Report Times
latestOtherकरियरटॉप न्यूज़ताजा खबरेंदिल्लीराजनीतिस्पेशल

‘सरकार, अब मैं अब बूढ़ा हो गया हूं’, कहानी उस डीपी यादव की जो कभी थे नेताजी की पहचान

REPORT TIMES 

Advertisement

2022, मई का महीना था. दोपहर करीब 12 बजे गाजियाबाद के तत्कालीन एसएसपी शहर में पैदल मार्च कर ऑफिस लौटे थे. वह अपनी कुर्सी पर बैठे ही थे कि कांस्टेबल ने उनकी टेबल पर एक पर्ची रख दी और कहा कि ये साहब मिलने आए हैं. कप्तान ने भी हमेशा की तरह बिना पर्ची देखे कहा कि भेजो. इसके बाद चैंबर में एक बुजुर्ग व्यक्ति दाखिल हुए. सिर पर पगड़ी, पैरों में सामान्य सी चप्पल और बदन पर सिकुड़ा हुआ कुर्ता-पाजामा. हाथ जोड़ते हुए बुजुर्ग ने कप्तान को नमस्ते किया. चूंकि कप्तान उन्हें पहचानते नहीं थे, इसलिए टेबल पर रखी फाइलों में झांकते हुए बोले- बाबा अपनी समस्या बताइए.बुजुर्ग ने कहा कि साहब मै डीपी यादव हूं तो अब चौंकने की बारी कप्तान की थी. तुरंत उन्होंने सिर ऊपर उठाया और चौंकते हुए बोले- आप… डीपी यादव! तब डीपी यादव ने दोहराते हुए कहा कि जी हां, मैं डीपी यादव ही हूं. अब बूढ़ा हो गया हूं. इसके बाद कप्तान ने उन्हें बैठने का इशारा किया. पूछा कि बताइए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं. डीपी यादव ने कहा कि सरकार, मैं बूढ़ा हो गया हूं, सार्वजनिक जीवन से भी दूर हूं, लेकिन मेरी हिस्ट्रीशीट मुझे चैन से बैठने नहीं दे रही. साहब अब मेरे ऊपर कृपा करो और इसे बंद करा दो. कप्तान ने दो मिनट सोचा और फिर कहा कि आप तो बी श्रेणी के हिस्टीशीटर हैं. आपके खिलाफ संगीन मामले अब भी विचाराधीन हैं. अब तो आपकी हिस्ट्रीशीट तभी बंद होगी, जब आपकी सांसे थमेंगी.

Advertisement

Advertisement

डीपी को हीरो मानते हैं नोएडा के लोग

Advertisement

क्राइम सीरीज में हम आज उसी डीपी यादव की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्हें कुछ लोग नोएडा के हीरो बताते हैं तो कुछ लोग बाहुबली. लोग उन्हें चाहे जो कहें, डीपी यादव को ना तो पहले कभी फर्क पड़ा और ना ही उन्हें आज इससे कोई दिक्कत है. मूल रूप से नोएडा में सेक्टर 71 से लगे सरफाबाद गांव के रहने वाले डीपी यादव अब गाजियाबाद में पुलिस कमिश्नरेट के पीछे राजनगर में रहते हैं. सादगी ऐसी कि कोई आवाज भी लगाए तो वह बेधड़क और निडर भाव से बाहर निकल आते हैं. कोई उनसे मदद की अपेक्षा रखे तो वह कभी निराश नहीं करते. डीपी यादव सुर्खियों में तब आए जब उनके राजनीतिक गुरु महेंद्र भाटी की दादरी में 13 नवंबर 1992 को हत्या हो गई. आरोप लगा कि इस वारदात को खुद डीपी यादव ने ही अंजाम दिया है. मामले की सुनवाई गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट में हुई और डीपी यादव के खिलाफ दोष प्रमाणित होने के साथ उन्हें उम्रकैद की सजा हो गई. लेकिन डीपी यादव ने कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील दाखिल की और इसके बाद मामले के रिव्यूपिटीशन पर उत्तराखंड के हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. जहां हाईकोर्ट ने 10 नवंबर 2021 को गाजियाबाद के सीबीआई कोर्ट का फैसला पलट दिया. इस प्रकार महेंद्र भाटी हत्याकांड में डीपी यादव बाइज्जत बरी हो गए.

