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हिंदुत्व बनाम जातिवाद की लड़ाई से मोदी का काउंटर करने की विपक्षी कोशिश

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लोकसभा चुनाव 2024 की सियासी पटकथा लिखी जा रही है. रामचरितमानस को लेकर बिहार से शुरू हुई सियासत उत्तर प्रदेश से होते हुए अब उससे आगे बढ़ गई है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे व राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने तो सनातन धर्म पर ही हमला बोल दिया. सनातन धर्म की तुलना कोरोना, मलेरिया और डेंगू वायरस और मच्छरों से करते हुए उदयनिधि ने कहा कि ऐसी चीजों का विरोध ही नहीं बल्कि खत्म कर देना चाहिए. उदयनिधि के बयान पर सियासत गरमा गई है. इसी तरह रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों को महिला और दलित विरोधी बताते हुए उन्हें हटाने की मांग की गई थी.भारतीय राजनीति इन दिनों दो ध्रुवों में बंटी हुई नजर आ रही है. बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति का तानाबाना बुन रही है. बीजेपी और आरएसएस लंबे समय से अलग-अलग जातियों में बिखरे हुए हिंदुओं को हिंदुत्व के छतरी के नीचे एक साथ लाने की कोशिशों में जुटी हुई है. बीजेपी को इस दिशा में काफी हद तक सफलता भी हाथ लग चुकी है. वहीं, मंडल पॉलिटिक्स से निकले क्षत्रप सामाजिक न्याय के सहारे जातीय सियासत को धार दे रहे हैं, जिसके लिए वो रामचरितमानस से लेकर सनातन धर्म तक पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं. ये सारी कवायद यूं ही नहीं हो रही है बल्कि उसके पीछे राजनीतिक दलों के सियासी निहितार्थ भी हैं.

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अभी क्यों उठा सनातन धर्म का मुद्दा ?

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दरअसल, सवाल यह है कि सनातन धर्म का मुद्दा अभी क्यों उठा? इस देश की कुल आबादी में हिंदुओं की संख्या करीब 110 करोड़ है और इनमें भी 80 फीसदी से ज्यादा लोग सनातन धर्म के मानने वाले हैं. हिंदुत्व की पॉलिटिक्स की बात करें तो उत्तर भारत के राज्यों में खूब फली-फूली है जबकि दक्षिण के राज्यों में सामाजिक न्याय की सियासत हावी रही है. हालांकि, 90 के दशक में हिंदी बेल्ट वाले राज्यों में दलित और ओबीसी की राजनीति का उभार हुआ, लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से धीरे-धीरे हाशिए पर पहुंच गई है. उत्तर भारत में दलित समुदाय के बीच राजनैतिक चेतना जगाने वाले कांशीराम के निधन के बाद मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन बसपा की सियासत को सहेजकर नहीं रख सकीं. इसी तरह महाराष्ट्र से लेकर बिहार तक दलित सियासत खत्म होती नजर आ रही है. मुलायम सिंह यादव ने यूपी में ओबीसी की राजनीति को खड़ा किया, लेकिन उनके बेटे अखिलेश यादव संभालकर नहीं रख सके. बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स का दबदबा अभी भी बना हुआ है, जिसे बीजेपी यूपी के तर्ज पर तोड़कर हिंदुत्व की राजनीतिक को स्थापित करने की कोशिशों में जुटी है.

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हिंदुत्व के इर्द-गिर्द सिमटी है देश की सियासत

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वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि देश की सियासत पूरी तरह से हिंदुत्व के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से देश का राजनीतिक पैटर्न पूरी तरह से बदल गया है. देश में अब बहुसंख्यक (हिंदू) समाज केंद्रित राजनीति हो गई है और बीजेपी इस फॉर्मूले के जरिए लगातार चुनावी जीत भी मिल रही है. आरएसएस और बीजेपी को जातियों में बिखरे हुए हिंदुओं को एकजुट करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी है तब कहीं जाकर उसे इस दिशा में सफलता मिली है. संघ और बीजेपी की यही कोशिश है कि अलग-अलग जातियों में बिखरे हुए लोगों को हिंदुत्व के नाम पर एकजुट रखा जाए, जिसके लिए उन्हें यह लगातार यह बताया जा रहा है कि पहले हिंदू हो उसके बाद दलित-ओबीसी-सवर्ण हो.

