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दो राज्य-दो चुनाव और एक फॉर्मूला…कांग्रेस ने तेलंगाना में खेला पुराना दांव, क्या होगा बेड़ा पार?

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तेलंगाना विधानसभा चुनाव का प्रचार मंगलवार को थम गया और अब बारी मतदाताओं की है. सूबे की सभी 119 सीटों पर गुरुवार को वोटिंग है. इस बार कांग्रेस और बीआरएस के बीच सीधी लड़ाई है तो बीजेपी और AIMIM इसे त्रिकोणीय बनाने में जुटी है. कांग्रेस ने छह महीने पहले जिस सियासी फॉर्मूले से कर्नाटक में बीजेपी के हाथों के सत्ता छीनकर अपने नाम की थी, अब उसी तर्ज पर पार्टी ने तेलंगाना में बीआरएस को मात देना का राजनीतिक दांव चला है. कर्नाटक का सिर्फ फॉर्मूला ही नहीं बल्कि वहां की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले नेताओं को भी कांग्रेस ने तेलंगाना की रणभूमि में उतार दिया था. कांग्रेस ने कर्नाटक में चार गारंटी दी थी तो तेलंगाना में छह गारंटी का दांव चला है. यही नहीं कर्नाटक में जीत के नायक सीएम सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार सहित 75 फीसदी कर्नाटक के मंत्रियों-नेताओं ने तेलंगाना में जमकर प्रचार किया. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस क्या कर्नाटक की तरह तेलंगाना की सत्ता अपने नाम कर पाएगी?

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कर्नाटक की सीमा से सटी सीटें

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कांग्रेस ने तेलंगाना की 199 सीटों में से 75 प्लस सीटें जीतने का टारगेट सेट कर रखा है. इसकी जिम्मेदारी तेलंगाना के अलावा कर्नाटक के कांग्रेसी नेताओं के कंधों पर है. खासकर कर्नाटक की सीमा से सटी हुई सीट उन्हें ही दी गई है. कांग्रेस ने उन्हें तेलंगाना के विधानसभा सीट पर पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त करके जिम्मेदारी सौंपी थी. महबूबनगर, नालगोंडा और मेंढक जैसी सीटें कर्नाटक से लगी हैं. साथ ही तेलंगाना से सटे कर्नाटक के इलाके से ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे आते हैं, इस बात का भी सियासी फायदा उठाने की कोशिश में कांग्रेस पार्टी है.

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हैदराबाद में कांग्रेस ने की कई बैठकें

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कर्नाटक चुनाव प्रचार खत्म होते ही कांग्रेस तेलंगाना की चुनावी अभियान में जुट गई थी. कांग्रेस ने अपनी एक बड़ी बैठक को चुनावों के ऐलान से पहले हैदराबाद ही में आयोजित किया था. इसके बाद भारतीय युवा कांग्रेस का बड़ा अधिवेशन भी हैदराबाद में रखा था. इसके अलावा राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे तक ने जमकर चुनाव प्रचार किया तो मंगलवार को सोनिया गांधी ने एक वीडियो जारी करके कांग्रेस के पक्ष में वोट देने की अपील की.

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डीके शिवकुमार, सिद्धारमैया की जिम्मेदारी तय

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एक ओर कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार कांग्रेस के चुनावी मैनेमेंट को संभाल रहे हैं तो सीएम सिद्धारमैया तेलंगाना के ओबीसी वोटों को साधने के कवायद में जुटे हैं. खरगे के जरिए कांग्रेस दलित और आदिवासी को अपने पक्ष में करने की रणनीति बनाई है. कांग्रेस ने रेवंत रेड्डी को तेलंगाना में पार्टी की कमान सौंप कर सवर्ण वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है. रेवंत की पीडीपी पृष्ठभूमि के होने की वजह से पीडीपी के वोट का झुकाव दिख रहा है. इसके अलावा जमीर अहमद खान के जरिए मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कांग्रेस ने किया है.

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कर्नाटक की गारंटी का होगा असर?

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कांग्रेस कर्नाटक में अपनी पांच गारंटियों में से चार को लागू कर चुकी है और पांचवी गांरटी को जल्द लागू करने का आश्वासन तेलंगाना प्रचार में लोगों को देती रही. यह बात कह कर कांग्रेस यह विश्वास दिला रही थी कि तेलंगाना में जिन छह गारंटियों का वादा किया है, वो सिर्फ वादा नहीं है बल्कि उसे जमीन पर उतारने का काम करके भी पार्टी दिखाएगी. तेलंगाना प्रचार में कर्नाटक के तमाम मंत्री राज्य में में लागू की गई गारंटियों का जिक्र कर रहे थे कि किस तरह से कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने लोगों को लाभ पहुंचाने वाली योजनाएं लागू की हैं, उसी तरह तेलंगाना में भी किये गए वादे कांग्रेस लागू करने का काम करेगी.

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तेलंगाना में केसीआर की 6 गारंटी

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तेलंगाना में केसीआर के वादों के जवाब में कांग्रेस ने कुल छह गारंटियों का ऐलान किया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी राज्य में जहां बेरोजगारों से मिल रहे थे तो वहीं डीके शिवकुमार से लेकर सिद्धरमैया केसीआर पर सीधा अटैक कर रहे थे. कांग्रेस ने बेरोजगार युवकों को रोजगार देने का वादा किया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सभाओं और अपने कार्यक्रमों में कह रहे थे कि ये वादे नहीं बल्कि कांग्रेस की गारंटी हैं. इस तरह कांग्रेस ने तेलंगाना की चुनावी जंग जीतने की बिसात बिछाई है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस का यह दांव तेलंगाना में कितना सफल रहता है?

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