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बारां-अटरू सीट पर कांग्रेस-BJP में फिर सीधी टक्कर, क्या है इतिहास

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राजस्थान में बारां जिले की बारां-अटरू विधानसभा क्षेत्र में अधिकतर भाजपा का दबदबा रहा है. इसके साथ यहां कि राजनीति पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के आसपास घूमती रही है. लेकिन अब बारां भाजपा में गुटबाजी ने पैर पसार लिये हैं, क्योंकि माना जाता है कि यहां से सांसद वसुन्धरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह पार्टी के कार्यकर्ताओं को तव्वजो नहीं देते हैं. दूसरी ओर वसुंधरा राजे भी इस क्षेत्र से पांच बार सांसद और दो बार मुख्यमंत्री रहने के बाद भी क्षेत्र का भरपूर विकास नहीं करा पाईं. इसकी वजह से राजे से जनता नाराज है.

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कितने वोटर, कितनी आबादी

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बारां-अटरू विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की बात करें तो जिले में इस बार 60 हजार से ज्यादा मतदाता बढ़े हैं. मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन कर दिया गया है. वहीं विधानसभा चुनाव में 9 लाख 31 हजार 825 मतदाता वोट डाल सकेंगे. वहीं सिर्फ बारां-अटरू विधानसभा क्षेत्र मेें 2 लाख 39 हजार 957 मतदाता हैं.

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सामाजिक ताना-बाना

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वहीं इस विधानसभा का जातिगत समीकरण भी कई धड़ों में बंटा है. यहां मेघवाल, बैरवा, ऐरवाल, जाटव, धाकड़, मीणा, मुस्लिम, महाजन और ब्राहमण जातियां बाहुल्य हैं.

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मुख्य मुद्दे

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रोजगार के नाम पर बारां विधानसभा क्षेत्र में अडानी पॉवर प्लांट लगा है, अधिकतर लोग कृषि पर निर्भर हैं. इसके अलावा यहां रोजगार का अन्य कोई साधन नहीं, जिससे बेरोजगारी अधिक है.

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यहां का राजनीतिक इतिहास

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  • 1990 में भाजपा से मदन दिलावर और कांग्रेस से रामचरण यादव चुनाव मैदान में उतरे थे. जिसमें भाजपा के मदन दिलावर ने जीत दर्ज की थी.
  • वहीं 1993 के चुनाव के दौरान भी मदन दिलावर और कांग्रेस से रामचरण यादव आमने-सामने रहे. इस बार भी मदन दिलावर भाजपा के टिकट पर चुनकर विधानसभा पहुंचे. इन्हें भैरोंसिंह शेखावत सरकार में समाज कल्याण मंत्री बनाया गया था.
  • 1998 में भी भाजपा से मदन दिलावर को टिकट मिला. वहीं कांग्रेस से मदन महाराज ने ताल ठोंकी. इस बार भी भाजपा के मदन दिलावर ने मदन महाराज को हराकर जीत दर्ज की.
  • इसके पश्चात 2003 में चौथी बार फिर भाजपा ने मदन दिलावर पर भरोसा जताया. वहीं कांग्रेस ने हनुमान यादव को चुनाव मैदान में उतारा. वहीं मदन दिलावर हनुमार यादव को हराकर लगातार चौथी बार विधायक बने. इसके बाद वसुंधरा राजे की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने.
  • 2008 में भाजपा से मदन दिलावर और कांग्रेस से पानाचंद मेघवाल आमने-सामने रहे. इसमें भाजपा से मदन दिलावर को हार का मुंह देखना पड़ा.
  • 2013 में भाजपा ने अपना चेहरा बदला और रामपाल मेघवाल को लड़ाया. वहीं कांग्रेस ने पानाचंद मेघवाल को उतारा. इस चुनाव में कांग्रेस से पानाचंद मेघवाल हारे और भाजपा के रामपाल मेघवाल विजय रहे.
  • 2018 में कांग्रेस से पानाचंद मेघवाल और भाजपा से बाबूलाल वर्मा के आमने-सामने से भिड़ंत हुई. जिसमें बाबूलाल वर्मा को कांग्रेस के पानाचंद मेघवाल ने 15000 वोटों से हरा दिया.
  • अब 2023 में भाजपा ने अभी किसी उम्मीदवार का चयन नहीं किया है लेकिन कांग्रेस से पानाचंद मेघवाल ही चुनाव लड़ेंगे. लेकिन कांग्रेस के पानाचंद मेघवाल को जनता के विरोध का सामना करना पड़ सकता है.

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