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कांग्रेस के गढ़ में सेंधमारी की तैयारी में BJP, समझें डूंगरपुर सीट पर हार-जीत का समीकरण

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राजस्थान में विधानसभा चुनाव का रण शुरू होने की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही प्रदेश के सभी 200 सीटों पर चुनावी सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं. आज हम बात करेंगे डूंगरपुर विधानसभा सीट के बारे में, जो राजस्थान के दक्षिण में बसे और गुजरात राज्य की सीमा से सटे डूंगरपुर जिले में स्थित है. डूंगरपुर शहर स्वच्छता के लिए जाना जाता है. वहीं बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय राजसिंह डूंगरपुर, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश स्वर्गीय डॉ. नागेन्द्र सिंह, स्वतंत्रता सेनानी एवं वागड़ गांधी भोगीलाल पंड्या और राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रहे पूर्व महारावल स्वर्गीय लक्ष्मणसिंह जैसी हस्तिया डूंगरपुर से होने के कारण डूंगरपुर की राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान है.

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हाई स्पीड बुलेट ट्रेन

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इधर डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र में गेपसागर झील, जुना महल, उदय विलास पैलेस और विजयगढ़ दुर्ग जैसे पर्यटन स्थल हैं. वही हाल ही में रेल आमान परिवर्तन के बाद शुरू हुए रेलवे स्टेशन ने भी डूंगरपुर के विकास की गति को बढाया है. भविष्य में डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र से हाई स्पीड बुलेट ट्रेन भी गुजरेगी.

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कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट

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आजादी के बाद से ही डूंगरपुर विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है. 1951 से अब तक डूंगरपुर विधानसभा से 16 विधायक बने हैं, जिसमें से भाजपा के विधायक केवल एक बार (देवेन्द्र कटारा) 2013 में बने, जबकि 9 बार इस सीट पर कांग्रेस ने कब्ज़ा किया है. डूंगरपुर विधानसभा में कांग्रेस के नाथूराम अहारी 1980 से लेकर लगातार 6 बार विधायक चुने गए. वर्तमान गहलोत सरकार में डूंगरपुर जिले की 4 विधानसभा में से एक मात्र डूंगरपुर में ही कांग्रेस का विधायक है. शेष 3 में से 2 पर बीटीपी और एक पर भाजपा का कब्ज़ा है. खास बात ये है कि जिला मुख्यालय की सीट होने के बावजूद डूंगरपुर विधानसभा सीट से आज तक कोई विधायक मंत्री पद तक नहीं पहुंच पाया.

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यहां का राजनीतिक इतिहास

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  • 1951 – सोमा – कांग्रेस
  • 1957 – बालमुकुंद – निर्दलीय
  • 1962 – विजयपाल – स्वतंत्र पार्टी
  • 1967 – लक्ष्मणसिंह – स्वतंत्र पार्टी
  • 1972 लक्ष्मणसिंह – स्वतंत्र पार्टी
  • 1977 – अमृतलाल – JNP
  • 1980 – नाथूराम अहारी – कांग्रेस
  • 1985 – नाथूराम अहारी – कांग्रेस
  • 1990 – नाथूराम अहारी – कांग्रेस
  • 1993 – नाथूराम अहारी – कांग्रेस
  • 1998 – नाथूराम अहारी – कांग्रेस
  • 2003 – नाथूराम अहारी – कांग्रेस
  • 2006 – पूंजीलाल परमार – कांग्रेस
  • 2008 – लालशंकर घाटिया – कांग्रेस
  • 2013 – देवेन्द्र कटारा – बीजेपी
  • 2018 – गणेश घोगरा – कांग्रेस

डूंगरपुर का भौगोलिक इतिहास

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डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र में डूंगरपुर, बिछीवाडा दो पंचायत समितिया तथा डूंगरपुर नगर परिषद् पड़ती है. मोतली मोड़ से लेकर गुजरात की सीमा रतनपुर बॉर्डर तक करीब 40 किलोमीटर का नेशनल हाइवे 48 लगता है, जो इस क्षेत्र के विकास की लाइफ लाइन कहा जाता है. डूंगरपुर में औद्योगिक इकाईयां नहीं के बराबर हैं. ऐसे में यहां से हजारों की संख्या में बेरोजगार युवा रोजगार के लिए पड़ोसी राज्य गुजरात में पलायन करते हैं. वहीं कमजोर चिकित्सा सेवाओं के कारण इलाज के लिए गुजरात जाना भी आम बात है.

