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इमरान मसूद आगे क्या करेंगे. किस पार्टी में जाएंगे. इमरान अभी माहौल देख भी रहे हैं और अपने लिए बना भी रहे हैं. लगातार कई चुनाव हार चुके इमरान मसूद इस बार कोई फैसला करने से पहले हर दांव आजमा लेना चाहते हैं. बीजेपी को छोड़कर वे सभी पार्टियों में रह चुके हैं. मायावती ने 30 अगस्त को उन्हें बीएसपी से बाहर कर दिया था. पार्टी से निकाले जाने का आधिकारिक कारण तो ये बताया गया था कि उन्होंने सदस्यता शुल्क नहीं जमा किया था. लेकिन बीएसपी कैंप से ये जानकारी आई थी कि राहुल गांधी की तारीफ करने के कारण इमरान से मायावती नाराज हो गई थीं. अपने समर्थकों के बीच इमरान मसूद ने ये ऐलान कर दिया है कि वे हर हाल में 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. अब उन्हें कोई पार्टी टिकट नहीं देती है तो भी वे निर्दलीय ही चुनाव लड़ेंगे. लेकिन वे चाहते हैं कि इस बार वे इस तरह चुनाव लड़ें कि वे लोकसभा पहुंच जाएं. उनके राहुल गांधी से बड़े अच्छे संबंध हैं. नरेंद्र मोदी को मारने की धमकी देने के बयान के बाद इमरान मसूद को 2014 में गिरफ्तार कर लिया गया था. कांग्रेस के कई नेताओं ने राहुल को सहारनपुर न जाने की सलाह दी थी. इसके बावजूद राहुल गांधी ने इमरान के लिए प्रचार किया था. तब इमरान मसूद सहारनपुर से कांग्रेस के उम्मीदवार थे. वे दोबारा 2019 का आम चुनाव भी कांग्रेस से लड़े. उन्हें 2 लाख 7 हजार वोट मिले. बीएसपी और बीजेपी के बाद इमरान तीसरे नंबर पर रहे. उस चुनाव में समाजवादी पार्टी और बीएसपी का गठबंधन था. जबकि 2014 के चुनाव में इमरान दूसरे नंबर पर रहे और उन्हें 4 लाख 7 हजार वोट मिले थे. वैसे तो इमरान मसूद के आरएलडी नेता जयंत चौधरी और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर से भी अच्छे संबंध हैं. लेकिन उनका इरादा उसी पार्टी में जाने का है जहं से उन्हें टिकट मिले और चुनाव जीतने की गारंटी हो. इस लिहाज से कांग्रेस उनकी पहली प्राथमिकता है.
फंस सकता है इमरान मसूद का पेंच
इस बार समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और आरएलडी इंडिया गठबंधन में हैं. तीनों पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा होगा. इस बंटवारे में सहारनपुर किसे मिलेगा. यहां इमरान मसूद के लिए पेंच फंस सकता है. अभी यहां से बीएसपी के फजलुर रहमान सांसद हैं. बताया जाता है कि वे अखिलेश यादव के संपर्क में हैं. ये भी जानकारी सामने आई है कि समाजवादी पार्टी इस बार सहारनपुर की सीट अपने पास रखना चाहती है. अगर अखिलेश यादव ने ज़िद पकड़ ली तो फिर इमरान मसूद का क्या होगा .
उनके आरएलडी जाने पर भी लोकसभा टिकट की कोई गारंटी नहीं है. सहारनपुर में बीएसपी को 2 लाख से अधिक वोट मिलते रहे हैं. इसीलिए उन्होंने चंद्रशेखर से अच्छे रिश्ते बना रखे हैं जो सहारनपुर के ही हैं. इमरान मसूद 2007 में निर्दलीय ही विधायक चुने गए थे. पर उसके बाद वे अब तक कोई चुनाव नहीं जीत पाए हैं. सूत्रों से जानकारी मिली है कि इमरान मसूद की नजर कैराना लोकसभा सीट पर भी है. अगर सहारनपुर पर बात नहीं बनी तो फिर वे यहां से अपनी क़िस्मत आजमा सकते हैं.
