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अब नहीं होगा सिल्कियारा सुरंग जैसा हादसा, जानें सेला सुरंग में क्या है ऐसा सिस्टम? पीएम मोदी 9 मार्च को करेंगे उद्घाटन

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आगामी 9 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अरुणाचल प्रदेश में सेला टनल का उद्घाटन करेंगे. यह 13,700 फीट ऊंचाई पर स्थित दो लेन वाली दुनिया की सबसे लंबी सुरंग है. यह सुरंग उस तवांग सेक्टर को छूती है जो भारत के लिए सामरिक रूप से काफी अहम है. बीआरओ यानी बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन के चीफ इंजीनियर ब्रिगेडियर रमन कुमार कहते हैं- सेला सुरंग परिसर में दो सुरंगें हैं, इसकी कुल लंबाई करीब 12 किलोमीटर है. इससे तवांग की दूरी करीब आठ किलोमीटर कम हो जाएगी और यात्रा का समय करीब एक घंटा कम हो जाएगा. सेला सुरंग प्रोजेक्ट उत्तराखंड की 4.5 किलोमीटर लंबी सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग की तरह ही एक अहम प्रोजेक्ट है, जहां 41 मजदूरों की जिंदगी फंस गई थी. सुरंग का हिस्सा धंसने से वहां फंसे मजदूरों को बाहर निकलने के लिए रास्ते नहीं मिले. और करीब 17 दिन तक उनका रेस्क्यू अभियान चलाया गया.

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सिल्क्यारा बनाम सेला प्रोजेक्ट

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बीआरओ की इस अत्याधुनिक सेला परियोजना की सबसे खास बात ये है कि यहां एक एस्केप सुरंग है, यानी आपदा की स्थिति में यहां फंसे लोग भाग सकते हैं. 1,595 मीटर की इस सुरंग के समानांतर एक एस्केप ट्यूब भी बनाई गई है, यह करीब 1,573 मीटर तक फैली हुई है. मुख्य सुरंग और एस्केप ट्यूब दोनों में 250 मीटर की दूरी पर पांच क्रॉस मार्ग हैं. बीआरओ की सहायक कार्यकारी अभियंता निकिता चौधरी का कहना है- “एसपी-91 नामक एक प्रावधान है, जो कहता है कि किसी भी आपातकाल में हरेक 200 से 300 मीटर पर मुख्य सुरंग से जुड़ी एक एस्केप ट्यूब की जरूरत होती है, जहां क्रॉस मार्ग होता है, इस हिसाब से हमने यहां 250 मीटर दूरी पर क्रॉस मार्ग दिया है.” वहीं बीआरओ के सेला टनल के परियोजना निदेशक कर्नल रविकांत तिवारी कहते हैं- “हमने इस सुरंग में उच्चतम स्तर के सुरक्षा मानकों को अपनाया है. अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, जब भी कोई सुरंग 1,500 मीटर से अधिक लंबी होती है, तो हमें किसी भी आपात स्थिति के लिए एक समानांतर भागने वाली सुरंग भी बनानी होती है. उदाहरण के लिए अगर आग लगती है तो हमारे पास फायर अलार्म सिस्टम, सेंसर और फायर डिटेक्टर होते हैं, उसी तरह यहां हूटर बजेगा, लोग आवाज लगाएंगे और लोग एस्केप टनल से बाहर निकल सकेंगे.