Advertisement

शराब कारोबार से चमके

Advertisement

25 जुलाई 1948 को पैदा हुए डीपी यादव का वैसे तो पूरा नाम धर्मपाल यादव है, लेकिन इस नाम को उन्होंने उसी समय छोड़ दिया था, जब वह शराब के कारोबार में उतरे. 7 भाई और 3 बहनों में से एक डीपी यादव के पिता दिल्ली के जगदीश नगर में दूध का कारोबार करते थे. डीपी खुद साइकिल पर दूध की बाल्टी भरकर सरफाबाद से जगदीश नगर जाते थे. इस कारोबार में उन्हें कुछ ही दिन हुए थे कि शराब कारोबारी बाबू किसन लाल से मुलाकात हुई. यही वह दौर था, जब डीपी ने अपनी साइकिल और दूध की बाल्टी को फेंक कर शराब के कारोबार को अपना कदम रख दिया. 80 के दशक में दिग्गज कांग्रेसी नेता महेंद्र भाटी दादरी से विधायक थे. शराब के कारोबार के दौरान ही डीपी विधायक भाटी के संपर्क में आए. कहा जाता है कि डीपी यादव को राजनीति का ककहरा महेंद्र भाटी ने ही सिखाया था. लेकिन डीपी यादव का असली इस्तेमाल सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने किया. दरअसल मुलायम सिंह ने 1989 में जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई थी. लेकिन इस पार्टी के लिए उन्हें रसूख वाले नेताओं के साथ पैसे वाले नेताओं की जरूरत थी. उन दिनों शराब के कारोबार से डीपी यादव के पास बहुत पैसा आ गया था. ऐसे में मुलायम सिंह ने डीपी को बुलाकर सपा का जनरल सेक्रेटरी बना दिया.

Advertisement

कांग्रेस से शुरू की राजनीति

Advertisement

इसी बीच 1992 में महेंद्र सिंह भाटी की हत्या हो गई. आरोप डीपी पर था, बावजूद इसके मुलायम सिंह यादव ने 1993 के चुनाव में बुलंदशहर से टिकट देकर विधायक बना दिया. बाद में डीपी यादव का सपा से मोह भंग हो गया और उन्होंने मुलायम सिंह की साइकिल से उतर मायावती के हाथी पर सवार हो गए. फिर मायावती ने डीपी को राज्य सभा भेजा. कुछ दिन बसपा में रहने के बाद डीपी यहां से भी अलग हुए और अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़े. लगातार दो चुनाव हारने के बाद अब वह राजनीति से सन्यास लेकर गृहस्थ जीवन बिता रहे हैं.

Advertisement

मरने के बाद बंद होती है बी श्रेणी की हिस्ट्रीशीट

Advertisement

बी श्रेणी के गैंगस्टर डीपी यादव के संबंध में एडिश्नल एसपी अभय मिश्रा कहते हैं भारतीय कानून व्यवस्था में अपराधियों को दो श्रेणी में बांटा गया है. जो छोटे मोटे अपराधी होते हैं, उन्हें ए श्रेणी का अपराधी कहते हैं. इसका मतलब यह है कि इनके सुधरने की संभावना है. इनकी हिस्ट्रीशीट आम तौर पर कप्तान खोलते और बंद करते हैं. लेकिन बी श्रेणी में जघन्य अपराध करने वाले बदमाशों को रखा जाता है. इस कैटेगरी के बदमाशों के बारे में माना जाता है कि इनके सुधरने की गुंजाइश ना के बराबर है. इनकी हिस्ट्रीशीट आईजी या एडीजी रैंक के पुलिस अधिकारी खोलते हैं. वहीं इनकी हिस्ट्रीशीट को बंद करने का कोई विकलप नहीं होता. जब इस श्रेणी के अपराधियों की मौत होती है तो उनकी फाइल के साथ हिस्ट्रीशीट भी अपने आप बंद होती है. जहां तक डीपी यादव की बात है तो उनका नाम गाजियाबाद के कविनगर थाने के जघन्य अपराधियों में शामिल है. बी श्रेणी के अपराधियों में उनका नाम 69वें स्थान पर दर्ज है.

Advertisement
Advertisement

Related posts

झुंझुनूं : प्रशासन ने मलसीसर में रुकवाया बाल विवाह

Report Times

IPL 2024: मैच में बौखला गए विराट कोहली, देखें

Report Times

दिल्ली-हिसार व हिसार-रेवाड़ी रेलसेवाऐं मार्ग परिवर्तित रहेगी एवं दिल्ली-गोगामेड़ी व गोगामेड़ी-रेवाड़ी के मध्य अस्थाई रूप से होगी संचालित

Report Times

Leave a Comment