कैराना लोकसभा क्षेत्र में करीब 45% मुस्लिम वोटर हैं. अभी ये सीट बीजेपी के पास है. उससे पहले 2014 में बीजेपी के हुकुम सिंह यहां से जीते थे. उनके निधन के बाद हुए उप चुनाव में ये सीट आरएलडी ने जीत ली. इमरान मसूद के कुछ करीबी लोग AIMIM चीफ असदूद्दीन ओवैसी के संपर्क में भी हैं. पश्चिमी यूपी में ओवैसी की बड़ी दिलचस्पी रही है. इमरान मसूद के कुछ साथी इन दिनों ओवैसी की भी तारीफ कर रहे हैं. कहने का मतलब ये है कि इमरान इस बार कोई भी फ़ैसला जल्दबाज़ी में नहीं करना चाहते हैं. बस ये चुनाव वे लड़ने के लिए नहीं बल्कि जीतने के लिए लड़ना चाहते हैं.
पूर्व विधायक रहे इमरान मसूद पश्चिमी यूपी के बड़े मुस्लिम नेता माने जाते हैं. पिछले कुछ दिनों से वे लगातार सहारनपुर में अपने समर्थकों के साथ बैठकें कर रहे हैं. सहारनपुर में वे कई जन सभाएं भी कर चुके हैं. अपने भविष्य को लेकर जनता से वे फ़ीडबैक ले रहे हैं. या फिर यूं कह लें कि आगे कोई बड़ा फ़ैसला लेने से पहले वे पब्लिक का मूड भांप रहे हैं. वैसे भी एक नहीं दो दो बार ग़लतियां कर चुके हैं. सार्वजनिक रूप से वे अपनी गलती मान भी रहे हैं. वे कहते हैं कि अखिलेश यादव और मायावती ने उनके साथ जो वादा किया, उसे नहीं निभाया. यूपी में पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर अखिलेश यादव का दामन थाम लिया था. इसके पीछे की वजह ये बताई गई कि मुस्लिम समाज ने तब बीजेपी के खिलाफ समाजवादी पार्टी को वोट देने का फ़ैसला कर लिया था. ऐसे हालात में कांग्रेस में रहने से उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला था. पर विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. जबकि उनके कट्टर विरोधी आशु मलिक को अखिलेश यादव ने टिकट दे दिया. इमरान मसूद को समाजवादी पार्टी की तरफ़ से ये भरोसा दिया गया कि सरकार बनने के बाद उन्हें उचित सम्मान मिलेगा. यूपी में न तो अखिलेश यादव की सरकार बनी और न ही इमरान मसूद को वो सम्मान ही मिल पाया. जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ी थी, तब वे पार्टी के राष्ट्रीय सचिव थे. वे प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के करीबी माने जाते थे. विधानसभा चुनाव ख़त्म होने के कुछ ही दिनों बाद इमरान मसूद ने अखिलेश यादव के खिलाफ बयान देना शुरू कर दिया. उन्होंने कह दिया कि अखिलेश यादव के पास न तो कोई रणनीति है और न ही वे राजनैतिक रूप से परिपक्वता दिखाने का काम करते हैं.
इमरान मसूद पिछले साल अक्टूबर के महीने में बीएसपी चले गए. मायावती ने उनके कंधे पर हाथ रख कर तब उन्हें आशीर्वाद दिया. फिर उन्हें पश्चिमी यूपी का प्रभारी भी बना दिया. फिर इमरान ने यूपी का दौरा शुरू कर दिया. वे मीडिया में बयान भी देने लगे. मायावती को उनके ये तेवर पसंद नहीं आए. उन्होंने इमरान मसूद के दौरे के साथ साथ मीडिया में बयान देने पर भी रोक लगा दिया. पर सहारनपुर से उनके परिवार को मेयर का टिकट ज़रूर दिया. पर बीएसपी ये चुनाव हार गई.