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पुराने क्षत्रपों से किनारा और नई पीढ़ी तैयार, MP-राजस्थान और छत्तीसगढ़ में एक ही स्क्रिप्ट से बिछाई गई बिसात

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मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मिशन-2024 को फतह करने की पठकथा लिखनी शुरू कर दी है. वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान और डॉ. रमन सिंह जैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों की जगह नए चेहरों को सत्ता की कमान सौंपी गई है. छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय, एमपी में मोहन यादव और राजस्थान में भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री के लिए चुनकर सभी को चौंका दिया है. इस तरह तीनों ही राज्यों के पुराने क्षत्रपों की किनारे लगा दिया गया है और नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए नए नेतृत्व के हाथों में सत्ता की बागडोर सौंपी गई है. बीजेपी ने एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान तीनों ही राज्यों में एक ही स्क्रिप्ट से नए मुख्यमंत्री के चयन की सियासी बिसात बिछाई है. अटल-आडवाणी युग में वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान और डॉ. रमन सिंह अपने-अपने राज्य में खुद को क्षेत्रीय क्षत्रपों के तौर पर स्थापित करने में कामयाब रहे. बीजेपी की सियासत में नई करवट लेने के साथ ही पार्टी ने इन तीनों ही राज्यों में पुराने क्षत्रपों की जगह नई लीडरशिप स्थापित करने की कवायद शुरू कर दी थी, लेकिन इसे अमलीजामा 2023 के चुनाव नतीजे आने के बाद पहनाया गया.

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बीजेपी के तीनों क्षत्रपों ने विधायक दल की बैठक में खुद मुख्यमंत्री बनने के बजाय पार्टी के दूसरे नेता के नाम का प्रस्ताव रखा. इस तरह बीजेपी ने तीनों ही राज्य में सत्ता संघ के करीबी और पार्टी संगठन से जुड़े नेताओं के हाथों में सौंपी है. इसके अलावा तीनों ही नेताओं की उम्र 60 साल से कम है और तीनों ही राज्यों में जातीय बैलेंस बनाने के लिए दो-दो डिप्टी सीएम बनाने का फॉर्मूला भी रखा गया है. ऐसे में हम बताते हैं कि तीनों ही राज्यों में कैसे पुराने नेताओं को किनारे किया गया और कैसे नई पीढ़ी के लिए जमीन तैयार की गई?

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PM मोदी के नाम पर लड़ा गया चुनाव

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मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने किसी भी नेता को सीएम पद का चेहरा घोषित नहीं किया था. इस बार बीजेपी पीएम नरेंद्र मोदी के नाम और काम पर चुनाव लड़ी थी. वहीं, पिछले दो दशक के इन तीनों की राज्यों के चुनावी इतिहास को देखें तो बीजेपी राजस्थान में वसुंधरा, एमपी में शिवराज और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को आगे कर ही चुनाव लड़ती रही है.

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लेकिन बीजेपी ने इस बार किसी भी क्षत्रप को आगे नहीं किया, हालांकि उन्हें उनकी परंपरागत सीट टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा तो उन्हें सीएम बनने की उम्मीद बनाए रखी. चुनावी नतीजे के बाद बीजेपी को जिस तरह से प्रचंड बहुमत मिला तो केंद्रीय नेतृत्व ने पुराने चेहरों की जगह पर नए चेहरों को सत्ता की कमान सौंपने की पठकथा लिख दी.

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तीनों सीएम की संघ की पृष्ठभूमि

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मध्य प्रदेश के सीएम मोहन यादव, छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय और राजस्थान में मुख्यमंत्री बनने जा रहे भजन लाल शर्मा के बीच सबसे बड़ी समानता संघ क पृष्ठभूमि का होना ही है. तीनों ही नेता संघ के करीबी रहे हैं. विष्णुदेव साय आरएसएस के वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े रहे हैं. भजन लाल शर्मा और मोहन यादव ने अपना सियासी सफर एबीवीपी से शुरू किया.

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एबीवीपी के तमाम पदों पर रहने के साथ संघ के लिए भी काम करते रहे हैं. मोहन यादव के पिता भी संघ से जुड़े रहे हैं जबकि भजनलाल शर्मा के संघ परिवार के लोगों से नजदीकी रिश्ते हैं. इस तरह से बीजेपी ने तीनों ही राज्य में संघ परिवार से जुड़े नेताओं को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी है.

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तीनों CM की उम्र 60 साल से कम

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बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में जिन नेताओं को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना है, उनकी उम्र 60 साल से कम है. भजनलाल शर्मा अभी 55 साल के हैं तो मोहन यादव अभी 58 साल के हैं. छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय 59 साल के हैं. वहीं, वसुंधरा राजे 71 साल, शिवराज सिंह चौहान 64 साल और डॉ. रमन सिंह 71 साल के हैं. यही वजह थी कि बीजेपी ने भविष्य के लिए नए नेतृत्व को तैयार करने के मद्देनजर पुराने नेताओं को रिप्लेस कर उनकी जगह नए और फ्रेस चेहरों पर दांव खेला. इस तरह से 60 साल से कम उम्र के मुख्यमंत्री बनाकर कम से कम 10 से 15 साल के लिए नई लीडरशिप राज्यों में खड़ी कर दी है.

