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राजस्थान में वोटिंग से पहले ही बसपा के उम्मीदवार क्यों कर रहे त्राहिमाम? मायावती के अरमानों पर फिर सकता है पानी

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राजस्थान विधानसभा चुनाव में वैसे तो मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है, लेकिन बसपा और आरएलपी उसे त्रिकोणीय बनाने में जुटी हैं. बसपा की कोशिश किंगमेकर बनने की है, लेकिन जिन सिपहसलारों के जरिए मायावती यह ख्वाब देख रही है, उस अरमानों पर पानी फिरता हुआ नजर आ रहा है. बसपा ने जिन नेताओं पर भरोसा जताकर ‘एकला चलो’ का रास्ता चुना था, वह वोटिंग से पहले ही भाजपा-कांग्रेस के सामने नतमस्तक नजर आ रहे हैं. राजस्थान में कुल 200 विधानसभा की सीटें हैं, जिनमें से 199 सीट पर 25 नवंबर को मतदान होना है, लेकिन अक्सर चुनाव जीतने के बाद खेमा बदलने वाले बसपा के नेताओं ने इस बार वोटिंग से पहले ही दोनों हाथ खड़े कर दिए हैं. बसपा ने 196 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान किया था, लेकिन जीत के लिए मैदान में उतरने से पहले ही 9 दावेदारों ने कांग्रेस और बीजेपी के सामने घुटने टेक दिए. ऐसे में मायावती कैसे किंगमेकर बनेगी?

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बसपा के 9 कैंडिडेट ने टेके घुटने

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पूर्वी राजस्थान को बसपा का गढ़ माना जाता है, जहां से बसपा हर बार इतनी सीटें जीतने में कामयाब रहती है, जिसके दम पर तीसरी ताकत बनती रही है. हालांकि, इस बार इस इलाके के उम्मीदवार अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है. अब तक सिविल लाइन, हवा महल, आदर्श नगर, जैसलमेर, पोकरण, सिरोही समेत 9 विधानसभा क्षेत्रों के बसपा प्रत्याशियों ने पार्टी को गच्चा दे दिया है. बसपा के इन सभी 9 दावेदारों ने कांग्रेस और बीजेपी का दामन थाम लिया है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस और बीजेपी अब भी कई बसपा नेताओं के संर्पक में हैं और वोटिंग से पहले कई और उम्मीदवार बसपा का दामन छोड़ कांग्रेस और बीजेपी का समर्थन कर सकते हैं.

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दलबदल में बसपा सबसे आगे

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वैसे तो बहुजन समाज पार्टी हर बार चुनाव पूरे मन से लड़ती है लेकिन उसके विधायक जीतने के बाद पार्टी के साथ टिकते नहीं हैं. मिसाल के तौर पर अगर देखें तो 2018 में पार्टी ने न सिर्फ चुनाव लड़ा बल्कि पार्टी के 6 विधायक जीत कर सदन भी पहुंचे लेकिन जीत के बाद बसपा के सभी विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. 2008 में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था, जब बसपा के छह विधायकों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था.

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क्या है पार्टी के लड़खड़ाने की वजहें?

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बसपा राजस्थान की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन अंदरुनी तालमेल बिठाने के मामले में बसपा के पदाधिकारी फेल नजर आते हैं. इसके अलावा कुछ का मानना है कि शीर्ष नेतृत्व तक पार्टी के आम कार्यकर्ताओं की पहुंच न होने से पार्टी लड़खड़ाहट के दौर से गुजर रही है. ऐसे में, कांग्रेस और भाजपा इस फिराक में हैं कि बसपा के नेताओं को तोड़कर उसके वोट बैंक में सेंध लगाई जाए.

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