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जयपुर भाजपा राजधानी जयपुर क्षेत्र की सभी 19 सीटों पर एक खास रणनीति के तहत टिकट बांटने वाली है। भाजपा ने जयपुर शहर की 8 सीटों पर साल 2018 में जिन नेताओं को टिकट दिया था, उनमें से ज्यादातर के टिकट कटेंगे। दूसरी ओर जयपुर ग्रामीण की 11 में से 7- 8 सीटों पर भी पिछली बार के टिकटों को बदला जा सकता है। केवल 3-4 टिकट ही होंगे जो इस बार भी रिपीट होंगे। सूत्रों के अनुसार भाजपा ने ऐसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विशेष रिपोर्ट्स, फीडबैक और अनुशंषा के आधार पर करने का निर्णय किया है।
भाजपा ने सोमवार को जारी 41 सीटों की पहली सूची से इसका संकेत भी दे दिया है।
भाजपा की पहली लिस्ट में ये साफ हो गया है कि टिकट दिल्ली से ही तय होंगे। हालांकि वसुंधरा राजे को पूरी तरह साइडलाइन नहीं किया है, लेकिन उनके समर्थकों के भी टिकट कटे हैं।
भाजपा की पहली लिस्ट में ये साफ हो गया है कि टिकट दिल्ली से ही तय होंगे। हालांकि वसुंधरा राजे को पूरी तरह साइडलाइन नहीं किया है, लेकिन उनके समर्थकों के भी टिकट कटे हैं।
जयपुर शहर की इन 6 और सीटों पर भी टिकट बदल सकते हैं
सांगानेर : लाहोटी से जुड़ा विवाद
सांगानेर में मौजूदा विधायक अशोक लाहोटी जयपुर के महापौर भी रहे हैं। उन्हें पार्टी ने वर्ष 2008 में सिविल लाइंस से टिकट दिया था, लेकिन वे हार गए थे। बाद में उन्हें वर्ष 2018 में सांगानेर से टिकट दिया और वे जीते। वर्ष 2020-21 में जयपुर की सफाई व्यवस्था के संबंध में एक कंपनी की भूमिका को लेकर उठे विवाद में उनका भी नाम चर्चाओं में आया। संघ से उनकी नाराजगी सामने आई। उन्हें पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का करीबी भी माना जाता है।
अशोक लाहोटी के अलावा सांगानेर सीट भाजपा के कई पुराने दिग्गज भी टिकट के लिए दावेदारी जता रहे हैं। माना जा रहा है कि यह सीट जयपुर शहर की सबसे चर्चित सीट रह सकती है।
अशोक लाहोटी के अलावा सांगानेर सीट भाजपा के कई पुराने दिग्गज भी टिकट के लिए दावेदारी जता रहे हैं। माना जा रहा है कि यह सीट जयपुर शहर की सबसे चर्चित सीट रह सकती है।
किशनपोल : हिंदुत्ववादी चेहरा उतार सकती है भाजपा
किशनपोल से पिछली बार वर्ष 2018 में मोहन लाल गुप्ता को टिकट दिया गया था। गुप्ता जयपुर के महापौर भी रहे हैं। इससे पहले गुप्ता लगातार तीन बार 2003, 2008 और 2013 में विधायक रहे हैं। यहां मतदाता कम हुए हैं। अल्पसंख्यक मतदाताओं की बहुलता के चलते संघ इस क्षेत्र में किसी हिंदुवादी चेहरे को आगे बढ़ाने चाहता है। गुप्ता भी पूर्व सीएम राजे के करीबी माने जाते हैं।
मालवीय नगर : सराफ के टिकट में उम्र बन सकती है बाधा
यहां से पार्टी के विधायक कालीचरण सराफ हैं। उनकी आयु लगभग 75 वर्ष है। वे लगातार चौथी बार विधायक हैं। भाजपा इस बार उम्मीदवार की आयु को लेकर बहुत सख्त रुख अपनाए हुए है। सराफ पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के विश्वसनीय माने जाते हैं।
भाजपा यदि उम्र वाली पॉलिसी लागू करती है तो सराफ का टिकट कटना लगभग तय है।
भाजपा यदि उम्र वाली पॉलिसी लागू करती है तो सराफ का टिकट कटना लगभग तय है।