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यहां का जातीय समीकरण

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जातीय समीकरण की बात करें तो डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र की 70 फीसदी आबादी जनजाति वर्ग की है. इसीलिए यह विधानसभा सीट जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है. बाकि 30 फीसदी आबादी में एससी, ओबीसी, अल्पसंख्यक और सामान्य वर्ग के लोग आते हैं.

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विधायक का राजनीतिक सफर

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डूंगरपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी से मौजूदा विधायक गणेश घोगरा का राजनीतिक करियर बहुत छोटा है. मझोला गांव में जन्मे गणेश घोगरा डूंगरपुर जिले की ग्राम पंचायत सतीरामपुर से सरपंच रहे. एनएसयुआई में विधानसभा अध्यक्ष सहित विभिन्न पदों पर रहते हुए कांग्रेस के लिए काम किया. यूथ कांग्रेस में विभिन्न पदों पर रहते हुए गणेश घोगरा ने डूंगरपुर शहर के पेराफेरी क्षेत्र में आने वाली 7 ग्राम पंचायतों में रहने वाले ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर आवाज बुलंद की. इन ग्राम पंचायतों को नगर परिषद् में मिलाए जाने का विरोध करने के कारण ग्रामीणों का समर्थन गणेश घोगरा को मिला.

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साल 2018 में कांग्रेस पार्टी ने यूथ कांग्रेस कोटे से गणेश घोगरा को डूंगरपुर विधानसभा का टिकट दिया. इस चुनाव में करीब 28 हजार वोट से जीते. विधायक गणेश घोगरा को कांग्रेस संगठन ने अहम जिम्मेदारी देते हुए यूथ कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया. गणेश घोगरा राजस्थान सरकार के युवा मंत्री अशोक चांदना और यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास बी.वी. के करीबी माने जाते हैं. विधायक गणेश घोगरा की मानें तो उन्होंने अपने कार्यकाल में डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र को विकास की कई सौगातें दी है.

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प्रमुख सौगातें

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कृषि महाविद्यालय, विधि महाविद्यालय, आर्चरी अकादमी, नर्सिंग महाविद्यालय, पाल देवल में कॉलेज, पाल देवल में तहसील, पाल देवल में AEN कार्यालय, रामसागडा में कॉलेज और आईटीआई, गामडी अहाडा को तहसील बनाया हालांकि विधायक द्वारा गिनाए गए इन विकास कार्यों के बाद भी कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन्हे विरोधी भुनाना चाहेंगे.

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सोमकमला आम्बा बांध से डूंगरपुर तक पेयजल सप्लाई कार्य में देरी, स्वीकृत कृषि कॉलेज के लिए भूमि आवंटन में देरी, स्वीकृत होने के बावजूद लम्बे समय से विधि महाविद्यालय का शुरू नहीं होना, स्कूल- कॉलेज और अस्पतालों में स्टाफ की कमी जैसे अनेक मुद्दे हैं, जिनको लेकर विपक्ष में बैठी भाजपा सहित आदिवासी परिवार और अन्य राजनीतिक दल विधायक तथा सरकार को आड़े हाथों लेते रहते हैं.

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मौजूदा विधायक गणेश घोगरा ने बताया कि गहलोत सरकार ने उनकी विधानसभा में विकास कार्यों में कोई कमी नहीं छोड़ी है फिर भी उनकी 3 ऐसी मांगे हैं जो साढ़े चार सालों में भी पूरी नहीं हो पाई. वहीं इसके लिए वे आज भी मुख्यमंत्री और सरकार से गुहार लगा रहे हैं.

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प्रमुख मांगें जो पूरी नहीं हुईं

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  • राज्य प्रशासनिक सेवाओं में प्रदेश स्तर पर एसटी वर्ग को मिलने वाले 12 प्रतिशत आरक्षण में से 6 प्रतिशत आरक्षण टीएसपी एरिया (जनजाति उपयोजना क्षेत्र) को दिया जाए.
  • टीएसपी एरिया में सरकारी नौकरियों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की मांग.
  • नान टीएसपी एरिया के शिक्षक जो जिले में कार्यरत हैं, उन्हें अपने गृह जिले में भेजकर टीएसपी के पद खाली किये जाएं.
  • नगर परिषद के पेराफेरी क्षेत्र में निवासरत जनजाति वर्ग के लोगों को कैंप लगाकर पट्टे देने की मांग.