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कास्ट पॉलिटिक्स पर गहरा गया संकट

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विजय त्रिवेदी बताते हैं कि कैसे तमाम हिंदुओं को एक प्लेटफार्म पर लाया जा सके. इसके लिए संघ शुरू से ही काम कर रहा है. संघ यह मानता रहा है कि भारत में रहने वालों की अपनी-अपनी परंपराएं और रिवाज अलग-अलग हैं, लेकिन वो सभी सनातनी हैं. यहां मूर्तिपूजक भी हिंदू है और निराकारपंथी भी हिंदू हैं. आस्तिक भी हिंदू है और नास्तिक भी हिंदू है. संघ प्रमुख तो मुसलमानों को भी हिंदू बताते हुए कहते रहे हैं कि उनके पूर्वज हिंदू ही रहे हैं. इस तरह सभी हिंदू हैं और हिंदू धर्म की मुख्य धारा सनातनपंथी ही. इस तरह संघ लार्जर प्लान पर काम कर रहा है और अब इस दिशा में कहीं जाकर उसे सफलता मिली है तो राजनीति में उसी का लाभ बीजेपी को मिल रहा है. भाजपा और संघ ने हिंदुओं की तमाम जातियों को एक करने का काफी हद तक सफल रही है, जिससे कास्ट पॉलिटिक्स पर संकट गहरा गया है.

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सनातन धर्म को खत्म कर देना चाहिए

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पुत्र व खेल विकास मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने ‘सनातन उन्मूलन परिसंवाद’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि सनातन धर्म सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है. कुछ चीजों का विरोध तो नहीं किया जा सकता, उन्हें ही पूरी तरह खत्म किया जाना चाहिए. हम डेंगू, मच्छर, मलेरिया या कोरोना का विरोध नहीं कर सकते. इसी तरह हमें सनातन को खत्म करना है. उदयनिधि ने कहा कि सनातन नाम संस्कृत का है. यह सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ है, इसमें किसी तरह से सुधार की गुंजाइश नहीं है. उदयनिधि अपने इस बयान पर पूरी तरह से कायम है.

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उत्तर भारत की राजनीति से अलग तमिलनाडु की सियासत

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उदयनिधि के बयान को राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि तमिलनाडु की सियासत हमेशा से उत्तर भारत की राजनीति से अलग रही है. करुणानिधि ने अपनी पार्टी की हिंदू हिंदी संस्कृत और देवी देवताओं को न मानने वाली सियासी विचारधारा को इतना मजबूती के साथ आगे बढ़ा रहे थे कि उनको इसमें हमेशा सियासी फायदा ही नजर आया है. विजय त्रिवेदी कहते हैं कि तमिलनाडु की राजनीति हमेशा से उत्तर भारत की विरोधी रही है. यहां हमेशा हिंदी, हिंदू, संस्कृत और देवी देवताओं के अस्तित्व पर सवाल उठाए जाते रहे हैं. करुणानिधि ने भगवान राम पर ही सवाल उठाते हुए एक जनसभा में पूछ लिया था कि रामसेतु का निर्माण आखिर राम कैसे कर सकते थे.

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उदयनिधि ने INDIA को मुसीबत में डाला

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स्टालिन की पार्टी डीएमके विपक्षी गठबंधन INDIA का हिस्सा है, जिसमें कांग्रेस सहित उत्तर भारत की तमाम राजनीतिक पार्टियां शामिल हैं. डीएमके सनातन धर्म पर सवाल खड़े करके तमिल के लोगों को सियासी संदेश देना चाहती है. सनातन धर्म पर विवादित बयान देकर उदयनिधि ने भले ही विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA को मुसीबत में डाल दिया हो, लेकिन तमिलनाडु में पार्टी के विस्तार और जनाधार को बहुत मजबूत करने का बड़ा सियासी दांव चल दिया है. उत्तर से लेकर दक्षिण तक इन दिनों जिस तरह से सामाजिक न्याय की राजनीति को धार दी जा रही है, उसके पीछे उनका राजनीतिक मकसद जगजाहिर है.

