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मध्य प्रदेश के भिंड जिले की मेहगांव विधानसभा सीट क्षेत्रफल के लिहाज से प्रदेश की सबसे बड़ी विधानसभा सीट है. इसके अंतर्गत चार बड़े कस्बे मध्य में मेहगांव, पश्चिम में गोरमी, पूर्व में रौन और दक्षिण में अमायन आते हैं. मेहगांव सीट राजनीतिक रूप से काफी अहमियत रखता है और यह हाई प्रोफाइल सीटों में से एक सीट है. 2018 के चुनाव में यह कांग्रेस के खाते में गई थी, लेकिन 2020 में राज्य में हुए दलबदल के बाद कराए गए उपचुनाव में यह सीट बीजेपी के पास आ गई. साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेहद करीबी ओपीएस भदौरिया चुनाव लड़े और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के राकेश शुक्ला को 20 हजार से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया. इसके बाद अंचल के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावती तेवर दिखाने और कांग्रेस छोड़े जाने के साथ मेहगांव विधायक ओपीएस भदौरिया भी बागी हो गए और उन्होंने 2020 में कांग्रेस छोड़ दी.
कितने वोटर, कितनी आबादी
2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तब के चुनाव में 34 उम्मीदवार मैदान में थे. लेकिन चतुष्कोणीय मुकाबले में जीत कांग्रेस के भदौरिया के हाथ लगी. चतुष्कोणीय मुकाबले में भदौरिया ने 25,814 मतों के अंतर से जीत हासिल की. बीजेपी के राकेश शुक्ला दूसरे स्थान (35,746) पर रहे. 2020 के उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले भदौरिया को 73,599 वोट मिले. जबकि कांग्रेस के हेमंत सत्यदेव कटारे के खाते में 61,563 वोट आए. इस तरह से भदौरिया ने 12,036 मतों के अंतर से जीत हासिल की. तब के चुनाव में मेहगांव में कुल 2,50,218 वोटर्स थे, जिसमें 1,41,161 पुरुष तो 1,09,053 महिला वोटर्स थे. इनमें से कुल 1,62,127 (64.9%) वोटर्स ने वोट दिए. NOTA के पक्ष में 283 (0.1%) वोट डाले गए. हालांकि दलबदल की वजह से यहां पर फिर से चुनाव कराना पड़ा. 2020 में हुए उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर ओपी एस भदौरिया ने फिर से चुनाव लड़ा. कांग्रेस के हेमंत कटारे को 12 हजार से अधिक मतों से हरा दिया. इसके बाद सिंधिया खेमे से भदौरिया को शिवराज मंत्रिमंडल में नगरीय आवास विकास राज्य मंत्री बनाया गया.
कैसा रहा राजनीतिक इतिहास
मेहगांव विधानसभा के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो 1990 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर ग्वालियर महल यानी कि माधवराव सिंधिया के विश्वस्त हरि सिंह नरवरिया जीतने में सफल रहे. 1993 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के नरेश सिंह गुर्जर ने कांग्रेस के हरि सिंह नरवरिया को हरा दिया. फिर 1998 में बीजेपी के टिकट पर राकेश शुक्ला जीतकर विधानसभा पहुंचे. राकेश शुक्ला ने कांग्रेस के हरि सिंह नरवरिया को शिकस्त दी. इस तरह से 3 चुनाव में 3 अलग-अलग दलों के नेता चुनाव जीतने में कामयाब रहे. साल 2003 के विधानसभा चुनाव में फिर मेहगांव में उलटफेर हुआ और इस बार निर्दलीय प्रत्याशी मुन्ना सिंह नरवरिया ने जीत हासिल की. फिर इसके बाद यहां पर चुनावी परिणामों में स्थिरता आई. 2008 के चुनाव में बीजेपी के राकेश शुक्ला 5 साल बाद फिर से विजयी हुए. 2013 के चुनाव में जीत फिर बीजेपी के हाथ लगी. बीजेपी ने मुकेश सिंह चतुर्वेदी को प्रत्याशी बनाया और उन्होंने कांग्रेस के ओपीएस भदौरिया को 1,200 मतों से हरा दिया था. इसके बाद 2018 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर ओपीएस भदौरिया जीते थे.
सामाजिक-आर्थिक ताना बाना
मेहगांव निर्वाचन क्षेत्र 1951 में अस्तित्व में आया. गोहद मेहगांव के रूप में तत्कालीन मध्य भारत राज्य के 79 विधानसभा क्षेत्रों में से एक था. इस सीट के जातीय समीकरण को देखें तो ब्राह्मण और क्षत्रिय करीब-करीब समान अनुपात में ही हैं. इसके अलावा पिछड़ा वर्ग से नरवरिया और बघेल तथा गुर्जर वोट बैंक भी अच्छा खासा है. अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या भी यहां एक बार बसपा से विधायक चुन चुकी है.2020 के उपचुनाव में जीत में मेहगांव से बीजेपी के पूर्व विधायक मुकेश सिंह चतुर्वेदी की बड़ी भूमिका रही थी. इसी के कारण बाद में बीजेपी ने इनामस्वरूप चतुर्वेदी को पार्टी का प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया. अगर इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए ओपीएस भदौरिया का टिकट कटता है तो मुकेश सिंह चतुर्वेदी प्रमुख दावेदारों में से एक माने जा रहे हैं. बीजेपी के अन्य दावेदारों में पूर्व विधायक राकेश शुक्ला और शासकीय ठेकेदार अशोक भारद्वाज के भी नाम प्रमुख हैं. कांग्रेस की बात करें तो यहां से इस बार पूर्व मंत्री राकेश सिंह चतुर्वेदी, सेवादल के ब्रजकिशोर मुद्गल और राहुल भदौरिया पटवारी के नाम प्रमुख हैं.