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बेनीवाल के बढ़ते प्रभाव से चिंता में डूबे कांग्रेस के जाट नेता, 2023 में देंगे जोरदार झटका?

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राजस्थान में विधानसभा चुनावों में महज 10 महीने का समय बचा है और अब नेताओं की हर बयानबाजी के अपने मायने हैं. इसी कड़ी में कांग्रेस विधायक और पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी ने हाल में एक सभा के दौरान कहा कि प्रदेश में तीसरी पार्टी सीएम  अशोक गहलोत  की प्रायोजित पार्टी है. हरीश चौधरी ने खुले मंच से सीएम गहलोत और बेनीवाल के बीच सांठगांठ की बात कहते हुए कई गंभीर आरोप लगाए थे. चौधरी के इस दावे के बाद सत्ता पक्ष और विपक्षी खेमे दोनों की ओर से ज्यादा चर्चा नहीं की गई. हालांकि चौधरी के बयान के बाद सियासी गलियारों में एक चर्चा शुरू हो गई कि क्या राजस्थान कांग्रेस के जाट नेताओं को किसी तीसरी पार्टी के वर्चस्व से खतरा महसूस हो रहा है. बता दें कि हनुमान बेनीवाल और उनकी पार्टी आरएलपी के लगातार उदय और तेजी से बढ़ते वोटबैंक ने कांग्रेस के जाट नेताओं में खासी हलचल मचा रखी है. इसका असर खास तौर पर मारवाड़ की राजनीति में देखा जा रहा है जहां बेनीवाल नागौर के बाद जोधपुर और बाड़मेर में अपना विस्तार कर रहे हैं.

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मालूम हो कि बीते दिनों से हरीश चौधरी और दिव्या मदेरणा जैसे नेता बेनीवाल के खिलाफ लामबंद दिखाई दे रहे हैं. आंकड़ों के देखें तो आरएलपी ने 2018 के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस को फायदा पहुंचाया हो लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बेनीवाल लगातार अपनी पार्टी का विस्तार कर रहे हैं. हालांकि सरदारशहर उपचुनाव में भले ही आएलपी ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया लेकिन 2023 के लिए एक मौलिक सवाल बना हुआ है कि क्या आरएलपी से कांग्रेस को फायदा होगा.

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सरदारशहर उपचुनाव में बेनीवाल का उभार

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मालूम हो कि बेनीवाल ने पहली बार 2018 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारे और इसके बाद कई जगह हुए उपचुनाव में दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी. आरएलपी ने खींवसर में जीत दर्ज की और बाकी जगह बीजेपी और कांग्रेस दोनों के वोट घटे. हालांकि, सीटें कांग्रेस के खाते में गई.

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वहीं ताजा उदाहरण है चूरू की सरदारशहर सीट पर हुआ उपचुनाव है जहां कांग्रेस 26 हजार से अधिक वोटों से जीती लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दोनों के वोट कम हुए और आरएलपी ने 46 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए. बता दें कि बेनीवाल की पार्टी ने चार साल पहले इसी सीट पर 10 हजार वोट हासिल किए थे.

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बेनीवाल के 3 विधायक जीते

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वहीं बेनीवाल की पार्टी ने पहली बार 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ा और 3 सीटों पर जीत हासिल की और वह खुद नागौर की खींवसर सीट से जीते. इसके बाद वह एनडीए में शामिल होकर नागौर सीट से सांसद चुने गए और एनडीए में रहते खींवसर सीट पर बीजेपी ने उनके भाई नारायण का समर्थन किया और वे चुनाव जीत गए.

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इधर झुंझुनूं की मंडावा सीट से बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा जो नरेंद्र कुमार के सांसद चुने जाने से खाली हुई थी. इसके बाद तीन कृषि कानूनों के विरोध में आरएलपी ने एनडीए से नाता तोड़ लिया और इसके बाद हुए 6 उपचुनावों में 5 में आरएलपी ने हर बार वोट शेयर बढ़ाया है. बीते दिनों बेनीवाल ने कहा था कि कांग्रेस और बीजेपी हमारी पार्टी के बढ़ते जनाधार से घबरा गए हैं, प्रदेश में एक मात्र हमारी पार्टी है, जो विपक्ष की भूमिका निभा रही है.

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जाट नेताओं के लिए खतरा बेनीवाल !

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गौरतलब है कि कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी हनुमान बेनीवाल की पार्टी को खुले मंच से मुख्यमंत्री गहलोत की प्रायोजित पार्टी बताते हैं तो बेनीवाल भी चौधरी पर सीधा हमला कर गहलोत को उनका पॉलिटिकल फादर कह दिया. उन्होंने तो हरीश चौधरी की आगामी सियासी राह को लेकर भविष्यवाणी तक कर दी और कहा कि चौधरी बीजेपी के संपर्क में हैं.वहीं इससे पहले दिव्या मदेरणा और हनुमान बेनीवाल के बीच भी बयानबाजी का दौर देखा गया जहां दिव्या मदेरणा हनुमान बेनीवाल के विधानसभा क्षेत्र खींवसर में जाकर उन्हें चुनौती देती नजर आई.

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