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मराठा आरक्षण आंदोलन के साइड इफेक्ट, मुद्दा नहीं सुलझा तो 2024 में होगी मुश्किल

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महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन ने अब उग्र रुख अख्तियार कर लिया है. प्रदर्शनकारियों ने एनसीपी के दो विधायकों और एक पूर्व मंत्री के घरों में आग लगा दी है. महाराष्ट्र के बीड में कर्फ्यू लगा दिया गया है और धारा 144 के तहत लोगों के एकत्र होने पर रोक भी लगा दी गई है, लेकिन हालात काबू नहीं हो पा रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मराठा आरक्षण आंदोलन के चलते बीजेपी-शिंदे सरकार सियासी मझधार में फंसी हुई है. शिवसेना शिंदे गुट के सांसद हेमंत पाटिल और हेमंत गोडसे ने मराठा आरक्षण के समर्थन में इस्तीफा देकर सरकार पर दबाव बना दिया है. ऐसे में मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा कि मराठा समुदाय धैर्य रखें. कानून के दायरे में उन्हें आरक्षण मिलेगा. इसी बीच शिंदे कमेटी की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया है, जिसे मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा. ऐसे में माना जा रहा है कि मराठा समुदाय को कुनबी जाति का प्रमाणपत्र जारी करके आरक्षण दिया जा सकता है. सीएम शिंदे ने भी ऐसे ही संकेत दिए हैं, लेकिन कुनबी जाति को प्रमाणपत्र दिया जाता है तो ओबीसी समुदाय नाराज हो सकता है.

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मराठा आरक्षण की मांग बीजेपी के लिए बनी चुनौती

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2024 लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी तपिश गर्मा गई है. 2024 के चुनाव में महज 6 महीने बाकी हैं. ऐसे में महाराष्ट्र में उठी मराठा आरक्षण की मांग बीजेपी के लिए चुनौती बन गई है. हालांकि, महाराष्ट्र के सीएम शिंदे ने मराठा समुदाय को साधने के लिए कुनबी जाति का प्रमाण पत्र देने की रणनीति बनाई है. शिंदे ने कहा कि 11530 पुराने दस्तावेज मिले हैं, जिनमें कुनबी जाति का उल्लेख है. मंगलवार को इस संबंध में नए प्रमाणपत्र जारी किए जाएंगे. उन्होंने कहा कि जिनके पास कुनबी जाति के साक्ष्य होंगे, उन्हें तुरंत ओबीसी के प्रमाणपत्र जारी किए जा सकते हैं.

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मुख्यमंत्री शिंदे ने मराठा आरक्षण को सुलझाने के दो फॉर्मूले दिए हैं. पहला कुनबी प्रमाणपत्र पत्र के द्वारा और दूसरा सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन के जरिए. कुनबी जाति को मराठों का प्रमाणपत्र देने के चलते बीजेपी के मजबूत ओबीसी आधार के भड़कने का खतरा भी बन गया है. सितंबर महीने में शिंदे सरकार ने यह कोशिश की थी कि मराठों को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र देकर उन्हें ओबीसी आरक्षण लाभ मिल सके, लेकिन इससे मराठा आरक्षण की मांग ठंडी नहीं पड़ी. उलटा विदर्भ इलाके में ओबीसी समुदाय भड़क गया था. इस प्रदर्शन में बीजेपी और कांग्रेस के ओबीसी नेता शामिल थे.

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मराठाओं को कुनबी जाति के तहत आरक्षण देने का दांव

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बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के नेता आशीष देशमुख, कांग्रेस के नेता और महाराष्ट्र विधानसभा में नेता विपक्ष विजय वडेट्टीवार भी विरोध में खड़े नजर आए थे. देशमुख ने कहा था कि मराठा आर्थिक रूप से पिछड़े नहीं हैं और उन्हें ओबीसी कोटे से आधा फीसदी भी आरक्षण नहीं मिलना चाहिए, वरना हमारे लिए आंदोलन के रास्ते खुले हैं. ऐसे में शिंदे सरकार एक बार फिर से कुनबी जाति के तहत आरक्षण देने का दांव चलती है, जिस तरह से उसकी तैयारी है.

