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राजस्थान की सिवाना सीट पर 25 सालों से हार रही कांग्रेस, इस बार बिगड़ेगा BJP का भी खेल!

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मारवाड़ की सिवाना विधानसभा क्षेत्र को स्थानीय भाषा में सिवांची भी कहा जाता है. सिवाना मुख्यालय पर स्थित किले का निर्माण मारवाड़ शासक मालदेव ने करवाया था. 1600 ईस्वी में मुगल बादशाह अकबर ने इस किले पर आक्रमण किया था. वहीं कल्याण सिंह राठौड़ (कल्लाजी) ने अकबर से किले की रक्षा के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. वहीं आत्मसम्मान की रक्षा के लिए हाडी रानी के नेतृत्व में सैकड़ों क्षत्राणियों ने किले मे जौहर करके अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. सिवाना विधानसभा सीट बाड़मेर जिले में आती थी लेकिन बालोतरा के नया जिला बनने के बाद यह इसमें शामिल हो गई है. सियासत की बात करें तो आजाद भारत में लोकतंत्र की स्थापना के बाद इस सीट पर पहली बार 1951 में मतदान हुआ था. तब से अब तक इस सीट का अलग ही राजनीतिक इतिहास रहा है.

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यहां का जातीय समीकरण

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यह सीट ज्यादातर एसी वर्ग के लिए आरक्षित रही है. वहीं पिछले 25 वर्षो में कांग्रेस इस सीट पर जीत नहीं पाई है. सीट के जातीय समीकरण की बात की जाए तो यहां 17.21 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाता हैं जबकि 8.81 फ़ीसदी अनुसूचित जनजाति के वोटर्स हैं. यह सीट कई दशकों तक एससी वर्ग की रही, लेकिन 2008 के बाद से यह सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित कर दी गई है.

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कितने वोटर, कितनी आबादी

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इस सीट पर कुल 270997 मतदाता हैं, इनमें करीब अनुसूचित जाति जनजाति के 25 फीसदी से ज्यादा वोटर हैं. इस सीट पर 1998 के बाद से कांग्रेस जीत दर्ज नहीं कर पाई है. इस सीट पर निर्दलीयों ने कई बार दोनों ही पार्टियों के समीकरण बिगाड़े हैं. कई बार यह सीट निर्दलीयों के कब्जे में भी रही है.

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2018 में बीजेपी ने मारी बाजी

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वहीं कई चुनावों में कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही है. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पंकज प्रताप सिंह को टिकट देकर मैदान में उतारा था लेकिन इनको सिर्फ 18000 वोट ही मिले. यहां टक्कर भाजपा और निर्दलीय उम्मीदवार के बीच रही. 2018 में सिवाना से कांग्रेस के प्रत्याशी रहे पूर्व जिला प्रमुख बालाराम चौधरी ने निर्दलीय ताल ठोकी थी. इस चुनाव में भाजपा के हमीर सिंह भायल कड़ी टक्कर के बाद महज 957 वोट से चुनाव जीते थे. इस चुनाव में कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही थी.

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इस बार भी होगा रोचक मुकाबला

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इस बार सिवाना विधानसभा सीट से दावेदारों की लिस्ट लंबी है. बात करें भाजपा की तो इस सीट से वर्तमान विधायक हमीर सिंह भायल, सोहन सिंह भायल, बाबूलाल परिहार, खेत सिंह भाटी और क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक तन सिंह के बेटे पृथ्वी सिंह भी टिकट की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस की स्थिति भी कुछ इस तरह की ही है. इस सीट से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वाले सुनील परिहार लंबे समय से इस क्षेत्र में सक्रिय रहकर कांग्रेस की टिकट मांग रहै है् लेकिन इस क्षेत्र के कांग्रेसी नेता ही स्थानीय नेता को टिकट देने की मांग रहे हैं.

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कांग्रेस से भी इस बार टिकट के दावेदारों की लिस्ट लंबी है. इस सीट से इस बार सुनील परिहार, पंकज प्रताप सिंह, सिवाना प्रधान मुकन सिंह राजपुरोहित, गरिमा राजपुरोहित, बालाराम चौधरी, पंकज प्रताप सिंह, गोपाराम मेघवाल सहित कई नेता इस सीट से कांग्रेस की टिकट की मांग कर रहे हैं.

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चुनावी मुद्दा

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सिवाना विधानसभा का ज्यादातर इलाका ग्रामीण क्षेत्र है. यहां ज्यादातर लोग खेती पर निर्भर हैं. इस क्षेत्र में लंबे समय से पेयजल की समस्या चली आ रही है. इसको लेकर सिवाना मुख्यालय पर पिछले दो साल से धरना भी चल रहा है. वहीं सड़कों के हाल खराब हैं. इस क्षेत्र से लूनी नदी भी निकलती है. ऐसे में पाली की फैक्ट्री लूनी नदी के जरिए इस क्षेत्र के किसानों की जमीन को बंजर कर रहा है. इसको लेकर भी लंबे समय से लोग आवाज उठा रहे हैं, लेकिन अभी तक केमिकल युक्त पानी से इस क्षेत्र के किसानों को छुटकारा नहीं मिला है. इस चुनाव में यह भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा होगा.

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