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तीनों राज्य में सत्ता का एक ही फॉर्मूला

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बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में एक ही फॉर्मूले से सरकार गठन की प्रक्रिया अपनाई है. बीजेपी ने सीएम के साथ दो-दो डिप्टी सीएम तीनों ही राज्यों में बनाए हैं ताकि जाति बैलेंस को साधा जा सके. इसके अलावा तीनों ही राज्यों में स्पीकर का भी फैसला बीजेपी ने कर लिया है. छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय को सीएम तो ओबीसी और ब्राह्मण जातीय से डिप्टी सीएम दिए हैं.

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मध्य प्रदेश में ओबीसी समुदाय को सीएम बनाया तो ब्राह्मण और दलित समुदाय से डिप्टी सीएम बनाए. राजस्थान में ब्राह्मण समुदाय से सीएम तो दलित और राजपूत समुदाय से डिप्टी सीएम का चुनाव किया. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में राजपूत समुदाय से स्पीकर चुना गया है तो राजस्थान में सिंधी समुदाय के नेता को स्पीकर की कुर्सी सौंपी है. इस तरह तीनों ही राज्यों के सियासी समीकरण को साधने का दांव बीजेपी ने सीएम और डिप्टी सीएम के जरिए किया है.

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तीनों छत्रपों ने रखा सीएम का प्रस्ताव

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बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री चुनने का एक ही फॉर्मूला अपनाया. बीजेपी ने राज्यों के सियासी समीकरण और छत्रपों के लिहाज से पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए ताकि किसी तरह की कोई नाराजगी बाहर न आ सके. इसके अलावा बीजेपी के छत्रप खुद को जो सीएम के दावेदार माने जा रहे थे, उन्हें पर्यवेक्षकों ने साधकर विधायक दल में नए सीएम के नाम का प्रस्ताव रखवाया.

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मध्य प्रदेश में मोहन यादव के नाम का प्रस्ताव शिवराज सिंह चौहान ने रखा तो छत्तीसगढ़ में नए सीएम के लिए विष्णुदेव साय के नाम का प्रस्ताव रमन सिंह ने रखा. इसी तरह से राजस्थान में भजन लाल शर्मा के नाम का प्रस्ताव वसुंधरा राजे ने रखा. इस तरह छत्रपों के समर्थक विधायक भी चाहकर विरोध नहीं कर सके, क्योंकि सीएम के नाम का प्रस्ताव उनके ही नेता ने रखा था.

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2024 का चुनाव और भविष्य का नेतृत्व

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बीजेपी ने जिस तरह से पुराने नेताओं की जगह नए चेहरों की मुख्यमंत्री बनाने का दांव चला है और उसमें जातीय समीकरण का ख्याल रखा है, उससे एक बात को साफ है कि बीजेपी ने 2024 की सियासी जंग फतह करने के साथ-साथ राज्यों में भविष्य के लिए नई लीडरशिप खड़ी करने की मंशा है. तीनों ही नए सीएम की उम्र 60 साल से कम है. वो अपने अपने राज्यों के जातीय समीकरण में पूरी तरफ से फिट बैठते हैं.

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पार्टी ने छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी आबादी आदिवासी समुदाय से सीएम बनाया. एमपी में ओबीसी 52 फीसदी वोटर्स हैं, जिसके चलते सीएम ओबीसी से ही चुना गया है. इसके अलावा राजस्थान में ब्राह्मण समुदाय से 33 साल के बाद कोई सीएम बनाया गया है. बीजेपी के कई राज्यों में डिप्ट सीएम ब्राह्मण समुदाय से हैं, लेकिन सीएम कोई नहीं था. इस तरह बीजेपी ने राजस्थान में ब्राह्मण समाज के हाथों में सत्ता की कमान देकर मजबूत समीकरण बनाया है. 2024 के लिहाज से बीजेपी ने मजबूत समीकरण बनाया है.

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तीनों ही जगह लो प्रोफाइल नेता

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बीजेपी ने तीनों ही राज्यों में मुख्यमंत्री पद किसी हाई प्रोफाइल नेता को सौंपने के बजाय लो प्रोफाइल वाले नेता को सौंपी है. तीनों ही राज्यों के मुख्यमंत्री के लिए जिन नेताओं के नाम पर मुहर लगी है, उन्होंने बीजेपी से साधारण कार्यकर्ताओं के तौर पर राजनीतिक पारी का आगाज किया था. एबीवीपी से होते हुए वे स्थानीय संगठन और प्रदेश संगठन के अलग-अलग पदों पर काम कर चुके हैं. बीजेपी ने संगठन में जमीन से जुड़े नेता को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी के दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं को सियासी संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी के लिए काम करने का इनाम मिलता है. इससे कार्यकर्ताओं में नई सियासी उम्मीद जगाई है.

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