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मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जारंगे जालना के अंतरौली में पिछले 6 दिन से भूख हड़ताल पर हैं तो दूसरी तरफ मराठा समाज सड़क पर उतर गया है. यही वजह है कि राज्य सरकार कुनबी जाति का प्रमाणपत्र देकर डैमेज कन्ट्रोल करने के मूड में हैं, लेकिन इसके चलते बीजेपी के कोर वोटबैंक के छिटकने का खतरा बन गया है. सितंबर की तरह इस बार भी ओबीसी समुदाय मराठों को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र दिए जाने का विरोध करती है तो बीजेपी के लिए चिंता बढ़ सकती है.

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महाराष्ट्र में लंबे समय से मराठा समुदाय के आरक्षण की मांग उठती रही है. साल 2018 में फड़णवीस सरकार ने कानून बनाकर मराठा समाज को नौकरियों और शिक्षा में 16 फीसदी आरक्षण देने का काम किया था, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट में मामला जाने के बाद आरक्षण को कम करके 12 फीसदी शिक्षा में और 13 फीसदी नौकरी में फिक्स कर दिया था. ऐसे में मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस का हवाला देते हुए इस पर रोक लगा दी थी. साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस फैसले को पूरी तरह ही रद्द कर दिया था.

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मराठाओं के लिए ओबीसी का दर्जा दिए जाने की भी मांग

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महाराष्ट्र में चुनाव की सियासी तपिश गर्म है. पहले लोकसभा चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव है. ऐसे में उठी मराठा आरक्षण की मांग राज्य सरकार के लिए बड़ी चिंता का सबब बन गई है. मराठाओं ने आरक्षण को लेकर आंदोलन उग्र रूप अख्तियार कर लिया है. मराठाओं के लिए ओबीसी का दर्जा दिए जाने की मांग भी हो रही है. दूसरी तरफ ओबीसी समुदाय किसी भी सूरत में मराठों को आरक्षण देने के पक्ष में नहीं है.

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बता दें कि महाराष्ट्र में मराठाओं की आबादी 30 से 33 फीसदी है. महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 20 से 22 सीटें और विधानसभा की 288 सीटों में से 80 से 85 सीटों पर मराठा वोट निर्णायक मानी जाती है. साल 1960 में महाराष्ट्र के गठन के बाद से अब तक यानी साल 2023 तक 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से ही रहे हैं. मौजूदा सीएम एकनाथ शिंदे भी मराठा समुदाय से हैं. दूसरी तरफ राज्य में ओबीसी समुदाय भी 40 फीसदी है.

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मराठा समुदाय के बीच शिवसेना और एनसीपी का सियासी आधार

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मराठावाड़ा मराठों का गढ़ माना जाता है तो विदर्भ में ओबीसी का दबदबा है. राज्य की 48 लोकसभा सीट में से 11 इसी इलाके में हैं और बीजेपी 10 सीटों पर काबिज है. मराठा की 288 विधानसभा सीटों में 62 इसी क्षेत्र से हैं. महाराष्ट्र में ओबीसी बीजेपी का मजबूत वोटबैंक माना जाता है, जबकि मराठा समुदाय के बीच शिवसेना और एनसीपी का सियासी आधार है. ऐसे में बीजेपी मराठा समुदाय के लिए कदम बढ़ाती है तो ओबीसी के छिटकने का डर सता रहा है तो दूसरी तरफ मराठों को आरक्षण नहीं दिया जाता तो वो आरपार के मूड में है.

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मराठा आरक्षण आंदोलन जिस तरह से तेज होता जा रहा है, उसके चलते बीजेपी को लोकसभा तो एनसीपी नेता और डिप्टी सीएम अजीत पवार को अपने वोटबैंक की चिंता है. अजीत पवार अगर राज्य सरकार के रुख के साथ जाते हैं तो उन्हें मराठा समुदाय के नाराज होने का खतरा दिख रहा है. इसके अलावा शिंदे के साथ खड़े नजर आते हैं तो मराठा वोट बंटने की संभावना है. इसी तरह मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के सामने अपने मराठा वोटबैंक की टेंशन खड़ी हो गई है.

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मराठा समुदाय को साध नहीं पा रही शिंदे सरकार

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सीएम शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़णवीस मराठा समुदाय को साध नहीं पा रहे हैं, जिसके चलते शिवसेना शिंदे गुट के दो सांसदों ने इस्तीफा दे दिया है. बीजेपी नेतृत्व की नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर है. ऐसे में मराठा आरक्षण आंदोलन ने उसे सियासी मझधार में लाकर खड़ा कर दिया है. यह मुद्दा नहीं सुलझा तो बीजेपी को सियासी नुकसान हो सकता है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी इससे कैसे पार पाती है.

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