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भाजपा से बिदक सकती हैं OBC-दलित जातियां

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वरिष्ठ पत्रकार संजीव चंदन कहते हैं कि सनातन के नाम पर हिन्दू धर्म या समाज में थोड़े से भी सुधार का विरोध होता रहा है. वैदिक दायरे में भी सुधार करने वाले आर्य समाज का विरोध इसी ‘सनातन’ विचार के जरिए हुआ. उदयनिधि स्टालिन ने सनातन खात्मे की बात करते हुए एक बहस को जन्म दे दिया है. इस बहस को बीजेपी जितना हवा देगी उसे उतना ही नुकसान होगा. सामाजिक न्याय के धड़े से हिंदुत्व और सनातन के नाम पर वर्ण वर्चस्व की कोशिश, ब्राह्मणवाद को पोषित करने की कोशिश की जाएगी. इससे भाजपा के समर्थन में आने वाली ओबीसी-दलित जातियां भाजपा से बिदक सकती हैं.

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रामचरितमानस पर हो चुका है बवाल

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वह कहते हैं कि बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और यूपी में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य का रामचरितमानस पर दिया गया बयान बीजेपी-संघ की हिंदुत्व पॉलिटिक्स के समानांतर सामाजिक न्याय की राजनीति को खड़े करने की रणनीति थी. स्वामी प्रसाद से लेकर उदयनिधि स्टालिन अपने बयान पर टिके हैं, ये उनकी वैचारिक दृढ़ता को भी स्प्ष्ट करता है और उन्हें उनकी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का भी साथ मिला है. देश में जाति व्यवस्था खत्म हो, एक ही धर्म के अनुयायियों में जन्मगत आधार किसी तरह का भेद न हो, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता. सामाजिक न्याय के नाम पर दलित-पिछड़े वर्ग का उत्थान कम और राजनीतिक ज्यादा है.

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हिंदुत्व की सियासत को BJP ने दिया नया मुकाम

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वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी कहते हैं कि बीजेपी ने हिंदुत्व की सियासत को एक नया मुकाम दे दिया है. पहले राम मंदिर और अब काशी-मथुरा और भी कई ऐसे तीर अभी उसके तरकस में हैं, जिनकी चकाचौंध में आम हिंदू अपने ही धर्म के अंतर्विरोधों और जातीय यातनाओं को भुलाए बैठा है. ऐसे में गैर बीजेपी दलों खासकर मंडल पॉलिटिक्स से निकले नेताओं को अपना सियासी भविष्य खतरे में दिख रहा है. बीजेपी के हिंदुवादी राजनीति के सामने एक राजनीति करनी की है, जिसमें धर्म से पहले जाति को अहमियत देने की है. उत्तर भारत में बीजेपी के वोटबैंक बन चुके ओबीसी और दलितों को क्षेत्रीय दल अपने खेमे में वापस लाने की कोशिश कर रही है. इसीलिए विपक्षी गठबंधन INDIA जातिगत जनगणना के मुद्दे पर मांग उठा रहे हैं ताकि दलित और ओबीसी को अपने पक्ष में एकजुट कर बीजेपी से मुकाबला करना चाहते हैं.

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चंद्रशेखर-स्वामी मौर्य की भी जुबान फिसली

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उदयनिधि से लेकर बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर और सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य तक की जुबान फिसली नहीं है बल्कि सोची-समझी रणनीति के तहत दिया गया बयान है. तीनों ही नेता भले ही अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों में हो, लेकिन विचारधारा एक ही है. तीनों ही नेता ओबीसी समुदाय से आते और सामाजिक न्याय और अंबेडरवादी हैं. इसके चलते ये ब्राह्मणवाद से लेकर सनातन तक अपने निशाने पर ले रहे हैं और अपने स्टैंड पर पूरी तरह से कायम भी है. सामाजिक न्याय के नाम पर जातिवाद को खत्म करने की पैरवी की जाती है तो सनातन धर्म के सहारे जाति व्यवस्था को खत्म कर हिंदुत्व के पहचान की पैरवी की जाती है.

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