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हरियाणा में पास, राजस्थान में दूर, NDA पर चौटाला की चोट, JJP से BJP को क्या होगा नुकसान?

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विपक्षी गठबंधन INDIA के मुकाबले बीजेपी ने अपने एनडीए कुनबे को काफी बड़ा कर लिया है. बीजेपी हरियाणा में पिछले चार सालों से जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ मिलकर सरकार चला रही है और दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम हैं, लेकिन राजस्थान विधानसभा चुनाव में दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोकने की तैयारी में हैं. दुष्यंत चौटाला ने गुरुवार को जयपुर में ऐलान किया कि राजस्थान की 30 विधानसभा सीटों पर जेजेपी अपना उम्मीदवार उतारेगी. ऐसे में सवाल उठता है कि हरियाणा में एक दिख रहा एनडीए राजस्थान में क्यों बिखरा नजर आ रहा है और जेजेपी के चुनाव लड़ने से किसे नफा-नुकसान होगा?जयपुर में जेजेपी द्वारा आयोजित किसान-नौजवान सभा के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गुरुवार को दुष्यंत चौटाला ने कहा कि राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए कार्यकर्ता पूरी तरह से तैयार रहे हैं. सूबे के 18 जिलों की 30 विधानसभा सीटों पर जेजेपी अपने उम्मीदवार उतारेगी और मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगी. दुष्यंत चौटाला ने दावा किया कि प्रदेश की जनता के आशीर्वाद से राजस्थान विधानसभा का ताला इस बार जेजेपी के चुनाव चिह्न की चाबी से खुलेगा.

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पुराने रिश्तों की दुहाई देकर किंगमेकर बनने की जुगत में जेजेपी

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दुष्यंत चौटाला राजस्थान में अपने पुराने नाते-रिश्ते की याद दिला कर सियासी समीकरण साधने की कवायद कर रही है. दुष्यंत चौटाला के परदादा चौधरी देवीलाल राजस्थान की सीकर लोकसभा सीट से सांसद रहे हैं और देश के उपप्रधानमंत्री बने थे. इतना ही नहीं दुष्यंत चौटाला के पिता अजय चौटाला नोहारा और दातारामगढ़ विधानसभा सीट से विधायक रहे. इस तरह से जेजेपी राजस्थान के साथ अपने पुराने रिश्तों की दुहाई देकर हरियाणा की तरह ही किंगमेकर बनने की जुगत में है. इसके लिए मजबूत नेताओं को जोड़कर उन्हें चुनावी रण में उतारने की तैयारी कर रखी है.

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पूर्व विधायक प्रतिभा सिंह और डॉ. मोहन सिंह नदवई को जेजेपी में शामिल कराने के बाद दुष्यंत चौटाला ने कहा कि राजस्थान में राजनीतिक प्रभाव रखने वाले लोग निरंतर जेजेपी से जुड़ रहे हैं. नए मजबूत लोगों के पार्टी में शामिल होने से जेजेपी राजस्थान में मजबूती से उभर रही है. प्रतिभा सिंह नवलगढ़ विधानसभा सीट 2003-2008 तक निर्दलीय विधायक रह चुकी हैं. वे दो बार नवलगढ़ से ब्लाक समिति प्रधान रही हैं. इसके अलावा वह आरएलडी की महिला राष्ट्रीय अध्यक्ष रही हैं.

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जेजेपी नेताओं ने प्रदेश में जमा रखा है डेरा

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डॉ. मोहन सिंह नदवई भरतपुर विधानसभा क्षेत्र में खासा प्रभाव रखते हैं. नदवई की पत्नी डॉ सुलभा दो बार भरतपुर जिला परिषद की अध्यक्ष रह चुकी हैं. हाल ही में सीकर से पूर्व जिला परिषद चेयरपर्सन और दातारामगढ़ से कांग्रेस विधायक वीरेंद्र सिंह की धर्मपत्नी रीटा सिंह भी जेजेपी का दामन थाम चुकी हैं. दुष्यंत चौटला के भाई दिग्विजय चौटाला और राजस्थान जेजेपी के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप देसवाल ने प्रदेश में डेरा जमा रखा है.

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जेजेपी की नजर राजस्थान के जाट समुदाय के वोटों को साधने की है, क्योंकि चौटाला परिवार भी जाट समुदाय से आता है. हरियाणा में जेजेपी जाट समुदाय के वोटों को साधकर किंगमेकर बनी थी. उसी तर्ज पर राजस्थान में भी जेजेपी सियासी बिसात बिछाने में जुटी है. राजस्थान में करीब 12 फीसदी जाट समुदाय के वोट हैं. राज्य की करीब 50 से 55 विधानसभा सीटों पर जाट समुदाय हार जीत तय करने में अहम भूमिका अदा करते हैं.

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राजस्थान में 10 से 15 फीसदी विधायक जाट समुदाय के होते हैं, लेकिन आज आजादी के बाद से आजतक कोई जाट मुख्यमंत्री नहीं बन सका है. इसे लेकर जाटों में एक नाराजगी रहती है, जिसे दुष्यंत चौटाला भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. इसीलिए वे अपने भाई दिग्विजय सिंह चौटाला को राजस्थान की सियासत में आगे बढ़ा रहे हैं.

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जाट प्रभाव वाले क्षेत्र और सीटें

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राजस्थान की सियासत में जाट समुदाय किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है. सूबे में शेखावटी इलाका जाट बहुल माना जाता है, जहां पर जाट समुदाय के 30 फीसदी वोटर हैं. जोधपुर, भरतपुर, हनुमानगढ़, गंगानगर, धौलपुर बीकानेर, चुरू, झुंझनूं, नागौर, जयपुर, चित्तोड़गढ़, अजमेर, बाड़मेर, टोंक, सीकर में जाट समुदाय बड़ी संख्या में हैं. धौलपुर जाटों के सबसे बड़े गढ़ में से एक है. बावजूद इसके जाटों को उतना महत्व नहीं मिला, जितने की इन्हें उम्मीद थी. अब जाट राजनीति में आए इस शून्य को भरने के लिए दुष्यंत चौटाला ने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को राजस्थान में उतारने की तैयारी की है.

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जेजेपी से क्या बीजेपी को नुकसान?

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राजस्थान में जाट समुदाय लंबे समय तक कांग्रेस का वोटर रहा है. 1998 के विधानसभा चुनाव में जाट समाज यह मानकर चल रहा था कि राज्य में पहली बार परसाराम मदेरणा के रूप में जाट मुख्यमंत्री बनेगा, लेकिन अशोक गहलोत को गद्दी सौंप दी गई थी. इसके चलते जाट समुदाय नाराज होकर 2003 में बीजेपी के साथ चला गया. वसुंधरा सरकार में जाट समाज को काफी महत्व भी मिला, लेकिन अब जाट समाज की सीएम पद पर नजर है. जाट समुदाय को साधे रखने के लिए कांग्रेस ने गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है, लेकिन बीजेपी भी जाट नेताओं को आगे बढ़ा रही है. ऐसे में दुष्यंत चौटाला के चुनावी मैदान में उतरने से बड़ा झटका बीजेपी को लग सकता है, क्योंकि बीजेपी जाट वोटों को जोड़ने के लिए तमाम तरह के जतन कर रही है.

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