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साइबर फ्रॉड : संचार तकनीक ने लोगों का जीवन तो आसान बनाया है, लेकिन इसके दुरुपयोग से लोगों की डिजिटल सुरक्षा खतरे में पड़ गई है. साइबर जालसाज आए दिन किसी के खाते से पैसे उड़ा लेते हैं या फिर डिजिटल प्राइवेसी में सेंध लगाकर लोगों को धोखे का शिकार बना डालते हैं. सरकारी जागरूकता कार्यक्रमों से जब तक लोग खास तरीके की ठगी से बचने में कामयाब होते हैं, तब तक साइबर सरगना कोई नया तरीका ईजाद कर लेते हैं.
पढ़े-लिखे लोग भी ऑनलाइन काम कर रोजाना एक हजार से पांच हजार रुपये कमाने की लालच में अपने लाखों रुपये गंवा रहे हैं. इस तरह की ठगी की शुरुआत आमतौर पर इंस्टाग्राम और टेलीग्राम के जरिए होती है. इसमें ज्यादातर मामलों में विदेशी नंबरों का इस्तेमाल किया गया होता है. सबसे पहले ये साइबर शातिर कुछ ही दिनों में सैकड़ों मैसेज का आदान-प्रदान कर लोगों का भरोसा हासिल करते हैं. उसके बाद उन्हें फर्जी ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म में बड़ी राशि का निवेश करने के लिए राजी कर लिया जाता है. फिर ये नकली ऐप उन्हें निवेश और लाभ की गलत जानकारी बताते है.
क्या है मनोविज्ञान, जिसे समझकर फांसते हैं साइबर जालसाज
रांची के मनोचिकित्सक डॉ पवन कुमार वर्णवाल प्रभात खबर से बताते हैं कि लोग ये समझ नहीं पाते हैं कि ये मैसेज कहां से आये हैं और इनके सोर्स क्या हैं. लोगों को शातिरों की बातों पर विश्वास हो जाता है. इसलिए पढ़े-लिखे लोग भी इनकी चपेट में आ जाते हैं. फ्रॉड करने वालों की ट्रेनिंग ऐसी होती है कि ये किसी को भी मोटिवेट कर उसे पैसा ट्रांसफर करने पर मजबूर कर सकते हैं. ये स्कैमर टेक्निकल टर्म का यूज करते हैं. इससे लोगों को लगता है