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पहले स्प्रिंग वाले पंखे, अब जाल का घेरा… कोटा में छात्रों की मौत रोकने ‘सुसाइड प्रूफ’ प्लान

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राजस्थान के कोटा में इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी करने पहुंचने वाले छात्रों को सुसाइड से रोकने के लिए हॉस्टल और घरों की बालकियों में जाल लगाए जा रहे हैं. हॉस्टल मालिकों का कहना है कि वे सुसाइड जैसी दुखद घटनाओं को रोकने के लिए बिल्डिगों में जाल लगा रहे हैं. इससे पहले मालिकों की ओर से हॉस्टल के हर कमरे में स्प्रिंग वाले पंखों को लगाने के लिए कदम उठाया गया था.कोटा में स्थिति दिन पर दिन दयनीय होती जा रही है. जानकारी के मुताबिक, कोटा में इस साल 20 छात्र मौत को गले लगा चुके हैं. इनमें कुछ ने पंखे से लटककर तो कुछ ने छत से कूदकर जान दी हैं. अब तक किसी भी साल में हुई यह सर्वाधिक घटनाएं हैं. पिछले यानी 2022 में यह आंकड़ा 15 था. आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि कोटा में छात्रों के सुसाइड के मामले साल दर साल बढ़ते ही जा रहे हैं. इंजीनियरिंग के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE), मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए हर साल करीब 2 लाख से अधिक छात्र कोटा पहुंचते हैं. छात्रों की संख्या में भी दिन पर दिन बढ़ोतरी देखने को मिली है, लेकिन छात्रों की ओर से सुसाइड के मामलों ने कोचिंग संचालकों के साथ-साथ हॉस्टल मालिकों के लिए चिंता बढ़ा दी है.

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150 किलोग्राम तक वजन सह सकता है यह जाल

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आठ मंजिलों में 200 से अधिक कमरों वाले गर्ल्स हॉस्टल ‘विशालाक्षी रेजीडेंसी’ के मालिक विनोद गौतम ने कहा, हमने सभी लॉबी और बालकनियों में बड़े-बड़े जाल लगाए हैं ताकि छात्राएं ऊंची मंजिल से कूदें तो उन्हें रोका जा सके. ये जाल 150 किलोग्राम तक वजन सह सकते हैं और इनसे कोई घायल भी नहीं होगा. वहीं, एक अन्य हॉस्टल मालिक ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि सभी लॉबी, खिड़कियों और बालकनियों में लोहे की जाली लगाई गई हैं.

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घटना के बाद हॉस्टल मालिकों को भी होता है नुकसान

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उन्होंने कहा, ज्यादातर छात्र या तो पंखे से लटककर या ऊंची इमारत या छत से कूदकर आत्महत्या करते हैं. हमने किसी भी घटना से बचने के लिए दोनों तरह के उपाय किए हैं. इस तरह की घटनाओं से व्यवसाय भी प्रभावित होता है क्योंकि आत्महत्या की घटना के बाद छात्र उस छात्रावास से अन्य छात्रावास में स्थानांतरित होने लगते हैं. डिप्टी कमिश्नर ओपी बुनकर ने कहा कि हम बच्चों के नियमित मनोवैज्ञानिक परीक्षण से लेकर माता-पिता के साथ लगातार बातचीत करने जैसे कई उपाय कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जहां तक पंखों में स्क्रिंग जैसे उपकरण लगाने की बात है तो यह सुसाइड को रोकने में सहायक हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर कोई पंखे के जरिए सुसाइड में असफल होता हो जाता है तो उसे बाकी छात्रों को परामर्श देना आसान हो जाता है.

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