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बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार में हो रही देरी से आरजेडी और कांग्रेस में खलबली है. विपक्षी एकता की पहली मीटिंग पटना में होने के बाद से ही कांग्रेस और आरजेडी के नेताओं में मंत्रिमंडल विस्तार की उम्मीदें बढ़ गई थीं. लेकिन बेंगलुरू में दूसरी मीटिंग के बाद से बिहार का कैबिनेट एक्सपेंशन अधर में लटकता हुआ दिख रहा है. वैसे सीएम से बुधवार को जब ये पूछा गया तो उन्होंने विस्तार की बात तो कही लेकिन सीएम के जवाब में विश्वास कम और टालमटोल ज्यादा दिख रहा था.दरअसल नीतीश सवाल को तेजस्वी की ओर डाइवर्ट कर टालमटोल की कोशिश कर रहे थे. लेकिन हाल के दिनों में तेजस्वी सहित आरजेडी के मंत्रियों के सारे फैसले खारिज किए जाने के बाद सरकार में उनकी असली हैसियत को लेकर किसी को शक नहीं रह गया है.विपक्ष की दूसरी मीटिंग बेंगलुरू में 18 जुलाई को संपन्न होने के बाद नीतीश कुमार के तेवर बदले बदले दिख रहे हैं. बेंगलुरू में दूसरी मीटिंग के दरमियान नीतीश कुमार इकलौते नेता थे, जिन्हें निशाने पर लिया गया था. शहर के चौक चौराहे पर नीतीश की विश्वसनियता पर सवाल उठाकर नीतीश के खिलाफ बड़े बड़े पोस्टर्स लगाए गए थे. ज़ाहिर है दूसरी मीटिंग कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक में संचालित हो रही थी और कांग्रेस का पूरा फोकस नीतीश से शिफ्ट होकर ममता और केजरीवाल पर दिखाई पड़ रहा था.
कांग्रेस केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ केजरीवाल का साथ देने का एलान कर चुकी थी वहीं विपक्षी पार्टियों के गंठबंधन को ‘इंडिया’ नाम देने से पहले ममता बनर्जी से सलाह मशविरा कांग्रेस के बदलते मिजाज को बखूबी बयां कर रहा था. विपक्षी एकता के सूत्रधार कहे जाने वाले नीतीश कुमार के लिए ये अटपटे कहानी से कम नहीं था. इसलिए विपक्षी पार्टियों के प्रेस कॉफ्रेंस से पहले ही नीतीश कुमार लालू और तेजस्वी यादव के साथ बेंगलुरु छोड़कर निकल गए और विपक्षी एकता को लेकर उनकी उत्सुता का जोश ठंढ़ा पड़ता दिख रहा है.
कैबिनेट एक्सपेंशन के सवाल पर टालमटोल कर रहे नीतीश
ज़ाहिर है नीतीश के ये बदले रुख का ही परिणाम है कि बिहार में सरकार के सबसे बड़े घटक दल आरजेडी के मंत्रियों द्वारा लिए गए फैसलों को वो खारिज कर दे रहे हैं. वहीं कैबिनेट एक्सपेंशन के सवाल पर नीतीश टालमटोल करते दिख रहे हैं. गौरतलब है कि कांग्रेस के नजदीक ले जाने की जिम्मेदारी लालू प्रसाद की थी और बिहार की सरकार में कैबिनेट एक्सपेंशन में जगह आरजेडी और कांग्रेस के विधायकों को ही दिया जाना है.
नीतीश बेंगलुरु में सीन से पूरी तरह गायब थे
आरजेडी नीतीश कुमार को कांग्रेस के साथ बेहतर तालमेल कराएगी ऐसा माना जा रहा था. कहा जा रहा था कि केन्द्र में बेहतर उम्मीद के बाद ही नीतीश बिहार की सत्ता को तेजस्वी के हाथों सौंपेंगे और खुद केन्द्र की राजनीति करने दिल्ली की ओर रुख करेंगे. लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है.पटना में दूल्हें की भूमिका में नीतीश बेंगलुरु में सीन से पूरी तरह गायब थे. इसलिए कैबिनेट एक्सपेंशन की पेंच कस दी गई है.
मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं किए जाने से RJD में भी मायूसी
इसी वजह से आरजेडी कोटे से शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर अपने मंत्रालय में पिछले तीन सप्ताह से कदम तक रख नहीं पा रहे हैं. शिक्षा विभाग के सारे फैसले आला अधिकारियों द्वारा लिया जा रहा है. कृषि मंत्रालय और कानून विभाग भी आरजेडी के पास था. लेकिन मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं किए जाने से आरजेडी में भी मायूसी है. आरजेडी अपने कोटे से दो और मंत्री को मंत्रीपद देना चाह रही है लेकिन नीतीश कुमार की हरी झंडी नहीं मिलने से ये अधर में लटका पड़ा है.
शिक्षा मंत्री को मंत्रिपद से हटाए जाने की चर्चा
वहीं शिक्षा मंत्री को मंत्रिपद से हटाए जाने की चर्चा है लेकिन ये सब फिलहाल ठंढ़े बस्ते में पड़ा हुआ दिख रहा है. मंत्री पद के इंतजार में कुछ नेता अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. प्रदेश कांग्रेस में भी इस बात की खलबली है और दो बर्थ पाने की उम्मीद में प्रदेश कांग्रेस इकाई लंबे समय से इंतजार कर रही है. सरकार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी सीएम की हां में हां भरने की कला सीख गए हैं लेकिन कैबिनेट एक्सपेंशन की तारीख को लेकर तेजस्वी यादव के पास कोई ठोस जवाब नहीं है ये तेजस्वी के आव भाव से साफ पता चलता है.
मंत्रियों के फैसले इतने बेतरतीब तरीके से पलटे नहीं जाते
वैसे भी सरकार में तेजस्वी फैसले लेने के हकदार होते तो उनकी और उनके मंत्रियों के फैसले इतने बेतरतीब तरीके से पलटे नहीं जाते ये सबको मालूम है. ज़ाहिर है आरजेडी अपनी रणनीति के हिसाब से दांव खेल रही है. लोकसभा चुनाव तक नीतीश कुमार के साथ हां में हां मिलाकर चलना उसकी प्रथामिकताओं में है. इसलिए नीतीश कुमार सरकार के मुखिया के नाते जो भी करें उनका प्रतिकार करने से आरजेडी साफ बच रही है.
मंत्रिमंडल विस्तार के फैसले में देरी का अभिप्राय क्या है ?
मंत्रिमंडल विस्तार में विलंब गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं होने की ओर इशारा करती है. इसकी बानगी इस बात में साफ दिखाई पड़ रही है कि आरजेडी के कद्दावर मंत्रियों की सिफारिश को सीएम ऑफिस सिरे से खारिज कर दे रहा है. आलोक मेहता और तेजस्वी यादव सरीखे नेता अपने विभाग में मनमाफिक अफसरों को बहाल नहीं कर पा रहे हैं. वहीं शिक्षा मंत्री के लिए मंत्रालय के दफ्तर के रास्ते बंद नजर आ रहे हैं. सवाल कई संभावनाओं का है. विपक्षी एकता की तीसरी मीटिंग से पहले नीतीश कुमार के मनोनुकुल कोई संभावनाएं बनती हैं तभी राज्य में कांग्रेस को इसके फलस्वरूप इनाम मिलने की गुंजाइश है.
RJD की हालत वर्तमान में BJP जैसी
पहली मीटिंग जो पटना में संपन्न हुई थी, उसमें नीतीश कुमार की भूमिका प्रमुख दिख रही थी. नीतीश कुमार कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी की आवभगत में पूछ रहे थे कि कितने कांग्रेस के विधायकों को कैबिनेट में जगह देना है. लेकिन पटना का माहौल बेंगलुरु में पूरी तरह से बदला हुआ था. नीतीश अहम किरदार की भूमिका में दूर-दूर तक कहीं नहीं दिख रहे थे. इसलिए कांग्रेस सहित आरजेडी को इसका खामियाजा बिहार में भुगतना पड़ रहा है. आरजेडी के एक बड़े नेता के मुताबिक नीतीश के एजेंडे को जो सूट नहीं करेगा वो उनसे करा पाने की हैसियत किसी नेता और दल में नहीं है. आरजेडी नेता आगे कहते हैं कि आरजेडी की हालत वर्तमान समय में बीजेपी जैसी ही है. इसलिए बिहार में आरजेडी के लिए भी नीतीश की हां में हां मिलाना अभी मजबूरी है.