नए दलों ने भी ठोकी ताल

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आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के अलावा डूंगरपुर विधानसभा पर आदिवासी परिवार संगठन ने भी बीटीपी से अलग होकर अपनी नई राजनीतिक पार्टी भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) के बैनर तले अपना उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर ली है. वहीं भाजपा से निष्काषित पूर्व विधायक देवेन्द्र कटारा आम आदमी पार्टी की सदस्यता लेकर क्षेत्र में सक्रीय हो गए हैं. इधर भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) भी क्षेत्र में सक्रीय है.

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बीजेपी को फायदा

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डूंगरपुर विधानसभा सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है. ऐसे में जानकारों का मानना है कि उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा होने पर एसटी वर्ग के वोटों का बंटवारा होगा. वहीं गैर एसटी वर्ग की ज्यादातर जनसंख्या भाजपा समर्थित होने से इनको इसका लाभ मिल सकता है.

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डूंगरपुर क्षेत्र के महत्वपूर्ण मुद्दे

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  • 19 नए जिलों और 3 नए संभाग की घोषणा के बाद डूंगरपुर का संभाग मुख्यालय बदलने की सम्भावना है. फ़िलहाल डूंगरपुर का संभाग मुख्यालय उदयपुर लगता है जबकि आने वाले समय में यह नवगठित बांसवाडा संभाग में मिल सकता है जिसका जनता विरोध कर रही है.
  • 4 साल से मेडिकल कॉलेज शुरू होने के बावजूद चिकित्सा सुविधाओ में खास बढ़ोतरी नहीं हुई है.
  • डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र में सितम्बर 2020 में शिक्षक भर्ती को लेकर हुए काकरी डूंगरी दंगों के दौरान नेशनल हाइवे 48 पर उपद्रवियों ने दर्जनों निजी संपत्तियों को जलाकर बर्बाद कर दिया था. इसके बाद निवेशको का भरोसा टूटने से क्षेत्र में कई प्रोजेक्ट रुक गए या बंद हो गए.
  • डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र में एक भी बड़ी इंडस्ट्री नहीं है. रोजगार के अवसर सीमित होने से बेरोजगार पलायन को मजबूर हैं.
  • स्कूलों, स्वास्थ केन्द्रों को क्रमोन्नत कर दिया, नए कॉलेज भी खुले लेकिन पर्याप्त स्टाफ और सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गईं. इसके लिए आये दिन कलेक्ट्रेट पर धरना प्रदर्शन होते रहते हैं.

विधायक निधि का हाल

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31 मार्च 2023 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष तक 4 साल के कार्यकाल में विधायक गणेश घोगरा को विधायक फंड के रूप में 12 करोड़ रुपये मिले. इसमें विभिन्न विकास कार्यों पर 7 करोड़ रुपये खर्च किये गए, जबकि लम्बे समय से अधूरे पड़े कार्यों के चलते 5 करोड़ रुपये अभी तक खर्च नहीं हो पाए हैं. विधायक गणेश घोगरा ने 4 सालों में विधायक मद से पंचायतीराज विभाग के लिए 5 करोड़ 10 लाख, शिक्षा विभाग के लिए 86 लाख, खेल विभाग के लिए 11.50 लाख, पुलिस विभाग के लिए 5 लाख, और चिकित्सा विभाग के लिए 78.50 लाख रुपये के विकास कार्यों की अनुशंसा की है. जबकि सार्वजनिक निर्माण विभाग, जल संसाधन विभाग तथा जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में विकास कार्यों के लिए गणेश घोगरा ने जीरो बजट दिया है.

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वर्तमान विधायक के सामने बड़ी चुनौती

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बहरहाल गणेश घोगरा का अपना पहला विधायक कार्यकाल समाप्ति की और है. घोगरा अपनी दूसरी पारी की शुरुआत के लिए अभी से अपने विधानसभा क्षेत्र में जुट गए हैं. महंगाई राहत शिविरों में जाकर गणेश घोगरा सरकार की योजनाओं के माध्यम से अपने मतदाताओं को साधने में लगे हैं. लेकिन अलग-अलग गुट में बंटी कांग्रेस पार्टी से पहले गणेश घोगरा के लिए टिकट लाना और फिर उम्मीदवारों की लम्बी लिस्ट के बीच अपनी जीत दर्ज कराना किसी चुनौती से कम नहीं होगा.

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