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राजस्थान चुनाव में चेहरे बदले पर परिवार नहीं, पोते-पोतियों तक को टिकट… वंशवाद से जुड़े 45 उम्मीदवार मैदान में

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राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां वंशवाद को खत्म करने की बात करती हैं, लेकिन जब बात टिकट बंटवारे की आती है तो सभी चुप्पी साध लेते हैं. विधानसभा क्षेत्र में वंशवाद शुरू होने के साथ ही बगावत के सुर भी देखने को मिलते हैं. विधानसभा क्षेत्र में कार्य करने वाले पदाधिकारी और कार्यकर्ता जो कि लंबे समय से पार्टी के सच्चे सिपाही के तौर पर काम करते हैं जब टिकट मांगते हैं तो इन पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को वंशवाद का दंश झेलना पड़ता है. इस बार के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का मिला दें तो कुल 45 टिकट ऐसे लोगों को दिए गए हैं जो वंशवाद के सहारे अपनी राजनीति करते हैं. वंशवाद के नाम पर परदादा, दादा से होते हुए पोते-पोतियों को दावेदार बनाया जाता है. फिर चाहे वो बीजेपी हो या कांग्रेस वंशवाद के जाल में करीब-करीब सभी राजनीतिक पार्टियां फंसी हुई हैं, लेकिन जब बात आती है तो एक दूसरे पर आरोप मढ़ते हुए पल्ला झाड़ लेते हैं. राजस्थान चुनाव से ठीक पहले ऐसे कई नाम सामने आए हैं जो वंशवाद की राजनीति से जुड़ी सच्चाई उजागर करती है.

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राजस्थान के वो चेहरे जो हैं वशंवाद के सबसे बड़े उदाहरण

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  • परशुराम मदेरणा की पोती दिव्या मदेरणा को टिकट दिया गया है. मदेरणा परिवार तीन पीढ़ियों से राजनीति में एक्टिव है.
  • नाथूराम मिर्धा परिवार से भी लगातार वंशवाद देखने को मिल रहा. इस बार भी चुनाव में इसी परिवार के चार प्रत्याशी तीन सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. ज्योति मिर्धा, हरेंद्र मिर्धा, तेजपाल मिर्धा, विजयपाल मिर्धा को टिकट मिला है.
  • पूर्व राजमाता गायत्री देवी के परिवार से दिया कुमारी भी मैदान में हैं. दिया कुमारी विद्याधर नगर विधानसभा से चुनाव लड़ रही हैं. गायत्री देवी के बेटे भवानी सिंह ने भी लोकसभा चुनाव लड़ा था.
  • बीकानेर का राज परिवार भी लंबे समय से राजनीति में सक्रिय है. पूर्व महाराजा करणी सिंह की पोती सिद्धि कुमारी भी इस बार चुनाव लड़ रही हैं.
  • देवी सिंह भाटी की तीसरी पीढ़ी भी इस बार चुनाव मैदान में है. देवी सिंह के पोते अंशुमान को इस बार बीजेपी ने कोलायत सीट से दावेदार बनाया है.
  • स्वर्गीय राजेश पायलट के पुत्र सचिन पायलट भी टोंक से चुनाव लड़ रहे हैं. पहले से ही लड़ते आ रहे हैं.
  • पूर्व मंत्री प्रद्युमन सिंह के बेटे रोहित बोहरा भी चुनाव मैदान में हैं. रोहित बोरा ने 2018 में पहला चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी.
  • 40 साल तक प्रधान रहने वाले कल्याण सिंह की बहू मीना कवर भी चुनावी मैदान में हैं.
  • पूर्व मंत्री राम सिंह बिश्नोई के पोते महेंद्र बिश्नोई भी चुनाव मैदान में हैं.
  • भंवरलाल शर्मा के निधन के बाद उपचुनाव में उनके बेटे अनिल शर्मा को कांग्रेस ने मैदान में उतारा था और उन्होंने उस वक्त जीत दर्ज की थी. इस बार फिर अनिल शर्मा पर कांग्रेस ने विश्वास जताया है.
  • वल्लभनगर से पूर्व विधायक गजेंद्र सिंह की पत्नी प्रीति भी चुनाव लड़ रही हैं.

चुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों एक दूसरे पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाती हैं, लेकिन जब चुनाव में टिकट बंटवारे की बात सामने आई तो दोनों पार्टियों पर वंशवाद हावी हो गया. हालांकि दोनों ही पार्टियां वंशवाद को खत्म करने की बात करती हैं लेकिन पार्टी यह भी जानती है अगर चुनाव में वंशवाद को खत्म किया तो नुकसान उठाना पड़ सकता है. बहरहाल हर बार की तरह इस बार भी विधानसभा चुनाव में वंशवाद हावी ही देखने को मिला है.

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