हवामहल : हिंदुत्ववादी चेहरे को मिल सकता है मौका
यहां पिछले 10 में से 8 बार भाजपा ने जीती है। लेकिन वर्ष 2008 और 2018 में भाजपा यहां चुनाव हार गई। यह सीट भी जयपुर के परकोटे में है। यहां भी जनसंख्या और मतदाताओं की प्रकृति में बड़ा बदलाव हुआ है। भाजपा और संघ पिछले 3 में से 2 बार यहां चुनाव हारने को बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। ऐसे में यहां भी पार्टी संघ की विचारधारा के अनुकूल व्यक्ति को उम्मीदवार बनाना चाहती है।
आदर्शनगर : पिछली बार हार गए थे परनामी
आदर्शनगर सीट वर्ष 2008 में गठित हुई थी। यहां वर्ष 2008 और 2013 में भाजपा के अशोक परनामी ने जीत दर्ज की थी। परनामी को वर्ष 2018 में भी टिकट दिया गया था, लेकिन वे हार गए थे। परनामी पूर्व सीएम राजे के बेहद विश्वस्त नेता माने जाते हैं। राजे के सीएम रहते ही परनामी भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे हैं।
आदर्श नगर विधानसभा क्षेत्र से फिलहाल पार्टी के पास बड़े दावेदार नहीं है। इसलिए यदि परनामी का टिकट कटता है तो पार्टी किसी युवा पर दांव लगा सकती है।
आदर्श नगर विधानसभा क्षेत्र से फिलहाल पार्टी के पास बड़े दावेदार नहीं है। इसलिए यदि परनामी का टिकट कटता है तो पार्टी किसी युवा पर दांव लगा सकती है।
सिविल लाइंस : किसी बड़े चेहरे को दे सकते हैं मौका
यह सीट भी वर्ष 2008 में गठित हुई थी। यहां पिछले तीन में से दो बार कांग्रेस की जीत हुई है। इस सीट पर भाजपा केवल 2013 में जीती थी। तब डॉ. अरुण चतुर्वेदी को टिकट दिया गया था। उन्हें वर्ष 2018 में भी टिकट दिया गया था, लेकिन वे हार गए थे। भाजपा इस सीट को कभी हार कभी जीत के भंवर से निकालना चाहती है। यहां भी संभवत: विद्याधर नगर व झोटवाड़ा की तरह किसी बड़े चर्चित चेहरे को उतारा जा सकता है।
रिपीट हो सकते हैं टिकट
आमेर : पूनिया को फिर मिलेगा मौका
यहां से भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया विधायक हैं। उन्हें प्रदेशाध्यक्ष पद के बाद पार्टी ने विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष भी बनाया है। पूनिया की गिनती पार्टी के प्रति समर्पित नेताओं में होती है। वे भाजपा और संघ दोनों की पसंद है। उनका टिकट रिपीट होना तय है।
सतीश पूनिया को हमेशा से आरएसएस की पसंद माना जाता है। इसके अलावा पार्टी नेतृत्व के भी वे करीबी के तौर पर जाने जाते हैं।
सतीश पूनिया को हमेशा से आरएसएस की पसंद माना जाता है। इसके अलावा पार्टी नेतृत्व के भी वे करीबी के तौर पर जाने जाते हैं।
फुलेरा : 3 बार से जीत रहे कुमावत
कभी कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली फुलेरा सीट पिछले चार चुनावों से भाजपा जीत रही है, जिसमें वर्ष 2008, 2013 और 2018 में निर्मल कुमावत ने लगातार जीत दर्ज की है। कुमावत मतदाताओं के बाहुल्य वाली सीट पर निर्मल निर्विवाद बने हुए हैं। उनका टिकट भी रीपीट होना तय माना जा रहा है।
चौमूं : 4 में 3 बार जीते रामलाल
यहां से वर्ष 2003, 2013 और 2018 में रामलाल शर्मा ने जीत दर्ज की है। वे पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता भी हैं और राजस्थान विवि के महासचिव भी रहे हैं। पार्टी गतिविधियों में उनकी भूमिका हमेशा बढ़-चढ़कर रहती है। उन्हें भी टिकट मिलना पक्का माना जा रहा है।
