018 के चुनाव में उन्होंने पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर खूब मेहनत की थी.
कैडर वोट के खो जाने का डर
राजनीतिक विश्लेषक ये मानते हैं कि कांग्रेस के कई विधायक 2018 के चुनाव में पार्टी के कैडर वोट और पायलट समर्थकों के वोटों की मदद से जीते थे. पायलट का पार्टी के कैडर वोटों पर भी गहरा प्रभाव है. पर अगर पायलट अपनी नई पार्टी बनाते हैं तो कैडर वोट उनकी हाथ से निकल सकता है. सचिन पायलट को राजनीति की अच्छी समझ है. बीजेपी और कांग्रेस को छोड़कर अन्य किसी दूसरे दल ने जब भी चुनावों में अपना भाग्य आजमाया, उन्हें करारी मात मिली है. यह बात शायद सचिन पायलट और उनके समर्थक भी जानते हैं.