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गर्मी का मौसम आते ही पंखा, कूलर, एसी और फ्रिज की याद सताने लगती है. इनके बिना तो जैसे गुजारा करना ही मुश्किल लगता है. कभी अगर कुछ देर के लिए बिजली चली जाये तो जैसे हालात खराब होने लगती है. आज हम इतने आराम से गर्मी के छक्के छुड़ा देते हैं, क्योंकि हमारे पास बिजली और उससे चलने वाले ये उपकरण हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आज से सैकड़ों साल पहले जब न बिजली थी, न फ्रिज, एसी या कूलर जैसी चीजें, तब लोग गर्मी की मार कैसे झेलते होंगे? क्या ठंडे शर्बत या आइसक्रीम जैसी चीजें तब भी होती होंगी?
क्या है अंडरग्राउंड व स्टिल्ट हाउस
आज से सैकड़ों साल पहले घर बनाने के लिए ऐसे आर्किटेक्चर का इस्तेमाल किया जाता था, जिससे वे गर्मी के मौसम में भी ठंडे रह सकें. इसके उलट सर्दियों के मौसम में वे गर्म रह सकें. अंडरग्राउंड हाउस और स्टिल्ट हाउस इसके बेहतरीन नमूने हैं, जो आज भी बनाये जाते हैं. जमीन के नीचे बननेवाले घरों में तापमान हर मौसम में एक जैसा ही बना रहता है. गर्मी में ऐसे घर बेहद ठंडे रहते हैं. इसके अलावा स्टिल्ट हाउस यानी ऐसे घर जो पिलर्स की मदद से जमीन से काफी ऊंचाई पर बने होते हैं, वे भी गर्मी के मौसम में काफी हद तक ठंडे रहते हैं. गर्मी में जब जमीन बेहद गर्म हो जाती है, तो ऊंचाई पर बने होने के कारण इनपर गर्मी का असर नहीं होता. वहीं ऐसे घर ठंड के मौसम में गर्म भी रहते हैं. क्योंकि जमीन के ठंडे होने का भी उनपर असर नहीं होता है. ऐसे घर आज भी प्रचलित हैं. घर को ठंडा रखने के लिए दोहरी दीवार और दोहरे छत जैसी तकनीकें भी अपनायी जाती थी. साथ ही बाहर की दीवार जालीनुमा डिजाइन के साथ बनी होती थी. जो घर और बाहर की गर्मी के बीच बफर जोन की तरह काम करती थी. घर की छत को मिट्टी से बनाया जाता था, जिसके ऊपर फूस और लकड़ी से बनी एक दूसरी ढलवा छत लगायी जाती थी. इससे सूर्य की तेज धूप का कोई असर नहीं होता था और घर बिलकुल ठंडा रहता था.
आंगन से आती थी ठंडी हवा
पुराने घरों में अक्सर एक बड़ा-सा आंगन होता है, जिसके चारों तरफ कमरे बने होते हैं. घर का ऐसा आर्किटेक्चर उसे ज्यादा हवादार बनाने के लिए किया जाता है. आज भी समुद्र तटीय क्षेत्रों में और जहां हवा में ज्यादा ह्यूमिडिटी होती है, वहां ऐसे ही आर्किटेक्चर का इस्तेमाल घर को ठंडा रखने के लिए होता है. इसके अलावा आंगन में कुआं भी होता था. यह कुआं इन घरों के तापमान को कई डिग्री तक कम कर देता था, क्योंकि इससे होकर ठंडी हवाएं पूरे घर में जाती थी. राजस्थान में महलों के अंदर बनी बावड़ियां भी इसी आर्किटेक्चर के तहत बनायी जाती थी. न केवल इनसे लोगों को ठंडा पानी मिलता था, बल्कि इससे आसपास के वातावरण का तापमान बाहर के मुकाबले 20 डिग्री तक कम हो जाता था.
मुगल काल में कूलिंग डेकोरेशन
मुगल काल में लोग घर में कई जगहों पर पानी के फव्वारे भी लगाते थे. ये महज डेकोरेशन के लिए नहीं था. इससे घर को भी ठंडा रखने में मदद मिलती थी. इसके अलावा लोग अपने घरों की छत पर लंबी काले रंग की चिमनी लगाते थे. दोपहर में जब हवा गर्म हो जाती थी, तब यह चिमनी घर के अंदर मौजूद गर्म हवा को ऊपर खींचने लगती थी, जिससे घर में ठंडी हवा का बहाव होने लगता था. भारतीय घरों में प्राचीनकाल से ही खस और चिक से बने बेहद खूबसूरत पर्दों का इस्तेमाल होता आ रहा है. इन पर्दों को पानी से भिगो कर खिड़की और दरवाजों पर लटकाया जाता है, जिससे घर के अंदर बिलकुल ठंडी हवा आती है. आपको पता होगा कि पारंपरिक कूलरों में भी इसी खस की पट्टी का उपयोग किया जाता है.