जयपुर ग्रामीण में भी कई सीटों पर कट सकते हैं टिकट
जयपुर ग्रामीण क्षेत्र में आने वाले बस्सी और कोटपूतली का टिकट पार्टी ने बदल ही दिया है। अब चाकसू, विराटनगर, शाहपुरा, बगरू व जमवा रामगढ़ के टिकट भी उन नेताओं को मिलना बेहद मुश्किल हैं, जिन्हें पिछली बार 2018 में मिले थे। इन सीटों से क्रमश: लक्ष्मीनारायण बैरवा, फूलचंद भिंडा, राव राजेन्द्र सिंह, कैलाश वर्मा और जगदीश मीणा को टिकट दिया गया था। यह सभी चुनाव हार गए थे। इनमें से भिंडा की आयु लगभग 75 वर्ष है। शेष चारों उम्मीदवार पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के नजदीकी माने जाते हैं।
क्यों बनाई गई ये रणनीति
भाजपा ने इन चुनावों में किसी एक बड़े नेता के चेहरे को बतौर सीएम प्रोजेक्ट नहीं किया गया है। ऐसे में टिकट देने को लेकर कुछ नियम बनाए गए हैं, उनका पालन हर नेता के लिए अनिवार्य हो गया है। क्योंकि अब सीएम प्रोजेक्ट होने वाले चेहरे के बजाए पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व सबकुछ तय कर रहा है।
75 वर्ष से ऊपर या आस-पास की आयु वाले उम्मीदवारों के टिकट की उम्मीदें लगभग समाप्त कर दी गई हैं। यहां तक कि 70-72 की आयु वालों को भी टिकट देने पर बहुत विचार किया जा रहा है।
भाजपा ने इस बार टिकट बांटने के लिए अलग रणनीति बनाई है। टिकट से जुड़े सारे फैसले दिल्ली नेतृत्व कर रहा है।
भाजपा ने इस बार टिकट बांटने के लिए अलग रणनीति बनाई है। टिकट से जुड़े सारे फैसले दिल्ली नेतृत्व कर रहा है।
ये भी बन सकती है टिकट कटने की वजह
प्रदर्शनों में अनुपस्थिति : भाजपा ने पिछले 5 वर्षों में विधानसभा, सिविल लाइंस फाटक (सीएम आवास) और सचिवालय पर चार-पांच बार प्रदर्शन किए। राज्य सरकार का घेराव किया। इसके बावजूद उन धरने-प्रदर्शनों में जयपुर के मौजूदा विधायकों सहित वर्ष 2018 में टिकट पाए नेताओं की भूमिका लगभग गायब रही, जिससे संघ और भाजपा दोनों की नाराजगी बनी।
पिछले चुनाव में हार : पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के नजदीक माने जाने वाले नेताओं को पिछले वर्ष बड़ी संख्या में जयपुर क्षेत्र में टिकट मिले थे, लेकिन उनमें से अधिकांश चुनाव हार गए। उनके जन्म दिवस संबंधी कार्यक्रमों में उन नेताओं की स्पष्ट भूमिका देखी गई, लेकिन पार्टी के धरने-प्रदर्शनों में नहीं। हर बार अनुपस्थित रहने का असर अब नेगेटिव बन रहा है।
जयपुर की सामाजिक गणित : जयपुर शहर की बदलती विशेष जनसंख्या प्रकृति और मतदाताओं की भूमिका के चलते कांग्रेस ने यहां दो नगर निगम क्षेत्र बनाए। कांग्रेस ने एक बोर्ड पर महापौर जीतने में कामयाबी भी पाई। भाजपा अल्पसंख्यक बहुलता वाली सीटों पर संघ विचारधारा के लोगों को आगे लाना चाहती है। पार्टी के अनुसार जयपुर में किशनपोल, हवामहल, आदर्शनगर और सिविल लाइंस में अल्पसंख्यक मतदाता बढ़े हैं।