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सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग का वो हादसा

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सेला प्रोजेक्ट के बारे में और बताने से पहले ये याद कर लेना जरूरी है कि सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग में वह हादसा क्यों और कैसे हुआ था. आपको याद होगा सिल्क्यारा के किनारे 200-260 मीटर के बीच सुरंग की छत ढह गई थी. और उससे आगे दो किमी की दूरी पर 41 मजदूर फंस गए थे. परेशानी ये कि वहां अधूरी सुरंग की 400-500 मीटर की मोटी दीवार बड़कोट की ओर से मजदूरों को भागने में बाधा डाल रही थी. विशेषज्ञ बताते हैं- सिल्कियारा सुरंग में अगर कम से कम हर 300 मीटर पर एक क्रॉस-पैसेज के साथ एक एस्केप सुरंग भी होती तो मजदूरों को इतने दिनों तक वहां फंसे नहीं रहना पड़ता. उस सुरंग में दो किमी की दूरी पर जहां श्रमिक फंसे थे वहां एस्केप टनल में कम से कम 7 क्रॉस-पैसेज होते तो फंसे मजदूरों को निकालना मिनटों की बात होती.

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सेला सुरंग की सुरक्षा की व्यवस्थाएं

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अब जहां तक सेला सुरंग की सुरक्षा सुविधाओं का सवाल है, उसे काफी सूझबूझ के साथ तैयार किया गया है. इसकी संरचना अत्याधुनिक है और लोगों की लाइफ बचा सकने में सक्षम है. कर्नल तिवारी के मुताबिक- सुरंग के अंदर क्या हो रहा है, इसकी निगरानी के लिए हमारे पास कैमरे, रेडियो प्रसारण और एफएम भी हैं. उन्होंने बताया कि स्काडा मॉनिटरिंग सिस्टम के माध्यम से सुरंग की निगरानी की जाएगी. सुरंग के बाहर एक पानी की टंकी और एक पंप है. दोनों सुरंगों के अंदर आग बुझाने के सामान भी हैं. सेला सुरंग के बारे में एक्सपर्ट कहते हैं मुख्य सुरंग में किसी भी घटना की स्थिति में, चाहे वह भूकंप हो या कोई दुर्घटना, लोग अपने वाहनों से बाहर निकल सकते हैं और क्रॉस-पैसेज के माध्यम से एस्केप ट्यूब में जा सकते हैं. यहां तक कि आपातकालीन वाहन भी एस्केप के जरिए आ सकते हैं. क्योंकि यह सुरंग बेहतरीन यातायात प्रबंधन प्रणाली का नमूना है. परियोजना निदेशक कर्नल रविकांत तिवारी कहते हैं- “हमारे पास सभी प्रकार के सेंसर हैं जो सुरंग के अंदर कार्बन मोनोऑक्साइड के स्तर में वृद्धि का पता लगा सकते हैं. सेंसर नियंत्रण कक्ष भवन को संकेत भेजेंगे और हानिकारक गैसों को हटाने के लिए वेंटिलेशन सिस्टम सक्रिय हो जाएगा. उन्होंने ये भी बताया कि 7.5 मीटर की कुल ऊंचाई के साथ सेला सुरंग की ऊंचाई 5.5 मीटर है, जो सभी तरह के वाहनों के लिए उचित है. वहीं एस्केप सुरंग भी मुख्य सुरंग जैसी ही बेहतर है, इसकी ऊंचाई 4 मीटर है. कर्नल तिवारी बताते हैं- एस्केप सुरंग की अच्छी ऊंचाई रखने से अधिकांश वाहन यहां से पास हो सकते हैं.

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भारत की सामरिक सुरंगें

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आज हिमालय क्षेत्र में सुरंगें बनाने पर बहुत जोर दिया जा रहा है, हालांकि यहां सुरक्षित और मॉडर्न सुरंगें बनाना आसान नहीं इसलिए क्षेत्र की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए और आवश्यक सुरक्षा उपायों को अपनाते हुए सावधानीपूर्वक यहां इसका निर्माण किया जाता है. रक्षा मंत्रालय के प्रधान सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल विनोद जी खंडारे (सेवानिवृत्त) कहते हैं- ” जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी कहते रहे हैं- हमारे सीमावर्ती क्षेत्र हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं; उस हिसाब से यह सुरंग और ऐसी कई सुरंगें आम लोगों और सेना दोनों के लिए बेहतर सुविधाएं और सुरक्षा प्रदान करती हैं.

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