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राजस्थान की सियासत में उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का क्या काम?

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जयपुर: आने वाले 100 दिनों के भीतर राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने हैं. अपनी रणनीति के तहत अलग-अलग दल अपने-अपने समीकरणों के हिसाब से फिट बैठने वाले नेताओं को चुनावी राज्यों में भेजते हैं. इसी चली आ रही प्रक्रिया के तहत भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को चुनावी राज्य राजस्थान में भेज रही है. मौर्य कल यानी गुरुवार को ही राजस्थान के सीकर के दौरे पर थे, जहां उन्होंने जनसभा को भी संबोधित किया. 50 दिन में ये उनका दूसरा राजस्थान दौरा है. यूपी के नेता का राजस्थान में बार-बार दौरे करना, एक सवाल उठाता है कि आखिर वो कौन सी रणनीति है, जिसके चलते बार-बार पार्टी उन्हें राजस्थान भेज रही है. इसका जवाब तलाशते हुए जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश पहला कारण बनकर उभरती है. केशव प्रसाद मौर्य माली समाज से आते हैं. राजस्थान में माली समाज की आबादी लगभग 10 फीसदी है. सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी इसी समुदाय से आते हैं. कई मौकों पर गहलोत ये कह भी चुके हैं कि वो अपने समुदाय से आने वाले कांग्रेस पार्टी में इकलौते विधायक हैं और फिर भी मुख्यमंत्री पद पर हैं. हालांकि बीजेपी इस बार इस समाज के वोटर्स को अपने पाले में खींचने का कोई अवसर छोड़ने के मूड में नहीं है. इसीलिए पार्टी ने इसी जाति से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य को राजस्थान में उतारा.

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40 सीटों पर जीत-हार तय करता है माली समाज

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केशव प्रसाद मौर्य ने सीकर दौरे के दौरान पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद मदनलाल सैनी की मूर्ति का अनावरण करते हुए अपने इस संदेश को और भी ज्यादा मजबूती दी है कि बीजेपी की नजर इस बार सूबे में माली समुदाय पर है. हो भी क्यों न, राजस्थान में 40 सीटों माली समाज के वोटर्स जीत-हार का फैसला तय करते हैं. वहीं एक तरफ जब गहलोत खुद को मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने वाला इस समाज का इकलौता नेता बताते हैं तो जवाब में बीजेपी के पास मौर्य ही हैं, जो यूपी में इस समुदाय से आने वाले इकलौते शख्स हैं, जो डिप्टी सीएम की कुर्सी तक पहुंचा हो.

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पार्टी केशव प्रसाद मौर्य को माली समाज का नेता प्रोजेक्ट करते हुए राजस्थान में सफलता हासिल करने का गणित बैठा रही है. मौर्य पर पार्टी का भरोसा जताने का एक अहम कारण है उत्तर प्रदेश में इस समाज को पार्टी से जोड़ने में मिली सफलता. उत्तर प्रदेश में माली समाज को शाक्य, सैनी, कुशवाहा और कोइरी नाम से पहचाना जाता है. यूपी में ये समुदाय पिछड़े वर्ग का तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है. राजनीतिक तौर पर सबसे महत्वपूर्ण राज्य में 6 से 8 फीसदी की आबादी वाला ये समुदाय कई सीटों पर जीत-हार का फैसला तय करता है. हालांकि इसे किसी भी पार्टी का कोर वोटर नहीं माना जाता, क्योंकि ये वोट समूह कई दलों को आजमाता रहा है.

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उत्तर प्रदेश में बीजेपी के साथ रहा माली समाज

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हालांकि साल 2017 में जब भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनी थी, तब माली समाज का 90 फीसदी वोट बीजेपी को गया था. इसके पीछे केशव प्रसाद मौर्य के अहम रोल को माना जाता है. 2022 में भी ये वोट समूह बीजेपी के साथ जुड़ा रहा. यही कारण है कि बीजेपी ने उन्हें डिप्टी सीएम बनाया. बीजेपी भले ही 2019 के लोकसभा चुनाव में राजस्थान की 25 में से 24 सीटें जीती हो, लेकिन साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था. जानकारों की मानें तो ये बताया जाता है कि पार्टी राजस्थान में जातिगत समीकरण साधने में विफल रही थी. लेकिन इसबार बीजेपी ऐसा कोई भी मौका गंवाने के मूड में नहीं है. इसी लिए 10 प्रतिशत आबादी को साधने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को मैदान में उतारा है.

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माली समाज से आने वाले यूपी के कद्दावर नेता केशव प्रसाद मौर्य की तुलना में स्वामी प्रसाद मौर्य को भी बड़ा नेता बताया जाता है, जिनकी वाकई में इस समाज में मजबूत पकड़ भी है. हालांकि वो बीजेपी छोड़ समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ गए हैं. ऐसे में बीजेपी अब केशव प्रसाद मौर्य को माली समाज के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है, ताकि उसे इस समाज का वोट हासिल हो सके. राजस्थान में ये कोशिश काम आएगी या नहीं ये चुनाव बाद के नतीजे साफ करेंगे, लेकिन राजस्थान की मिट्टी केशव प्रसाद मौर्य को इसका स्वाद पहले ही चखा चुकी है.

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माली समाज ने मौर्य के सामने लगाए गहलोत के नारे

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करीब एक महीने पहले केशव प्रसाद मौर्य राजस्थान में माली समाज के कार्यक्रम में पहुंचे थे. इस दौरान जब वो भाषण दे रहे थे तब कई दफा उनके सामने अशोक गहलोत के समर्थन में नारे लगे. इससे ये साफ हो गया है कि माली समुदाय को गहलोत के खिलाफ वोट करते हुए अपने पाले में लाना हरगिज भी आसान नहीं होगा. खैर तब मौर्य ने अपना भाषण भले ही बीच में रोक कर वहां से जाना उचित समझा, लेकिन वो एक बार फिर से राजस्थान लौटे. अब देखना ये होगा कि क्या वो अपनी इस कोशिश के दम पर राज्य में बीजेपी को वापस लाने में कामयाब होते हैं या नहीं.

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