बड़ी सभाओं में सक्रियता : परिवर्तन यात्रा, प्रधानमंत्री मोदी सहित गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा की सभाओं में जिन नेताओं ने भीड़ जुटाने में खास मेहनत की है, उन्हें पार्टी ने टिकट उम्मीदवारी में बेहतर माना है। परिवर्तन यात्राओं में जो लोग उत्साह से शामिल नहीं हुए उन्हें पार्टी अब टिकट देने जैसा महत्व नहीं देने वाली।
भाजपा ने 5 साल में कई प्रदर्शन किए, जिनमें बड़े नेताओं ने गिरफ्तारी भी दी। उन प्रदर्शनों में जयपुर से ज्यादातर विधायकों व टिकट पाने वाले नेताओं की भूमिका काफी कम नजर आई।
भाजपा ने 5 साल में कई प्रदर्शन किए, जिनमें बड़े नेताओं ने गिरफ्तारी भी दी। उन प्रदर्शनों में जयपुर से ज्यादातर विधायकों व टिकट पाने वाले नेताओं की भूमिका काफी कम नजर आई।
जयपुर क्षेत्र में कुल 19 सीटें
राजधानी जयपुर क्षेत्र में विधानसभा की कुल 19 सीटें आती हैं। इस क्षेत्र की सीटें जयपुर, जयपुर ग्रामीण, अजमेर, सीकर और दौसा लोकसभा क्षेत्रों में बंटी हुई हैं।
जयपुर के शहरी इलाके में मालवीय नगर, सिविल लाइंस, किशनपोल, हवामहल, विद्याधर नगर, आदर्शनगर, सांगानेर और झोटवाड़ा सीटें आती हैं।
जयपुर के ग्रामीण क्षेत्र में फुलेरा, आमेर, दूदू, बगरू, चाकसू, बस्सी, जमवा रामगढ़, शाहपुरा, विराटनगर, कोटपूतली और चौमूं सीटें शामिल हैं।
पहली सूची में शहर-ग्रामीण से 2-2 टिकट बदले
विद्याधर नगर : राजवी की जगह दीया कुमारी
विद्याधर नगर सीट से भाजपा के नरपत सिंह राजवी लगातार तीन बार से चुनाव जीत रहे हैं। वे पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के दामाद भी हैं। उनकी लगातार जीत के बावजूद भाजपा ने उनका टिकट इस बार बदल दिया है। उनके स्थान पर पार्टी ने राजसमंद सांसद दीया कुमारी को उम्मीदवार बनाया है।
दूदू : प्रेमचंद बैरवा को फिर से मौका
दूदू में प्रेमचंद बैरवा का टिकट ही रीपीट किया गया है। बैरवा को वर्ष 2013 और 2018 में भी टिकट दिया गया था। वे वर्ष 2013 में जीते और 2018 में हार गए। उन्हें इस बार वर्ष 2023 में भी उम्मीदवार बनाया गया है।
झोटवाड़ा : राजपाल सिंह की जगह राज्यवर्द्धन राठौड़
इस सीट पर राजपाल सिंह शेखावत को वर्ष 2018 में टिकट दिया गया था, लेकिन वे चुनाव हार गए थे। शेखावत को इसी सीट से 2008 और 2013 में भी टिकट दिया गया था। वे दोनों बार जीते थे और वसुंधरा सरकार में मंत्री भी बनाए गए थे। इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया है। इस सीट से जयपुर ग्रामीण क्षेत्र के सांसद राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ को टिकट दिया गया है।
कोटपूतली : मुकेश गोयल के बजाय हंसराज पटेल
यहां से वर्ष 2018 में भाजपा ने मुकेश गोयल को टिकट दिया था। वे चुनाव हार गए थे। यह सीट भाजपा पिछले तीन चुनावों से लगातार हार रही है। इस बार यहां से हंसराज पटेल गुर्जर को टिकट दिया गया है।
बस्सी : कन्हैयालाल की जगह चंद्रमोहन मीणा
बस्सी में पिछली बार 2018 में कन्हैयालाल मीणा को टिकट दिया गया था। वे पूर्व विधायक हैं, लेकिन वर्ष 2018 में हार गए थे। यह सीट भी भाजपा लगातार तीन बार से हार रही है। इस बार यहां रिटायर्ड आईएएस अफसर चंद्रमोहन मीणा को टिकट दिया गया है। मीणा हाल ही भाजपा में शामिल हुए हैं। भाजपा ने उन्हें अपनी प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति में भी सदस्य बनाया है