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कैसे 22 रियासतों से मिलकर बना था राजस्थान, जिसमें 8 साल,7 महीने और 14 दिन लग गए?

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जब देश आजाद हुआ तो अजमेर-मेरवाड़ सीधे अंग्रेजों के अधीन था तो वह भारत का हिस्सा बन गया लेकिन बाकी राज घराने असमंजस में थे. किसी के मन में पाकिस्तान के साथ जाने का भाव था तो कोई खुद को स्वतंत्र घोषित करना चाहता था. ऐसे में देश के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के सामने एक बड़ी चुनौती थी मौजूदा राजस्थान को बनाने की, जो देश की सारी रियासतों को हर हाल में भारत का हिस्सा बनाना चाहते थे. समय जरूर लगा पर उनका यह प्रयास रंग भी लाया और एक बेहद जटिल और कई चरण की प्रक्रिया के बाद वर्तमान राजस्थान हमारे सामने है. आज के राजस्थान में अलग-अलग समय पर 22 रियासतें शामिल हुईं. इन सबको शामिल करने में केंद्र सरकार को आठ साल, सात महीने और 14 दिन लगे. इस तरह आज का राजस्थान एक नवंबर 1956 इसकी स्थापना हुई. हालांकि, राजस्थान राज्य गठित करने का फैसला 30 मार्च 1949 को हुआ था, इसलिए स्थापना दिवस 30 मार्च को ही मनाया जाता है. 7 सिम्बर 1949 को ही जयपुर को राजधानी घोषित कर दिया गया था. राजस्थान में विधान सभा चुनाव चल रहे हैं, इसके परिणाम जो भी होंगे सबके सामने तय तारीख तीन दिसंबर को आ ही जाएंगे. चुनाव के इस मौसम में यह जानना रोचक होगा कि आज का राजस्थान कितनी मुश्किलों के बाद सामने आया.

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राजस्थान बनने में कितनी चुनौतियां थीं

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राजस्थान का मतलब राजाओं का स्थान या राज स्थान. देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल ने इस राज्य के गठन में नाम भी उसी अनुरूप रखने का फैसला किया, जैसा उसका स्वरूप है. आज भी राजस्थान में राजसी ठाट देखने को मिलता है. महल, किले, तालाब आज भी शोभा हैं. अंग्रेजों ने देश को आजाद करने की घोषणा की ही थी. देश के सामने अनेक चुनौतियां थीं. उनमें एक चुनौती यह भी थी कि देश के अंदर अलग-अलग राज्य बनें, जिससे उनकी व्यवस्था सुचारु चलाई जा सके. राजस्थान में चुनौती यह थी कि यहां हर सौ-दो सौ किलोमीटर पर राजा थे. उनका अपना शासन था. जाते-जाते अंग्रेज एक कानूनी पेंच फंसा गए थे कि राजा चाहें तो भारत में रहें, पाकिस्तान में रहें या खुद को स्वतंत्र बना लें. उधर, लंबे समय बाद मिली आजादी को सरदार पटेल फिर एक नई जंग में नहीं झोंकना चाहते थे. वे सम्पूर्ण भारत को एक नक्शे में देखने के पक्षधर थे. अगर बीच-बीच में राजा खुद को स्वतंत्र करते या पाकिस्तान के साथ जाते तो कालांतर में अलग तरह की दिक्कतें आतीं. अपनी दूरदर्शी नीति के तहत उन्होंने पूरे भारत को एक सूत्र में पिरोने के फैसले पर अमल करने की नीति तैयार की.

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जैसलमैर और जोधपुर के राजा जाना चाहते थे पाकिस्तान

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इतिहास की कई किताबों में जिक्र मिलता है कि जैसलमेर और जोधपुर के राजा पाकिस्तान के साथ जाना चाहते थे. जिन्ना ने उन्हें कोर कागज पर दस्तखत करके शर्तें लिखने को दे दिया था. पर, पटेल को यह सब मंजूर नहीं था. 18 मार्च 1948 को शुरू प्रक्रिया के बाद अंततः 30 मार्च 1949 को राजस्थान की घोषणा हो गई. इस बीच पटेल को काफी मशक्कत करना पड़ी. कहीं बात प्यार से बनी तो कहीं घुड़की भी. इस तरह ना-नुकुर के बीच सभी राज घराने तैयार भी हुए और फिर चरणबद्ध तरीके से आज का राजस्थान सामने आया लेकिन इसमें समय बहुत लगा. अजमेर-मेरवाड़ तो पहले ही आ गए थे.

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कब कैसे हुआ विलय?

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पहले चरण में अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों का विलय हुआ और उसे मत्स्य संघ नाम दिया गया. दूसरे चरण में कोटा, बूंदी, झालवाड़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, किशनगढ़ टोंक, कुशलगढ़, और शाहपुरा रियासतों को मिलाकर राजस्थान संघ का निर्माण किया गया. उदयपुर रियासत के विलय के साथ ही संयुक्त राजस्थान का निर्माण हुआ. 14 जनवरी, 1949 को उदयपुर की एक सार्वजनिक सभा में गृह मंत्री पटेल ने बीकानेर, जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर के शामिल होने की घोषणा की. 30 मार्च 1949 को जयपुर में राजस्थान का शुभारंभ हुआ. इसी साल 15 मई को मत्स्य संघ वृहद राजस्थान का हिस्सा बना. नीमराना को भी इसमें शामिल किया गया. अनेक कवायदों के बाद छठें चरण में 26 जनवरी 1950 को सिरोही का विभाजन हुआ. आबू एवं देलवाड़ा तहसीलों को बंबई प्रांत और बाकी हिस्सों को राजस्थान में मिलाने का फैसला हुआ. आबू, देलवाड़ा की जनता ने इसका विरोध किया. अंततः छह साल बाद राज्यों के पुनर्गठन के साथ इन्हें वापस राजस्थान में शामिल किया गया. राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर अजमेर-मेरवाड़ा को भी राजस्थान का हिस्सा बना दिया गया. इस तरह एक लंबी कवायद के बाद आज का राजस्थान हमारे सामने है.

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