REPORT TIMES
तेलंगाना विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे चुनावी लड़ाई दिलचस्प होती दिख रही है. चार महीने पहले तक चुनावी मुकाबले से बाहर दिख रही कांग्रेस को अब सत्ता पर विराजमान होने की उम्मीदें दिखने लगी हैं. पिछले दो चुनाव से सत्ता पर काबिज केसीआर इस बार हैट्रिक लगाने के लिए पूरा दमखम लगा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस की रैलियों में जिस तरह से भीड़ जुट रही है और ओपिनियन पोल के सर्वे आ रहे हैं, उससे बीआरएस की चुनौती बढ़ती जा रही है. यही वजह है कि राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक ने तेलंगाना चुनाव प्रचार की कमान संभाल रखी है. बता दें कि तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए 30 नवंबर को मतदान होना है, जो 5 राज्यों के चुनाव में सबसे आखिर में है. दक्षिण भारत के इस राज्य की राजनीति में हालात तेजी से बदल रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी तेलंगाना में चार सीटें जीतकर बीआरसी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरी थी, लेकिन पिछले एक साल में तस्वीर बदल गई है. वहीं कांग्रेस अब तेलंगाना में बीआरएस को चुनौती ही नहीं देती दिख रही बल्कि ओपिनियन पोल के सर्वे के लिहाज से सरकार बनाने की स्थिति में पहुंच गई है.
लोकलुभाने वादों से कांग्रेस की जगी उम्मीदें
कांग्रेस तेलंगाना चुनाव को फतह करने के लिए लोकलुभावने वादों की गारंटी दे रखी है. इसमें मकान बनाने के लिए 5 लाख रुपये और तेलंगाना पृथक राज्य के आंदोलन में लड़ने वालों को 250 वर्ग गज के प्लॉट, महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाएगी. 500 रुपये में एलपीजी गैस सिलेंडर मिलेगा और महिलाओं के लिए TSRTC की बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा मिलेगी. तेलंगना में सभी को 200 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी. छात्रों को 5 लाख रुपये के विद्या भरोसा कार्ड दिए जाएंगे. कोचिंग फीस में सहायता मिलेगी. कांग्रेस की सरकार बनी तो बुजुर्गों को 4 हजार रुपए की मासिक पेंशन और 10 लाख रुपए का बीमा दिया जाएगा. किसानों को सालाना 15 हजार की सहायता और खेतिहर मजदूरों को 12 हजार की सहायता देने का वादा कांग्रेस के पक्ष में चुनाव को मोड़ दिया है.
भारत जोड़ो यात्रा ने कांग्रेस को किया मजबूत
तेलंगाना पृथक राज्य बनने का सपना कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में साकार हुआ था. माना जा रहा है कि कांग्रेस के साथ लोगों के बीच सामान्य सहानुभूति है, क्योंकि वह तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा देने के बावजूद लगातार दो चुनाव हार गई. तेलंगाना बनने के बाद से सत्ता पर केसीआर काबिज हैं, जिसके चलते उन्हें इस बार सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ रहा है. राहुल गांधी की पिछले साल हुई भारत जोड़ो यात्रा ने तेलंगाना में कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाई है. इतना ही नहीं स्थानीय नेताओं के भी जमीनी स्तर पर सक्रिय होने से सियासी फायदा मिलने की उम्मीद दिख रही है.
ओपिनियन पोल के सर्वे में कांग्रेस को बढ़त
तेलंगाना विधानसभा चुनाव को लेकर जिस तरह से मीडिया में ओपिनियन पोल के सर्वे आ रहे हैं, उससे कांग्रेस और बीआरएस की बीच ही चुनाव होता दिख रहा है. पिछले दिनों एबीपी-सीवोटर को ओपिनियन सर्वे में कांग्रेस को 39 फीसदी तो बीआरएस को 38 फीसदी और बीजेपी को महज 3 फीसदी वोट मिलता दिख रहा है. इस तरह से कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव से 10 फीसदी वोटों का लाभ मिलता दिख रहा है. कांग्रेस अब इन्हीं सर्वे के बाद उत्साहित है और पूरे दमखम के साथ चुनावी रण को फतह करने में जुट गई है.
बीआरसी की सोशल इंजीनियरिंग में डंक
तेलंगाना में बीआरएस के लिए सत्ता की कुर्सी तक का रास्ता उसके नेतृत्व और सोशल इंजीनियरिंग की प्रमुख शक्तियों को भुनाने से होकर जाता है. बीआरएस अभी तक ओबीसी, दलित और आदिवासी वोटों को साधकर सत्ता पर काबिज होती रही है, लेकिन बार-बार कांग्रेस इस वोटबैंक में सेंधमारी करती हुई दिख रही है. कांग्रेस सामाजिक न्याय के मुद्दे और जातिगत जनगणना का वादा कर किया है. इतना ही नहीं दलितों के एक बड़े तबके का विश्वास भी कांग्रेस जीतने में लगी है. कांग्रेस की रणनीति पिछड़ी जातियों, आदिवासियों, दलितों और मुसलमानों का एक वर्ग आधारित गठबंधन बनाने के उद्देश्य से छह गारंटी दी है.
मुख्यमंत्री केसीआर वेल्लमा जाति से आते हैं
राज्य की लगभग 90 फीसदी आबादी हैं (दलित 16%, आदिवासी 9%, मुस्लिम 13%, ओबीसी 50%) और बाकी 10 फीसदी में प्रभावी रेड्डी और वेल्लमा जातियों के साथ-साथ कुछ अन्य ऊंची जातियां शामिल हैं. मुख्यमंत्री केसीआर वेल्लमा जाति से आते हैं जबकि कांग्रेस ने रेड्डी समाज से आने वाले रेवन्ना रेडी को प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है. तेलंगाना में वेल्लमा की तुलना में रेड्डी समुदाय ज्यादा प्रभावी है. रेड्डी समुदाय कांग्रेस का परंपरागत है. राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक की रैलियों में जिस तरह से भीड़ जुट रही है, उससे कांग्रेस हौसले बुलंद हैं और उसे सत्ता में वापसी की उम्मीद दिख रही है.
मल्लिकार्जुन खरगे से फायदे की आस
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, जो पड़ोसी हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र हैं और दलित समुदाय से आते हैं. तेलंगाना में दलित समुदाय की 16 फीसदी आबादी है. कांग्रेस दलित समुदाय का विश्वास जीतने में जुटी है और मल्लिकार्जुन खरगे को उसके लिए आगे किया. पिछले दो महीने से सप्ताह में कम से कम बार तेलंगाना का दौरा कर रहे हैं, जिसके पीछे दलित वोटों का समीकरण माना जा रहा है. सरकारी भूमि प्रबंधन पोर्टल ‘धरणी’ की खामियों को कांग्रेस अपने चुनाव अभियानों में उठा रही है. इसके अलावा बीआरएस को बीजेपी की बी-टीम बताने में जुटी है, जिसके जरिए मुस्लिम समुदाय और सत्ता विरोधी वोटों को अपने खेमे में जोड़ने की रणनीति मानी जा रही है.