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राजस्थान में रिवाज बदलने के लिए कांग्रेस के पांच बड़े दांव, क्या बदलेगा साढ़े तीन दशक पुराना ट्रेंड?

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राजस्थान की सत्ता का फैसला आज से 15 दिन बाद 25 नवंबर को सवा पांच करोड़ से ज्यादा मतदाता करेंगे. विधानसभा के चुनावी प्रचार में जुटे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जगह-जगह चुनावी सभाएं करके राजस्थान में रिवाज बदलने का दावा कर रहे हैं जबकि बीजेपी हर पांच साल पर होने वाले सत्ता परिवर्तन के ट्रेंड को बनाए रखने की कवायद में जुटी है. सवाल उठता है कि हर पांच साल बाद सरकार बदलने वाली जनता इस बार कांग्रेस को दोबारा राजस्थान की सत्ता लाएगी? साढ़े तीन दशक के सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड रहा है यानी हर पांच साल पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सत्ता बदलती रही है. एक बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेस. इस तरह से दोनों ही दलों के बीच सत्ता की अदला-बदली का खेल चला आ रहा है. फिलहाल कांग्रेस सत्ता में है, जिस वजह से बीजेपी अपनी वापसी की उम्मीद लगाए हुए हैं. ऐसे में कांग्रेस और मुख्यमंत्री गहलोत राजस्थान के सत्ता बदलने वाले इस रिवाज को बदलने के लिए पांच बड़े सियासी दांव चले हैं, जिसके जरिए उन्हें उम्मीद है कि राजस्थान की जनता सत्ता परिवर्तन के ट्रेंड को बदल देगी.

कांग्रेस का ‘गारंटी’ दांव

राजस्थान विधानसभा चुनाव के नामांकन खत्म होने के साथ ही कांग्रेस ‘गारंटी यात्रा’ के जरिए सत्ता में बने रहने के लिए माहौल बनाने में जुट गई है. किसानों से 2 रुपए प्रति किलो गोबर खरीदने, कॉलेज में प्रवेश लेने वाले स्टूडेंट को फ्री लैपटॉप, हर छात्र को अंग्रेजी मीडियम की शिक्षा, प्राकृतिक आपदा के शिकार परिवार का 15 लाख रुपए का बीमा. 500 रुपए में घरेलू गैस सिलेंडर, हर परिवार की महिला मुखिया को सालाना 10 हजार रुपए और सरकारी कर्मचारियों के लिए ओपीएस का कानून बनाने की गारंटी. कांग्रेस इन सात गारंटी के जरिए अपनी वापसी के लिए पूरी उम्मीद लगाए हुए है. कांग्रेस अपने इस दांव से बीजेपी को कर्नाटक और हिमाचल में चुनावी मात दे चुकी है और अब उसे राजस्थान में भी उम्मीद दिख रही है.

नई सोशल इंजीनियरिंग

काग्रेस राजस्थान की चुनावी जंग फतह करने के लिए एक नई सोशल इंजीनियरिंग के साथ उतरी है. कांग्रेस ने कैंडिडेट के जरिए सूबे के सियासी समीकरण को सेट करने की कोशिश की है. कांग्रेस ने सबसे ज्यादा भरोसा ओबीसी और आदिवासी समुदाय पर किया है. कांग्रेस ने 62 ओबीसी समुदाय के लोगों को प्रत्याशी बनाया है तो 35 दलित और 33 आदिवासी समुदाय के लोगों को टिकट दिया है. इतनी ही नहीं सामान्य वर्ग को 43 टिकट दिए हैं तो 14 मुस्लिम प्रत्याशी भी उतारे हैं. इसके अलावा स्पेशल बैकवर्ड क्लास में शामिल गुर्जर सहित अन्य जातियों को 13 टिकट दिए हैं. कांग्रेस ने इस बार दलित और आदिवासी समुदाय को रिजर्व सीटों से साथ-साथ सामान्य सीटों पर भी प्रत्याशी बनाया है. इस तरह से कांग्रेस ने एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग के जरिए सत्ता में वापसी की पटकथा लिखी है.

नए चेहरों पर खेला दांव

राजस्थान में सत्ता परिवर्तन की ट्रेंड के पीछे एक बड़ी वजह विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का होना माना जाता रहा है. इसी मद्देनजर कांग्रेस ने इस बार अपने 23 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए हैं. इतना ही नहीं कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में मात खाने वाले 68 उम्मीदवारों को इस बार टिकट नहीं दिया है और उनकी जगह नए चेहरों को चुनावी मैदान में उतारा है. इसमें 44 नेता ऐसे हैं, जिन्हें पहली बार कांग्रेस ने चुनावी मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने अपने उन 23 विधायकों के टिकट काटे हैं, जिनके खिलाफ सबसे ज्यादा नाराजगी मानी जा रही थी. इस तरह से कांग्रेस ने नए चेहरे पर भरोसा जताकर सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने का दांव चला है.

सीएम का विकल्प खुला है

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन पार्टी ने इस बार उन्हें सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया है. कांग्रेस ने इस तरह से मुख्यमंत्री का विकल्प खुला रखा है. कांग्रेस ने यह दांव ऐसे ही नहीं चला बल्कि उसके जरिए अशोक गहलोत और सचिन पायलट सहित तमाम दिग्गज नेताओं को साधे रखने की रणनीति है. यही वजह है कि गहलोत और पायलट दोनों ही अपनी-अपनी पूरी ताकत कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराने के लिए लगा रखी है. इसीलिए पायलट अपनी सभाओं में यह बात कहते भी हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद विधायक दल की बैठक में सीएम तय होगा तो गहलोत भी इसी बात को दोहरा रहे हैं. इस तरह से पायलट और गहलोत दोनों के समर्थक जुटे हैं.

सॉफ्ट हिंदुत्व का दांव

राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व के जवाब में कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलती हुई नजर आ रही है. कांग्रेस गारंटी यात्रा जयपुर में मोती डूंगरी गणेश मंदिर से शुरू किया. इसके बाद परनामी मंदिर और उसके बहाद गोविंद देवजी मंदिर से शुरू होकर बड़ी चौपड़ होती हुई छोटी चौपड़ तक पहुंची. इतना ही नहीं गहलोत जिस तरह से मंदिरों में जाकर माथा टेक रहे हैं और हाल ही में उन्होंने साध्वी अनादि सरस्वती को भी पार्टी में शामिल कराकर सियासी संदेश देने की कोशिश की है. इतना ही नहीं उन्होंने चुनाव से पहले ही हिंदुत्व की राह पर अपने कदम बढ़ा दिए थे ताकि बीजेपी की रणनीति को फेल किया जा सके.

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